Khud par Vishwas Rakho ~ Believe in Yourself


Summary:
अपने निजी विचार पर भरोसा करना और जो बात अपने दिल में ठीक जमती है उसको सब लोगों के लिए सही समझना- बस यही ‘प्रज्ञा’ है।
 

हम मूसा, प्लेटो और मिल्टन की सबसे बड़ी विशेषता यही मानते हैं कि उन्होंने पुस्तकों और पुरानी परम्पराओं पर ध्यान नहीं दिया, और उन्होंने और लोगों के स्वर में स्वर न मिलाकर अपने दिमाग की ही बात कही।
 

मनुष्य को अपनी अन्तरात्मा से मिलने वाले प्रकाश की किरण को पहचानने और देखने का अभ्यास करना चाहिये।
हर व्यक्ति के शिक्षा-काल में ऐसा मौका जरूर आता है जबकि वह मानने लगता है कि स्पर्धा करना अज्ञान है, अनुकरण आत्मघात है, उसे अपने ही भरोसे पर अच्छा या बुरा जैसा भी बन पड़े अपना भाग अदा करना चाहिये, और इस विस्तृत भूमण्डल के धन धान्य पूर्ण होते हुए भी उसका पेट भरने लायक मुट्ठी भर अनाज भी उसे तभी हासिल हो सकता है जबकि वह अपने खेत में अपना पसीना बहाये।
 

अपने ऊपर विश्वास रखे, यह विश्वास ही वह अटूट तार है जिसके सहारे हृदय स्पन्दित होता है। प्रेम ने तुम्हारे लिये जो स्थान, समकालीन लोगों को समाज और घटनाओं का संयोग लिख दिया है उसे स्वीकार करो।
हम मानव हैं, हमें अपने उस अदृश्य भविष्य को पूरे भरोसे के साथ स्वीकार करना चाहिये|
 

यदि तुम एक निर्जीव चर्वे को चलाते हो, एक मृतप्राय बाइबिल-सोसाइटी को चन्दा देते हो, एक बड़ी पार्टी को सरकार बनाने या सरकार का विरोध करने के लिए वोट देते हो, तो मैं इन सभी स्थितियों में ठीक-ठीक यह नहीं जान सकता कि तुम्हारा व्यक्तित्व क्या है और निश्चय ही तुम्हारे असली जीवन में से इतनी शक्ति बेकार चली जाती है।
 

हर आदमी को यह समझ लेना चाहिए कि यह सहमति का रास्ता कितना बेहूदा है। यदि मैं तुम्हारे पन्थ को जान लूँ तो मैं तुम्हारे युक्ति क्रम का पहले से ही अन्दाजा लगा सकता हूँ।  
 

कुछ भी हो अधिकाँश लोग तो अपनी आँखें एक या दूसरे रंग की पट्टी बाँध रखते हैं और अपना बन्धन किसी मत या सम्प्रदाय से जोड़ रखा है। उससे सहमति रखकर चलना हर दशा में गलत नहीं होता, किन्तु उसके द्वारा प्रतिपादित हरेक सत्य विशुद्ध सत्य भी नहीं होता। उसका बतलाया हुआ दो असली दो, और चार असली चार, नहीं होता, इसलिए उनका हरेक शब्द हमें परेशान कर देता है।
 

एक दूसरी चीज जो हमें आत्म विश्वास से दूर-दूर भगाती है, वह है हमारा अतीत की संगति पर बल देना- अपने पिछले कार्यों या वचनों के लिए हमारी आदर-बुद्धि।
 

किन्तु आप अपने दिमाग को भूतकाल में क्यों उलझाते हो? अपनी पुरानी याददाश्त पर इतना भरोसा क्यों करते हो- शायद इस भय से कि आपको अमुक सार्वजनिक स्थान में कहे गये अपने वचन से पीछे फिरना पड़ेगा? मान लो कि आपको अपनी बात का खण्डन करना पड़ता है, तो उसकी चिन्ता क्या है?
क्षुद्र हृदय वालों पर अतीत से संगति रखने का भूत सवार रहता है, क्षुद्र राजनीतिज्ञ, दार्शनिक और धर्मोपदेशक उसे बड़ा महत्व देते हैं। किंतु महापुरुष को उस संगति से कोई सरोकार नहीं रहता। व
 

हमें रीति रिवाजों, परम्पराओं और संस्थाओं की परवाह न करके इतिहास का यह तथ्य सामने रखना होगा कि मनुष्य काम करके ही महान विचारक और क्रियाशील बनता है- सच्चा इंसान किसी स्थान या समय से बँधा नहीं रहता, बल्कि वह स्वयं गतिविधियों का केन्द्र बन जाता है, संक्षेप में, जहाँ वह है वहीं जीवन की सहज स्वाभाविकता है।

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