कटु भाषा को छोड़कर मीठे वचन बोलने की आदत डालिये ~ Leave the Bitter Language ~ Motivation Hindi

दोस्तों बहुत से लोग कटु भाषा का प्रयोग अपने दैनिक जीवन में करते है जिससे उनकी बहुत हानि होती है | आज में आपको बताने जा रहा हूँ कि मधुर वाणी का महत्व क्या है? और क्यों हमें अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करनी चाहिए |


दोस्तों वाणी का मिठास मनुष्य की शालीनता का एक महत्वपूर्ण अंग है। जो कड़ुआ बोलते हैं वे अपने उद्धत अहंकार का प्रदर्शन करते हैं और सामने वाले के स्वाभिमान को सीधी चोट पहुँचाते हैं। इस प्रकार के आचरण से करने वाले को कोई लाभ नहीं मिलता वरन् अपार हानि ही पहुँचती है। अहंकार और कुसंस्कार का भौंड़ा प्रदर्शन ही कटुवचन हैं। ऐसे मनुष्य अपनी इस धृष्टता का कई बार सत्य वक्त − खरी कहने वाले कहकर समर्थन करते पाये जाते हैं पर वस्तुतः यह उनका दंभ मात्र है। सत्य बोलने वाले और खरी कहने वाले के लिए यह आवश्यक नहीं कि वह मानवी शिष्टाचार को ताक में रखकर असभ्य उद्दण्ड और असामाजिक आचरण पर उतर आये।

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यह आवश्यक नहीं है कि हम दूसरों की हर बात से सहमत ही हों और उनकी इच्छानुकूल काम करने ही लगें। मतभेद से लेकर असहमति और इनकार तक की स्थिति हो सकती है पर इस प्रकार का मत व्यक्त करते हुए ‘क्षमा कीजिए’ — हमें बड़ा खेद है— कितने भाग्यशाली होते यदि आपकी सेवा कर पाते — जैसे मधुर शब्दों को प्रयोग तो कर ही सकते हैं। इसमें सामने वाले की मान रक्षा भी हो जाती है अपनी शालीनता भी नष्ट नहीं होती।

जिन्होंने आपकी थोड़ी सी सहायता की हो उन्हें ‘धन्यवाद’ देने और कुछ अनुरोध करना हो तो ‘कृपया’ जैसे शब्दों के साथ कहने में जीभ का कुछ घिस नहीं जाता पर दूसरों पर जो छाप पड़ती है उससे स्पष्ट होता रहता है कि बोलने वाले में शालीनता की मात्रा विद्यमान है। मीठा बोलने के लिए आवश्यक नहीं कि किसी की उचित अनुचित बातों की हाँ में हाँ मिलाई जाय अथवा उसकी विचार एवं क्रिया का समर्थन ही किया जाय।

मीठा बोलने में एक ही दृष्टि प्रधान रूप से ध्यान में रखनी है कि सामने वाले के स्वाभिमान को अनुपयुक्त चोट न पहुँचे, ऐसे कटु वचन न कहें जो उसे तिरस्कृत करते हाँ। यह वैसा ही आक्रमण है जैसा कि मार−पीट करना या शरीर को चोट पहुँचाना। अपमान का आघात भी कम कष्टकर नहीं होता। उसकी प्रतिक्रिया− प्रतिशोध के रूप में होती है। किसी को तिरस्कृत करके उसे अपना शत्रु ही बनाया जा सकता है। उसे सुधारने या बदलना कभी-कभी असंभव होता है। चोट खाया हुआ व्यक्ति अपनी भूल समझ लेने पर भी उसी बात पर अड़ जाता है और प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर गलती का समर्थन ही करता चला जाता है। कटुभाषी प्रायः किसी को सुधार या बदल नहीं पाता केवल अपने प्रति विद्वेष ही उपार्जित करता है।

मीठे वचन का अर्थ है अपनी नम्रता, विनयशीलता, शिष्टता, सज्जनता का और शालीनता का ध्यान रखते हुए शब्दोच्चारण करना। यदि हम गाली−गलौज जैसे मर्मभेदी अपमानजनक शब्द बोलते हैं या दूसरों को मूर्ख बेईमान कहते हैं तो यह उसके स्वाभिमान पर सीधी चोट हुई। सम्भव है सामने वाला भूल या भ्रम से ही वैसा कर बैठा हो जिससे हमने बुरा माना है। संभवतः अज्ञान, प्रमाद या दूर की बात न सोच सकने के कारण ही उससे अप्रिय आचरण बना हो। हम दूसरों की परिस्थिति या मनोभावना का सही मूल्यांकन नहीं कर सकते इसलिए मेरे भाई सीधे ही उस पर दुष्टता या दुर्भावना का आरोपण— इस तरह नहीं करना चाहिए जिससे उसे मर्मभेदी चोट लगे।

मधुर शब्दों में बताई हुई भूल सामने वाले को यह अवसर देती है कि वह अपने कृत्य पर शान्ति पूर्ण ढंग से विचार कर सके और आवश्यकतानुसार अपने को बदल या सुधार सके। हर दृष्टि से लाभ मीठा बोलने में ही है कटु भाषण में नहीं।

 

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