Summary:
साहित्य क्षेत्र में भावुकता एक अनमोल गुण है। कवि हृदय इतना संवेदनशील होता है कि संसार की समस्त वेदना, वह अपने हृदय-पटल पर अनुभव करता है। भावुक व्यक्ति अतुल मेधा-शक्ति सम्पन्न व्यक्ति हुए हैं।
दैनिक जीवन तथा संसार की कठोरताओं में यही भावुकता गुण के स्थान पर दुर्गुण भी बन जाती है। ऐसा व्यक्ति साधारण कठिनाइयों को देखकर व्यग्र हो उठता है, उसके मन में तूफान आ जाता है, उसके संकल्प एवं पौरुष शिथिल हो उठते हैं। संसार एक कर्मक्षेत्र है। यहां पग-पग पर मानव को संघर्ष करना पड़ता है। भावुकता छोटे-मोटे कष्टों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाती है। मामूली बातों से ही हम अधिक पीड़ित हो जाते हैं, जबकि संकल्प की दृढ़ता से हम उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
मान लीजिए, आप किसी ऊंचे पद पर अफसर हैं। आपके नीचे कार्य करने वाले अपने कर्त्तव्यों के पालन में तत्परता तथा नियमबद्धता का व्यवहार नहीं करते। उनके ऊपर कार्य अधिक है, यह सोचकर आप उन पर दया का व्यवहार कर देते हैं। वे आपकी मृदुता का अनुचित लाभ उठाते हैं, अधिकाधिक लापरवाह बनते जाते हैं। आपकी प्रतिष्ठा या मान में भी कोताही प्रदर्शित करते हैं। आप अपनी भावुकता के वश उन्हें सजा नहीं दे पाते।
आप किसी साधारण सी बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन अपनी अतिभावुकता के कारण वही आपको पर्वत सदृश प्रतीत होती है। अनेक रोगी इतने संवेदनशील होते हैं कि मामूली घाव देखकर बेहोश हो जाते हैं, कटे हुए मांस, मरे हुए जानवर, मुर्दे की अर्थी, कसाई की दूकान और गन्दे स्थान देखकर उनका बुरा हाल होता है। मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। बहुत देर तक वे अपने दैनिक कार्य नहीं कर पाते। यह बड़ी इंसान की बहुत बड़ी कमजोरी है।
एक बार एक व्यक्ति को शमशान में जाना पड़ा | उसने पहली बार मुर्दे को देखा था | उसके लिए चिता के निर्माण कराने में सहायता प्रदान की। जब श्मशान से लौटे, तो मन में भय ले आये। उन्हें भूत के अस्तित्व में भ्रम हो गया। वही मुर्दा दिन-रात उन्हें अपने इर्द-गिर्द चलता फिरता दिखाई देने लगा, रात्रि में सोते समय भय प्रतीत होने लगा। सोते-सोते चिल्ला उठते। उनकी मनोवैज्ञानिक चिकित्सा की गई। तब उनका मिथ्या भय दूर हो सका।
इसी प्रकार के अनेक व्यक्ति मृत्यु को भयदायिनी समझकर परेशान होते रहते हैं | एक महानुभाव ने कवि शेली की नौका के जल में डूबने की कहानी सुनी थी। कवि अपने कुटुम्ब के साथ झील में अपनी नौका ‘‘ऐरियल’’ में बैठा हुआ विहार कर रहा था कि नौका यकायक डूब गई। इसे सुनने का आघात इतना गहरा बैठा कि वे नाव में ही न बैठते थे और दूसरों को भी मना करते थे।
ऐसे व्यक्तियों में भावुकता अभिशाप बन जाती है।
हमारे घर के समीप कुछ ऐसे नागरिक भी रहते हैं, जो प्रायः प्याज लहसुन इत्यादि से युक्त भोजन किया करते हैं। प्याज लहसुन की गन्ध जब हमारे घर में आती है, तो हमारे घर के कुछ सदस्य नाक में कपड़े ठूंस लेते हैं, उलटी करने लगते हैं। बहुत देर तक अस्त व्यस्त रहते हैं। उन्हें अनेक बार समझाया गया है कि वहां इत्र फुलेल, चम्पा चमेली और गुलाब की सुगन्ध का आनन्द लेने, मिठाइयों की महक का आनन्द लेने का अभ्यास है, वहां इनको सहन करने की आदत भी डालना चाहिए।
इसी प्रकार कुछ लोग किसी भिखारी पर दया करके अपनी जेब की परवाह न कर कुछ दान दे डालते हैं, कुछ को करुणाजनक कहानियां सुनाकर लूट लिया जाता है। स्त्रियों में यह कमजोरी अधिक होती है। वे स्वभावतः भावुक हैं। उनकी दया, करुणा, सहानुभूति, प्रशंसा, भय या जादू टोने की भावनाओं को उत्तेजित कर, खूब मूर्ख बनाया जाता रहा है। पढ़ी लिखी लड़कियों में सहशिक्षा के कारण यह सस्ते रोमांस की भावना भयंकर दुष्परिणाम दिखा रही है।
मेरी सभी व्यक्तियों से आग्रह है कि अति भावुकता को छोड़ कर सफल बनिए |
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