Summary:
हम जिस व्यक्ति को जैसा मानकर उससे जैसा व्यवहार करते हैं, हमारे गुप्त अन्तर्मन का सूक्ष्म मानसिक प्रवाह उसके हृदय में वैसा ही मानसिक वातावरण बना देता है। श्रद्धा एवं विश्वास की गुप्त तरंगें दूसरे के मन में धीरे धीरे श्रद्धा और विश्वास में विचार उत्पन्न करते हैं। जिस पर हम विश्वास करने लगते हैं उसकी विवेक बुद्धि उसे हमारे प्रति सच्चा रहने का आदेश देती है। हम दूसरे के विश्वास को तोड़ना नहीं चाहते। हम उसी मानसिक, नैतिक, बौद्धिक, आर्थिक स्तर तक ऊंचा उठने के अभिलाषी होते हैं, जैसा दूसरे हमसे चाहते हैं। दूसरों का हमारे अन्दर विश्वास हमारी अनेक गुप्त शक्तियों को खोल देता है। हमसे जो आशा की जाती है, हम वैसे बनें, दूसरों की इच्छाओं को पूर्ण करें, ऐसे आइने बनें जिसमें दूसरों का विश्वास प्रतिफलित प्रतिबिम्बित हो—यह मानव की पवित्र आकांक्षा रहती है।
यदि हम किसी पर अविश्वास करते हैं, तो उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव दूसरों पर पड़ता है। यदि वह स्वभावतः बुरा नहीं भी होता, हमारे गुप्त मनोविज्ञान की सूक्ष्म तरंगें उसे बुरा बनाने में सहायता करती हैं। हमारे नित्य प्रति के अविश्वास सूचक संकेत चुपचाप दूसरों के अन्तर्मन में विषैला वातावरण बनाते रहते हैं। इन सूक्ष्म अविश्वासों का प्रभाव धीरे-धीरे अन्तर प्रदेश में एकत्रित होता रहता है और समय पाकर ज्वालामुखी की भांति विस्फोट के रूप में प्रकट होता है।
प्रायः देखा गया है कि जब हम दृढ़ता से दूसरों पर विश्वास कर लेते हैं तो हमें उनसे निराश नहीं होना पड़ता वरन् प्रत्युत्तर में उनका विश्वास प्राप्त होता है। हमारा विश्वास पूर्ण होता है। वैसा ही उत्तर हमें प्राप्त होता है।
जब पिता पुत्र पर, माता पुत्री पर, पति पत्नी पर, भाई भाई पर अविश्वास की काली छाया डालता है, तो घर का प्रेम, पारस्परिक सद्भाव विनष्ट हो जाता है। घृणा से गृह का वातावरण दूषित हो उठता है। प्रत्येक पारिवारिक सदस्य एक दूसरे से बातों को छिपाता है, पैसे पैसे का हिसाब पूछा जाता है। यदि संयोग वश कोई वस्तु यथास्थान न हो, तो चोरी का भ्रम उत्पन्न होता है। उत्तेजक शब्दों का व्यवहार होने लगता है। जिससे कटुता की वृद्धि होती है। यदि हम अपनी ओर से दूसरों के प्रति अविश्वास प्रदर्शित करते हैं, तो दूसरा भी उत्तर में घृणा देता है। सम्पूर्ण वातावरण अस्वस्थ विचारों से बोझिल हो जाता है।
बुरे लोगों के अन्तःकरण में भी आत्मा की सब राशियां दबे हुए रूप में मौजूद रहती हैं। केवल उन पर अविद्या की धूल जमी रहती है। समाज तथा परिवार के दुर्व्यवहारों के कारण वे पतित होते हैं। अविश्वास के कारण उनका आत्म-विश्वास विलुप्त हो जाता है। यदि पुनः हम उन पर विश्वास कर उनकी आत्मिक शक्तियों को जाग्रत कर दें, तो निश्चय जानिये हम उन्हें उच्च आत्मिक स्तर पर ला सकते हैं।
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