दूसरों के दुर्व्यवहार का कारण क्या है? ~ Motivation Hindi

 


दोस्तों जिस पर मित्रों ने बुरे समय में चोट की है वह समझता है मेरे साथ दुर्व्यवहार किया गया, अनीति बरती गई, मित्र शत्रु बन गये। पर सच बात यह है कि वे उसके मित्र थे ही नहीं, केवल ऊपरी शिष्टाचार बरतने वाले चापलूस लोग थे जो परीक्षा के समय असली रूप में प्रकट हो गये।

सच बात यह है कि किसी बेईमान का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। स्वार्थ, लाभ या मजबूरी जब तक एक रस्सी में बाँधे रहती है तब तक लोग बेईमान के साथ बँधे रहते हैं और जब भी अवसर मिलता है तब रस्सी तोड़कर भागते हैं। चोर भी नहीं चाहते कि उसका साथी चोरी के माल में हिस्सा बाँटते समय चोरी बेईमानी करे। डाकू भी यह नहीं चाहते कि उनके साथी उन्हीं के घर पर डाका मारें। व्यभिचारी व्यक्ति इस कुकर्म में अपने दिन−रात साथ रहने वाले लोगों से भी यह आशा नहीं करते कि वे उसी की बहिन, बेटी या पत्नी को कुमार्गगामी बनायें।

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जब कभी इसमें व्यक्तिक्रम होता है तभी मित्रता शत्रुता में बदल जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि ईमानदारी ही एकमात्र ऐसा तत्व है जिसके ऊपर मित्रता टिकी रह सकती है, सहानुभूति उपलब्ध होती रह सकती है और समय पर दूसरे लोग उस श्रद्धा से प्रेरित होकर बड़ी से बड़ी सहायता कर सकते हैं।

यह स्पष्ट है कि कोई व्यक्ति यदि इस संसार में बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं तो उसका सर्वोपरि कारण उसके मित्रों की सहायता से ही हुआ है। जिसे यह नहीं मिल सकी वह कितनी ही बड़ी योग्यता या क्षमता सम्पन्न क्यों न रहा है कभी कोई बड़ी सफलता प्राप्त नहीं कर सका है।

झूठे और चोर प्रकृति के मनुष्य कभी−कभी कुछ सफलता प्राप्त कर तो लेते हैं पर वह होती बहुत ही क्षणिक एवं स्वल्प है। जैसे−जैसे लोग उससे सावधान होते जाते हैं, बचने की कोशिश करते हैं वैसे ही वैसे उसकी सफलता का क्षेत्र सिकुड़ता चला जाता है। और अन्ततः उसके असफलता एवं दुर्गति ही हाथ रह जाती है।

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