निर्भयता क्या है और कितने प्रकार की होती है? What is Fearlessness and How many Types are There? Motivation Hindi

 

दोस्तों इस वीडियो में मैं आपको बताने जा रहा हूँ | निर्भयता क्या है? निर्भयता कितने प्रकार की होती है? निर्भयता संकट के समय हमारी शक्ति कैसे बन जाती है?

क्या आप जानते है, मनुष्य जितना निर्भय होगा उतना ही वह महान कार्यों को कर सकेगा। मनुष्य में निर्भयता उत्तम मानसिक स्थिति के परिणाम स्वरूप प्राप्त होती है। यह एक ऐसा  नैतिक सद्गुण है जो बड़े तप और त्याग से प्राप्त होता है। तुम्हारे मन का जितना विकास होता जाएगा उसी अनुपात से निर्भयता की उपलब्धि होती चली जाएगी। जैसे-जैसे तुम अपने आदर्श सिद्धान्तों की रक्षा के लिए त्याग, कष्ट को सहन करते हो, उसी अनुपात में निर्भयता प्राप्त होती जाएगी |

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स्वर्गीय लोकमान्य तिलक ने जब भारत की स्वतन्त्रता का नारा लगाया, “स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर रहेंगे” तब उनके साथ कुछ गिने-चुने व्यक्ति ही थे और दूसरी ओर संसार प्रसिद्ध ब्रिटिश शासन। किन्तु लोकमान्य का स्वर अनेकों का स्वर बना और एक दिन उस शक्ति शाली सत्ता को उखाड़ फेंका गया। भारत स्वतन्त्र हुआ।

जोसेफ मेजनी ने भी इसी तरह इटली की स्वतन्त्रता का संकल्प किया और उस समय की तानाशाही, साम्राज्यवाद के विरुद्ध आन्दोलन उठाया जिसके लिए मौत की सजा निश्चित थी। किंतु मेजिनी का प्रेरणा मंत्र देशवासियों का प्रेरणा मन्त्र बना और इटली स्वतन्त्र हुआ।

महर्षि दयानन्द ने सामाजिक रूढ़ियों के विरुद्ध आवाज उठाई, धार्मिक अन्ध परम्पराओं पर आघात किया और इसके लिए उन्हें कई बार विष दिया गया और इसी से उनकी अन्त में मृत्यु भी हुई।

ईसा मसीह को अपने सुधार कार्य के लिए सूली पर चढ़ाया गया। इस तरह के असंख्यों उदाहरण है जिनमें मनुष्य ने असम्भव से टक्कर ली और उसे सम्भव बनाया। मौत, पीड़ा, कष्ट युक्त यन्त्रणाओं को भी स्वीकार करके सत्य की आवाज बन गई।

निर्भयता कितने प्रकार की होती है?

मित्रो निर्भयता तीन प्रकार की होती है। विज्ञ निर्भयता, विवेकी निर्भयता और ईश्वरनिष्ठ निर्भयता।

विज्ञ निर्भयता- जब मनुष्य जीवन के पथ पर आने वाले विभिन्न खतरों, विघ्न आदि की जानकारी, उनका परिचय प्राप्त कर लेता है | जब उनके समाधान, इलाज का मार्ग जान लेता है तो वह उनके सम्बन्ध में निर्भय हो जाता है। किन्तु जिन खतरों के विषय में वह जानता नहीं उनका भय सदैव बना रहता है। क्या आपने देखा नहीं है कि सर्पों के सम्बन्ध में जानने वाले उनके साथ उसी तरह खेल सकते हैं जैसे बच्चा खिलौने के साथ। ऐसे लोगों के मन से सर्पों का भय दूर हो जाता है। किन्तु शेर को देखकर वे भय से पीले पड़ जाते हैं और उनकी पैंट तक गीली हो जाती है। इसी तरह सरकस के खेल में इशारों पर शेर को नचाने वाला कलाकार सांपों को देखकर भयभीत हो सकता है। इस तरह की निर्भयता मर्यादित है, सीमित है। जिन खतरों के बारे में मनुष्य जानकारी हासिल कर लेता है, उनसे निर्भय हो जाता है किन्तु अन्य से नहीं।

