क्या अपने काम में रुचि अरुचि का प्रश्न उठाना अनुपयुक्त है? ~ Love Your Work, Respect It ~ Motivation Hindi


 दोस्तों अपने काम में रुचि अरुचि का प्रश्न उठाना एकदम अनुपयुक्त है। यह एक तरह से अपनी अकर्मण्यता और आलस्य को प्रोत्साहन देना है। मानव मन की यह विशेषता है कि वह जिस प्रकार के भावों से प्रभावित होता है वैसा ही बनता जाता है। काम में रुचि अरुचि का अभ्यस्त मन आगे चलकर ऐसा बन जाता है कि उसे किसी भी काम में रुचि नहीं रहती और वे उसे अधूरा छोड़ देते हैं। 

ऐसे व्यक्ति एक काम को हाथ में लेते हैं। नये-नये काम आरम्भ करते रहते हैं और थोड़े समय बाद उससे भी अरुचि हो जाती है तो दूसरे में लगते हैं। तात्पर्य यह है कि वे किसी भी काम में दृढ़ स्थिर नहीं रह पाते। दूसरी ओर जब उपस्थित काम में हम प्रयत्नपूर्वक लग जाते हैं तो थोड़े समय में रुचि भी वैसी ही बन जाती है। इसलिये रुचि-अरुचि का प्रश्न उठाना असन्तुलित मनोभूमि का कारण है। आलस्य प्रमाद की प्रेरणा से ही मनुष्य इस तरह की मीनमेख निकालता रहता है।

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कई बार अपने काम में धैर्य और निष्ठा का अभाव हमें सफलता के द्वार से वापिस लौटा देता है। तब हमारी शिकायत होती है “कब तक करते रहेंगे।” मनुष्य की यह एक स्वाभाविक कमजोरी होती है कि वह तुर्त फुर्त अपने काम का परिणाम देख लेना चाहता है। जिस तरह बच्चे खेल खेलने में आम की गुठली मिट्टी में गाड़ते हैं और उसे जल्दी-जल्दी बार-बार उखाड़ कर देखते हैं कि कहीं आम का पेड़ उग तो नहीं आया? वे भोले बालक यह नहीं जानते कि कहीं कुछ मिनट में ही आम का पौधा कभी उगता है?  

अपने काम के परिणाम के बारे में जल्दी-जल्दी सोचना इसी तरह की बचकाना प्रवृत्ति है। यह निश्चित है कि अच्छे उद्देश्य से भली प्रकार किया गया काम समय पर अपने परिणाम अवश्य प्रदान करता है लेकिन किसी काम का फल कब मिलेगा इसका ठीक-ठीक समाधान सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता। 

इसलिये अपने काम के परिणाम के बारे में अधिक सोच विचार न करके कर्मवीर के सामने एक ही मार्ग है कि वह जब तक सफलता न मिले अपने काम में डूबा रहे। हम तन्मय होकर काम में लगे रहें। उसमें हमको गहरी निष्ठा हो अपने काम के सिवा दूसरी बात हम न सोचें तो कोई सन्देह नहीं कि एक दिन सफलता स्वयं हमारा दरवाजा खटखटायेगी।

आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने काम से प्यार करें, उसकी इज्जत करें।

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