Summary:
उत्तेजना क्या है? इसका विश्लेषण करने पर पता चलता है कि यह उद्वेग का आधिक्य है।
साधारणतः व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं—
एक तो वे जिन्हें मोटी चमड़ी कह सकते हैं। इन व्यक्तियों में भावनाएं कम होती हैं। इन्हें कुछ कह दीजिए, इनके मन में कोई प्रभाव न पड़ेगा। गाली गलोज या मानहानि से भी ये उत्तेजित न होंगे। ये भावना के आक्रोश में नहीं रहते। क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, क्षणिक आवेश का इन पर कोई शीघ्रव्यापी प्रभाव नहीं होता।
दूसरे व्यक्ति भावुक और अति उद्विग्न होते हैं। फूल की तरह कोमल, छुईमुई के पौधे के समान संवेदनशील होते हैं। भावना की अधिकता इनकी दुर्बलता है। भावना क्रोध, प्रेम, वात्सल्य, दया, ईर्ष्या इत्यादि मनोविकारों को गहराई से अनुभव करना और उन्हीं के वश में इतना हो जाना कि स्वयं अपनी विवेक बुद्धि को भी खो डालना, लाभ-हानि या अन्तिम परिणाम का खयाल न रखना इनकी कमजोरी है। जो गुण कवि में सौभाग्य का विषय है, वही मनोविकारों के ऊपर नियन्त्रण न कर सकने वाले व्यक्ति के लिए एक अभिशाप है। ये अपनी उत्तेजनाओं के ऊपर विवेक बुद्धि का नियंत्रण नहीं कर पाते और स्वयं उनके वशीभूत हो जाते हैं।
उत्तेजना एक क्षणिक पागलपन है। यह भावना का तांडव नृत्य है, उद्वेग की एक आंधी है, ईर्ष्या, क्रोध, प्रतिशोध का एक भयंकर तूफान है, जिसे निर्बल इच्छा-शक्ति वाला व्यक्ति सम्हाल नहीं पाता, अपने आपको खो देता है।
उत्तेजना की आंधी में बुद्धि विवेक शून्य निश्चेष्ट हो जाती है, उत्तरोत्तर बढ़ कर शरीर पर पूरा अधिकार कर लेती है। भावना के उद्वेग में नीर-क्षीर का ज्ञान लुप्त हो जाता है।
उत्तेजक स्वभाव वाला व्यक्ति दूरदर्शिता को खो बैठता है। कभी-कभी उसे अपनी शक्तियों का ज्ञान तक नहीं रहता। कमजोर व्यक्ति भी उत्तेजना का शिकार होकर मजबूत व्यक्ति से लड़ बैठते हैं। बातों बातों में उग्र हो जाते हैं। हाथापाई की नौबत आ जाती है। अनेक बार उत्तेजक स्वभाव वाले बड़ी बुरी तरह पीटे जाते हैं।
इसलिए प्रत्येक इंसान को सहनशील बनना ही चाहिए |
संसार में स्थान-स्थान पर मनुष्य को दबना पड़ता है और उत्तेजनाओं को दबाना पड़ता है। प्रायः देखा जाता है उत्तेजक स्वभाव वालों को न कोई नौकर रखता है, न उनका व्यापार ही चमकता है। अफसर उन्हीं लोगों से प्रसन्न रहते हैं जो उनकी जहां चार अच्छी बातें सुनते हैं, वहां दो तीखी कड़वी बात भी पी जाते हैं। कड़वी तीखी बातें सुनना, उनसे उत्तेजित न होकर मनःशान्ति स्थिर रखना सांसारिक जीवन में सफलता का एक रहस्य है। इस सहिष्णुता से विभूषित व्यक्ति चाहे कुछ काल के लिए प्रसिद्ध न हो, अन्त में उसकी आन्तरिक शान्ति और सहिष्णुता विजयी होती है।
विषय-वासना की उत्तेजना अत्यन्त भयावय है। आप एकान्त में हैं, या चार विपरीत लिंग वाले व्यक्तियों के सम्पर्क में हैं, कोई उत्तेजक पुस्तक, गन्दा उपन्यास या अश्लील सिनेमा-चित्र देखते हैं तो अनायास ही आपकी वासना उद्दीप्त हो उठती है। आप नहीं समझते कि आप आखिर क्या करने जा रहे हैं। आप अनायास ही किसी से अशिष्टता, मानहानि, दुर्व्यवहार, अश्लीलता, कुचेष्टा कर बैठते हैं, जिसके लिए आप जीवन में स्थान-स्थान पर अपमानित होते हैं। क्रोध में जहां मार पीट, हत्या होती है, वहां वासना में अश्लील, अविवेक पूर्ण दुर्व्यवहार हो जाता है। वासना के पागलपन में किया हुआ गन्दा कार्य बाद में जनता की आलोचना, लांछन, पश्चात्ताप का विषय बन जाता है।
अनेक व्यक्ति अपनी विवाहित पत्नियों से अधिक सन्तानोत्पत्ति से तंग आकर ब्रह्मचर्य के वाद करते हैं, विशुद्ध सात्विक जीवन की बड़ी बड़ी योजनाएं बनाते हैं, किन्तु जब पत्नी के साथ एकान्त में मिलते हैं, तो उत्तेजित होकर वासना-रत हो जाते हैं। यह भी सर्वथा त्याज्य है। मनुष्य को शान्त और विवेक द्वारा संचालित होना चाहिये। मानसिक शान्ति की अवस्था में ही सच्चा नीर-क्षीर-विवेक हो सकता है। निर्णयात्मक बुद्धि द्वारा संचालित व्यक्ति ही उन्नति कर सकते हैं।
इसलिए उत्तेजना से हमेशा सावधान रहें!
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