विवेकी निर्भयता- विवेकी निर्भयता में परिपक्व विवेक से बुद्धि नियन्त्रित और शान्त रहती है। मन की इच्छाओं पर अधिकार होता है। किसी भी भयावह परिस्थिति आने पर बुद्धि अशान्त असन्तुलित नहीं होती है। भय, शोक, चिंता, आदि मानसिक वृत्तियाँ मनुष्य पर हावी नहीं हो पातीं है। ऐसी स्थिति में उन परिस्थितियों से बचाव के प्रयत्न सूझने की सम्भावना बहुत अधिक बाद जाती है और मनुष्य परेशानियों से बच जाता है। जिन परिस्थितियों में एक साधारण मनुष्य असन्तुलित होकर उनसे हार मानकर, अपने लक्ष्य के मार्ग से भटक जाता है उन्हीं परिस्थितियों में एक विवेकशील व्यक्ति अपना मार्ग निकाल लेता है और आगे बढ़ जाता है। इस प्रकार मनुष्य अनावश्यक और ऊट-पटांग साहस भी नहीं करता अतः फिजूल के खतरों में पड़ता भी नहीं।

ईश्वरनिष्ठ निर्भयता- ईश्वरनिष्ठ निर्भयता के लिए किसी बाह्य सहायता, साधनों की आवश्यकता नहीं होती। जीवन में ईश्वर के प्रति उसकी सर्व व्यापकता, सर्वशक्ति सम्पन्नता आदि के प्रति दृढ़ निष्ठा, गहरी आस्था, अडिग विश्वास जितना बढ़ेगा उतना ही मनुष्य निर्भय होता जाएगा। ईश्वरनिष्ठ निर्भीकता के आधार पर ही संसार के अधिकाँश महत्वपूर्ण कार्य पूरे  हुए हैं। यह मनुष्य को पूरी तरह निर्भय बना देती है, किन्तु  इसे प्राप्त करने के लिए दीर्घकालीन अभ्यास, पुरुषार्थ और भक्ति की जरूरत होती है। अपने साधनों, चातुर्य आदि पर निर्भय व्यक्ति शत्रु से भी मिलने में बड़ी सावधानी बरतते हैं किन्तु ईश्वरनिष्ठ व्यक्ति तो सभी से सीधा व्यवहार रखता है। वह किसी से नहीं डरता है | ईश्वरनिष्ठ व्यक्ति के लिए दिखावट, बनावट की कोई जगह नहीं होती है। ईश्वर पर अनन्य, निष्ठा से मनुष्य पूर्ण रूप से निर्भय बन जाता है क्योंकि वह अनन्त व्यापक, निर्विकारी सत्य से परिचय कर लेता है।

निर्भयता संकट के समय हमारी शक्ति कैसे बन जाती है?

दोस्तों, निर्भयता मनुष्य की प्रगति और विकास का मार्ग खोल देती है। मनुष्य का विकास, और प्रगति इस बात पर निर्भर रहती है कि वह जीवन में आने वाली उलझनों, कठिनाइयों का समाधान किस तरह करता है।

निर्भीकता इन परिस्थितियों में महान शक्ति बन जाती है। निर्भीकता इन परिस्थितियों में उत्साह पैदा करती है। निर्भीकता इन परिस्थितियों में आशा और प्रेरणा की स्रोत बन जाती है।

कठिनाई से सामना करने में यदि मनुष्य का कोई सहारा साथी है तो वह है निर्भीकता। उलझनों को सुलझाने में यदि मनुष्य का कोई सहारा साथी है तो वह है निर्भीकता। अवरोध के बीहड़ पथ में यदि मनुष्य का कोई सहारा साथी है तो वह है निर्भीकता।

मेरे भाई निर्भीकता ही मनुष्य के पैरों को गति देती है, निर्भीकता ही मनुष्य के हृदय में उत्साह और प्रसन्नता पैदा करती है, निर्भीकता ही मनुष्य के नेत्रों में आशा की चमक पैदा कर देती है। इतना ही नहीं निर्भीकता अनेक लोगों की प्रेरणा सूत्र बन जाती है।

निर्भीकता का भाव संक्रामक रोग की तरह होता है। नेपोलियन बोनापार्ट जब अपनी सेना के बीच रहता था तो उसकी सेना अजेय रहती थी। प्रत्येक सिपाही अपने आपको नेपोलियन के समान ही शक्ति शाली समझता था। नेपोलियन की सफलता का आधार निर्भीकता थी। वह विश्वासपूर्वक कहता था “वह गोली अभी नहीं बनी जो नेपोलियन को मारेगी।”

निर्भयता, व्यक्ति की ही नहीं बल्कि समाज तथा राष्ट्र की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। यह आगामी पीढ़ियों के लिए बहुत बड़ी धरोहर है। हम सभी लोगों को निर्भय बनना है | किसी से डरकर नहीं अपने विचारों को खुलकर कहना है | महात्मा गाँधी जी ने लिखा है “सचमुच वह राष्ट्र महान है जहाँ के लोग मौत के तकिए पर अपना सिर रखकर सोते हैं।”

मेरे भाई जिसने मौत का डर को तोड़ दिया उसे कोई डर डरा नहीं सकता है।

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