आत्मनिर्भर बनो जिससे दूसरों का सहारा न ताकना पड़े ~ Be Self-Sufficient so that You Don't need Help of Other ~ Motivation Hindi


जितना प्रयास तुम दूसरों का आसरा लेने करते हो | जितना प्रयास तुम दूसरों का सहारा लेने करते हो | जितना प्रयास तुम जिस-तिस का दरवाजा खटखटाने में किया करते हो | उतना ही अगर तुमने स्वावलम्बी बनने में लगाया होता तो आज तुम्हें उससे कहीं अधिक मिला होता जितना अन्य किसी की सहायता लेकर तुमने प्राप्त किया होगा |

इस दुनिया में देवताओं की कमी नहीं है | देवताओं की संख्या बहुत है और उनके महत्त्व महात्म्य भी बहुत हैं | परन्तु उनकी सहायता और साधना भी हमेशा इच्छित फल प्रदान नहीं कर सकती है |  एक ही ऐसा देवता है जिसकी साधना अगर तुम करने लगते हो तो तुम्हें इच्छित फल प्राप्त हो सकता है | क्या आप जानते हो इस देवता का नाम क्या है? इस दुनिया में एक ही शक्तिशाली देवता है और वह है - आत्मदेव|


इस दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं होगा जो यह कह सकेगा कि आत्मदेव की पूजा अर्चना से किया गया श्रम निरर्थक चला गया अथवा उसके दरबार से खाली हाथ लौटना पड़ा।

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तुम देवताओं के सामने भिक्षा माँगने में दीन दयनीय बन कर जितना समय लगाते हो | जितना परिश्रम लगाते हो | अगर उससे थोड़ा काम भी तुम इस समय और परिश्रम को आत्मदेव यानी आत्मनिर्भर बनने में लगते तो कहीं अधिक कमा सकते थे |

मेरे भाई यदि इस बात को तुम अपनी आँखों के सामने से ओझल न होने दो | तो तुम न तो तुम्हारा सम्मान कम होगा | न ही तुम अपना स्तर गिरेगा | और न ही तुम घाटे में रहोगे |

क्या तुम जानते हो कि आत्मदेव की उपासना का अर्थ क्या है?

आत्मदेव की उपासना का अर्थ है, अपने गुणों को विकसित करना | अपने कर्म और कार्यो में दक्षता प्राप्त करना | अपने स्वभाव का निर्माण करना | क्या तुम नहीं जानते कि मनुष्य कितनी में प्रचंड शक्तियाँ भरी पड़ी है। उनको तुम थोड़े से प्रयास से कर सकते है | उसकी एक ही शर्त है | अपने को सक्षम और उत्कृष्ट बनाने की अभिलाषा जागृत करो और आत्म परिष्कार के प्रयास में तत्परता के साथ सक्रिय होकर जुट जाओ |

तुम्हारे अंदर इतनी सारी विशेषताएं बीज के रूप में विद्यमान हैं, जिनका जागरण तुम्हे सहज ही प्रगति के उच्च शिखर पर पहुँचा देने में सामर्थ्य रखता है। जितने भी महान पुरुष हुए है उनके जीवन क्रम में पग-पग पर यही तथ्य दिखाई देता है | उन्होंने अपने गुण, कर्म, स्वभाव को व्यवस्थित एवं परिष्कृत बनाने में उत्कृष्ट प्रयास किया और वे उसमें तब तक लगे रहे जब तक आत्म विजय की तपस्या को पूरी तरह फलदायी नहीं बना लिया।

मनुष्य के अंदर आलस और प्रमाद ही दो दुर्गुण है जो तुम्हारे समय को सबसे अधिक मात्रा में खा जाते है | जिसके फलस्वरूप तुम्हारा सौभाग्य ही गम हो जाता है | अगर तुम अपने काम के प्रति उदासी मत बरतो | तुम अपने काम को बोझ समझकर मत करो | अगर तुम ऐसा करते हो तो तुम अपने हाथों ही अपनी सफलता का रास्ता बंद कर देते हो |

तुम अपने काम में मन लगाकर उसे कौशल पूर्वक करो | अपना पूरा पुरुषार्थ उसमे लगा दो | अपने काम में ही आनंद लेने का रहस्य अगर तुम जान गए तो तुम्हारी सफलता सुनिश्चित है | कोई-कोई इस रहस्य को जानते हैं |

पुरुषार्थी व्यक्ति, श्रमशील व्यक्ति, Intelligent और कर्म परायण व्यक्ति आत्म निर्माण में संलग्न रहकर कुछ ही समय में इतने सुयोग्य एवं सक्षम बन जाते हैं कि अपनी उचित आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की पूर्ति सहज ही कर लेते हैं |

व्यवस्थित रीति-नीति अपनाकर निर्धारित लक्ष्य की ओर अनवरत निष्ठा के साथ चलते रहने वाले अन्ततः सफल मनोरथ होकर ही रहते हैं।

स्वावलम्बन की साधना करने वाले ही अपने सभी मनोरथ पूर्ण कर सकने का वरदान प्राप्त करते हैं इस तथ्य को जितनी जल्दी समझ लिया जाय उतना ही श्रेयस्कर है।

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