स्वास्थ्य की सुरक्षा के प्रहरी कौन है? ~ Who is the Guard of Health Protection?

 


Summary:
स्वास्थ्य की सुरक्षा के प्रहरी कौन है ?
आरोग्य मनुष्य की साधारण समस्या है। थोड़े से नियमों के पालन, साधारण-सी देख-रेख से वह पूरी हो जाती है किन्तु उतना भी जब मनुष्य भार समझकर पूरा नहीं करता तो उसे कड़ुआ प्रतिफल भुगतना पड़ता है। थोड़ी-सी असावधानी से बीमारी तथा दुर्बलता को निमन्त्रण दे बैठता है।
रहन सहन में यदि पर्याप्त संयम रखा जाय तो कुछ थोड़े से नियम हैं जिनका पालन करने से मनुष्य आयु-पर्यन्त उत्तम स्वास्थ्य का सुखोपभोग प्राप्त कर सकता है।
उनमें से तीन प्रमुख हैं (1) प्रातः जागरण (2) ऊषा पान (3)वायु सेवन।
यह तीनों ही नियम सर्वसुलभ और रुचिकर हैं, इनमें किसी तरह की कोई कठिनाई नहीं जिनका पालन न हो सके, या जिसके लिये विशेष साधन जुटाने की आवश्यकता पड़े।
प्रातः जागरण को संसार के सभी लोगों ने स्वास्थ्य के लिये अतिशय हितकर माना है। अँग्रेजी कहावत है “जल्दी सोना और जल्दी उठना मनुष्य को स्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बनाता है।”
वैद्यक ग्रन्थों में ऊषापान को ‘अमृत-पान’ कहा गया है, स्वास्थ्य के लिये उसकी बड़ी प्रशंसा की गई है और यह बताया गया है कि जो प्रातःकाल नियमित रूप से जल पीते हैं उन्हें बवासीर, ज्वर, पेट के रोग, संग्रहणी, मूत्र रोग, कोष्ठबद्धता, रक्त पित्त विकार, नासिका आदि से रक्त-स्राव, कान, सिर तथा कमर के दर्द, नेत्रों की जलन आदि व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।
स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रातः जागरण का वास्तविक लाभ वायु सेवन से है। यदि कोई प्रातः काल उठकर कुछ दूर शुद्ध वायु में घूमने जाया करे तो निश्चय ही उसकी आयु लम्बी होगी।
भ्रमण से जहाँ व्यायाम की आवश्यकता पूरी होती है वहाँ बाहर की शुद्ध वायु का लाभ मिलता है। भ्रमण ऐसे ही शुद्ध बाग-बगीचों वाले स्थानों की ओर करना चाहिये। खुले आसमान की ओस भरी दूब में नंगे पाँव घूमने से शरीर को अपार शक्ति मिलती है।
स्वास्थ्य और आरोग्य रक्षा के लिये यह तीन अचूक नियम हैं।
यह तीन प्रहरी ऐसे हैं जो सब तरफ से हमारे स्वास्थ्य की रक्षा और शरीर को पोषण प्रदान करते हैं, इन्हें सजग रखें तो कोई रोग तथा शारीरिक व्याधि हमें कष्ट व पीड़ा न दे सकेगी।

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