निर्भयता का संकल्प ~ पिप्पलाद संहिता ~ प्राण सूक्त ~ Motivation Hindi


 दोस्तों आज में आपको निर्भयता के संकल्प के बारे में बताने जा रहा हूँ | जिसे हमने पिप्पलाद संहिता के प्राण सूक्त से लिया है | इस संकल्प के दोहराने से आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा | और यह आपके डर और चिंता को दूर करेगा |

दोस्तों अगर इंसान को डरना है तो दो चीजों से डरना चाहिए | सबसे पहला ईश्वर के न्याय से और दूसरा पाप- अनाचार से। जो इनसे डरता है और बचता है, उसे ओर किसी से डरने की आवश्यकता न पड़ेगी| आत्म बल का ज्ञान न होने के कारण लोग छोटे-छोटे कारणों को लेकर चिन्ताग्रस्त, आशंकित, आतंकित एवं भयभीत होते हैं।


जिस प्रकार द्यौ और पृथ्वी न तो किसी से डरते हैं और न क्षीण होते हैं। उसी तरह हे प्राण तू न तो किसी से डर और न क्षीण हो।

जिस प्रकार वायु और अन्तरिक्ष न किसी से डरते हैं और न क्षीण होते हैं। उसी तरह हे प्राण तू न तो किसी से डर और न क्षीण हो।

जिस प्रकार सूर्य और चन्द्रमा न किसी से डरते हैं और न क्षीण होते हैं। उसी तरह हे प्राण तू न तो किसी से डर और न क्षीण हो।

जिस तरह दिन और रात न तो किसी से डरते हैं और न क्षीण होते हैं। उसी तरह हे प्राण तू न तो किसी से डर और न क्षीण हो।

जिस तरह गाय और बैल किसी से न तो डरते हैं और न क्षीण होते हैं। उसी तरह हे प्राण न तो तू डर और न क्षीण हो।

जिस तरह मित्र और वरुण न तो किसी से डरते हैं और न क्षीण होते हैं। इसी तरह हे प्राण न तो तू डर और न क्षीण हो।

जिस तरह ब्रह्म और क्षत्र न तो किसी से डरते हैं और न क्षीण होते हैं। इसी तरह हे प्राण न तो तू डर और न क्षीण हो।

जिस तरह इन्द्र और इन्द्रियाँ न तो किसी से डरते हैं और न क्षीण होती है। इसी तरह हे प्राण न तो तू डर और न क्षीण हो।

जिस तरह वीर और शौर्य न तो किसी से डरते हैं और न क्षीण होते हैं। इसी तरह हे प्राण न तो तू डर और न क्षीण हो।

जिस तरह प्राण और अपान न तो किसी से डरते हैं और न क्षीण होते हैं। इसी तरह हे प्राण न तो तू डर और न क्षीण हो।

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