असफलता से जीवन में कभी भी हताश मत होना ~ Never be Disappointed in Life


Summary:
कितना ही प्रयत्न करने पर भी, कितनी ही सावधानी बरतने पर भी, ऐसा सम्भव नहीं कि मनुष्य के जीवन में कोई अप्रिय परिस्थितियां सामने न आ सके | यहां सीधा और सरल जीवन किसी का भी नहीं है। अपनी तरफ से मनुष्य शान्त, सन्तोषी और संयमी रहे, किसी से कुछ न कहे, कुछ न चाहे, तो भी दूसरे लोग उसे शान्तिपूर्वक समय काट ही लेने देंगे इसका कोई निश्चय नहीं। कई बार तो सीधे और सरल व्यक्तियों से अधिक लाभ उठाने के लिये दुष्ट, दुर्जनों की लालसा और भी तीव्र हो उठती है। कठिन प्रतिरोध की सम्भावना न देखकर सरल व्यक्तियों को सताने में दुर्जन कुछ न कुछ लाभ ही सोचते हैं। सताने पर कुछ न कुछ वस्तुयें मिल जाती हैं और दूसरों को आतंकित करने, डराने का एक उदाहरण उनके हाथ लग जाता है।
 

इस प्रकार असफलता, निराशा, हानि, चिन्ता, प्रतिकूलता और परेशानी के अवसर हर मनुष्य के सामने छोटे या बड़े रूप में आते ही रहते हैं। उनसे पूर्णतया सुरक्षित रहना किसी के लिये भी सम्भव नहीं। इच्छा या अनिच्छा से प्रतिकूलताओं का सामना करना ही पड़ता है। रोकर या हंसकर उन्हीं को ही भुगतना पड़ता है। मानसिक दृष्टि से दुर्बल और भावावेश में बहने वाले व्यक्ति इन छोटी−छोटी प्रतिकूलताओं में अपना सन्तुलन खो बैठते हैं और परेशानी में ऐसे बौखला जाते हैं कि उनका मस्तिष्क विक्षिप्त एवं उद्विग्न होकर ऐसी विपन्न स्थिति में जा पहुंचता है कि क्या करना, क्या न करना यह वे बिलकुल भी नहीं सोच पाते।
 

ऐसी स्थिति में वे जो भी कदम उठाते हैं वह प्रायः गलत ही होता है। विक्षोभ की स्थिति में किये हुए निर्णय आमतौर से ऐसे होते हैं जिनसे विपत्ति से निकलने का मार्ग नहीं मिलता वरन् उलटे कठिनाइयों के और अधिक गहरे दलदल में फंस जाने का खतरा सामने आ खड़ा होता है। कई बार लोग घर छोड़कर भाग निकलने, आत्महत्या कर लेने, कपड़े रंगाकर बाबाजी हो जाने आदि की ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जिन पर पीछे केवल पश्चाताप ही करना शेष रह जाता है। कई बार उद्विग्न लोग उन पर बरस पड़ते हैं जिन्हें वे आप प्रतिकूलता का कारण समझते हैं।
 

फलस्वरूप विपत्ति की कई शाखायें फूट पड़ती हैं और कठिनाई का नया दौर आरम्भ हो जाता है। जब कभी ठण्डे मस्तिष्क से विचार करने का अवसर आता है तब मनुष्य पछताता है और सोचता है कि आगत विपत्ति नहीं टल सकती थी तो कोई बात न थी। अपने मानसिक सन्तुलन को तो विवेक द्वारा बचाया ही जा सकता था और जो परेशानियां अपनी भूलों के कारण सिर पर ओढ़ली गईं उनसे तो बचा ही जा सकता था।
 

असफलता के समय दिल छोटा करने और निराश होने की क्या बात है। प्रथम प्रयास अवश्य ही सफल होना चाहिये यह कोई जरूरी नहीं।
 

किसी ना समझी या गलत-फहमी के कारण यदि कभी कुछ कटु-वचन किसी ने कह दिया तो उसे स्मरण रखे रहने से कुछ लाभ नहीं। स्वाभाविक स्थिति प्रेम-सहयोग और सहिष्णुता की ही है। 

प्रतिकूलताओं से लड़ने का साहस रखना और जब वे सामने आ जावें तो हिम्मत वाले पहलवान के समान उनको परास्त करने के लिये जुट जाना यही बहादुरी का काम है। बहादुर को देखकर आधी विपत्ति अपने आप भाग जाती है। मनुष्य प्रयत्न करके प्रतिकूलताओं को निश्चय ही परास्त कर सकता है। अन्धकार के बाद प्रकाश का आना जब निश्चित है तो विपत्ति ही सदा कैसे टिकी रह सकती है? हम हिम्मत बांधें तो ईश्वर की मदद जरूर मिलेगी। परमात्मा सदा से प्रयत्नशीलों की, साहसी, विवेकवान् और बहादुरों की सहायता करता रहा है फिर हमारी ही क्यों न करेगा? शांति के बाद यदि अशांति की परिस्थिति आ धमकीं तो परिवर्तन-चक्र इन्हें सदा थोड़े ही बना रहने देगा।
 

अशान्ति के बाद शान्ति के क्षणों का, विपत्ति के बाद सम्पत्ति का आना भी उतना ही निश्चित है जितना रात के बाद दिन का आना है। फिर हमें निराशा क्यों हो? हम अशान्त और आतंकित क्यों हों?

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