जीवन के प्रति आशंकापूर्ण भावनायें कदापि न करें ~ Never let Fearful Feelings Towards Life


 Summary:
जिन कारणों और अभावों से लोग दुःखी रहते हैं, उनके मूल तक जायें तो यह पता चलता है कि मनुष्य को किसी प्रकार का अभाव उतना दुःख नहीं देता जितना उसकी चिन्तित रहने की प्रवृत्ति दुःख देती है। किसी विषय को लेकर अकारण ही लोग उस पर आशंकापूर्ण कल्पनाएं गढ़ते रहते हैं।
 

 ‘स्टाप वरीइंग एण्ड गेट वेल’ पुस्तक के विद्वान् लेखक डॉ. एडवर्ड पोडोलस्की ने अपनी पुस्तक में लिखा है—‘‘चिन्ता से हृदय, रक्त का बढ़ाव, गठिया, सर्दी, जुकाम तथा बहुमूत्र आदि रोग हो जाते हैं।’’ इस कारण इन रोगों से मुक्ति दिलाने वाले साधन प्रयोग में अवश्य लाने चाहिये।
 

डॉ. ऐलिक्स कैरेल का कथन है कि जो लोग चिन्ताओं से छुटकारे का मार्ग नहीं जानते वे जवानी में ही मर जाते हैं। चिन्ता वास्तव में एक ऐसा रोग है जो अन्दर ही अन्दर जलाता रहता है और सारे रक्त-मांस को जलाकर राख कर देता है।
 

जिन्हें इस जीवन में किसी प्रकार के सुख की आकांक्षा हो, जिन्हें सफलता प्राप्त करनी हो उन्हें सर्वप्रथम चिन्तारहित बनने का प्रयत्न करना चाहिये। इससे अपनी शक्ति सुरक्षित रहेगी। बचाई हुई शक्ति किसी भी कार्य में लगाने से वहीं सफलता के दर्शन होने लगते हैं। चिन्तारहित जीवन सफलता का स्रोत माना जाता है।
 

चिन्ताओं से मुक्ति पाने का सरल उपाय यह है कि सदैव कार्य करते रहें। दत्तचित्त होकर अपने काम में जुटे रहने से सारा ध्यान काम की सफलता पर चला जाता है। चित्त विविध अनुभवों में उलझा रहता है। जब तक अपना काम भली प्रकार पूरा न हो जाय या जब तक पूर्ण सफलता न मिल जाय तब तक सारी मानसिक चेष्टाओं को उसी में लगाये रहेंगे तो चिन्तायें आप ही दूर भाग जायेंगी। अकर्मण्य बने रहने से ही अनावश्यक सोचने-विचारने का समय निकलता है। कहावत है—‘‘खाली दिमाग शैतान का घर।’’ कोई काम न होगा तो चिन्तायें आयेंगी, बुरे-बुरे विचार उठेंगे और उनकी प्रतिक्रिया भी शरीर और मन पर होगी ही।
 

इसलिये किसी न किसी काम में हर समय लगे रहना आवश्यक है। यह देखा जाता है कि लोग बीती हुई घटनाओं की भयंकर कल्पना में अपनी शक्ति और समय का दुरुपयोग करते रहते हैं।
 

इसी प्रकार आने वाली घटनाओं से संघर्ष करने के लिये उत्साह पैदा कीजिये। देखिये आपकी शक्ति भी कितनी प्रबल है। हिटलर कहा करता था—अच्छे से अच्छे भविष्य की कल्पना करनी चाहिये और खराब से खराब परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहना चाहिये। इससे अकारण उठने वाली चिन्ताओं से छुटकारा मिलता है।
 

एक पहलवान की इच्छा थी कि वह दूसरे को पछाड़ेगा। इस आशा से उसने स्वास्थ्य का निर्माण किया। वर्षों तक डंड-बैठक का अभ्यास किया। शक्तिवर्द्धक पौष्टिक आहार जुटाया तब कहीं जाकर दूसरे पहलवान से कुश्ती लड़ने के योग्य हुआ। फिर भी दांव-पेंच नहीं बन पड़े और कुश्ती में हार गया। इससे यह नहीं माना जा सका कि उसका श्रम व्यर्थ गया। उसके परिणाम तो सुन्दर स्वास्थ्य और आरोग्य के रूप में मिले ही। इसके लिये आने वाले भयंकर परिणामों के प्रति पहले से ही साहस पैदा करना चाहिए ताकि बुरे परिणाम की दुश्चिन्ता से बचे रहें। सुखद कल्पना के सत्परिणाम तो आपको मिलेंगे ही उनसे आपको कोई वंचित न कर सकेगा।
 

अकारण चिन्तित रहने का एक कारण यह भी है कि लोग बिना सोचे समझे किसी बात की पूर्ण सफलता का निर्णय कर लेते हैं। यह निर्णय आपके पक्ष में आये ही इसके लिये श्रम, उद्योग और चतुराई भी अपेक्षित थी।
 

चिन्ता एक संक्रामक रोग है जब हम किसी ऐसे व्यक्ति के पास बैठते हैं तो उसकी निराशा के तत्व खींचकर हम भी निरुत्साहित होने लगते हैं। ऐसे लोग सदैव भाग्य को दोष देते रहते हैं। ‘‘हम अभागे हैं’’ हमारा जीवन निरर्थक गया, घर न बनवा सके, जायदाद न खरीद पाये। हम पर परमात्मा नाखुश है आदि निराशाजनक भावनाओं से वे अपना भाग्य तो बिगाड़ते ही हैं अपने सम्पर्क में आने वालों का भविष्य भी अन्धकारमय कर देते हैं। आप सुन्दर भविष्य की कल्पना कीजिये। अधिक योग्य, चरित्रवान्, स्वस्थ और आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बनाने की अनेकों नई-नई योजनायें बनाइये और अपनी परिस्थितियों का उनके साथ मेल होने दीजिए। कोई न कोई योजना जरूर ऐसी आएगी जो आपके विकास में सहायक बनेगी। महापुरुष ईसा ने कहा है ‘‘कल के लिये चिन्ता मत करो, वरन् सुनियोजित प्रयत्न करो ताकि आपका कल अधिक सुनहला हो।’’ अच्छे चिन्तन से, संग्रहीत सांसारिक अनुभवों के सहारे, अधिक उत्साहपूर्वक कार्य करने की शक्ति जागृत होती है।
 

पश्चात्ताप और आत्मग्लानि की दुश्चिन्ता से कार्यनिष्ठा, साहस, शक्ति और कुशलता का नाश होता है। आप सदैव इन से बचने का प्रयत्न कीजिये। जीवन के प्रति आशंकापूर्ण भावनायें कदापि न करें। सदैव भविष्य के मंगलमय होने की कल्पना किया करें। इसी में सुख है शान्ति है, श्रेय है।

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