हम अहंकारी न बनकर स्वाभिमानी बने ~ We Did Not Become Arrogant And Became Self-Respecting ~ Motivation Hindi


 दोस्तों जीवन में स्वाभिमान आवश्यक है पर अहंकार करना हानिकारक होता है। आत्म−गौरव की रक्षा का अर्थ है वैयक्तिक य श्रेष्ठता का इस सीमा तक अक्षुण्ण बनाये रहना कि उस पर उँगली न उठाई जा सके |

क्या आप जानते हो कि अहंकार गुणों का नहीं वस्तुओं का होता है। संपत्ति का, रूप का, बल का, पद का, विद्या का, घमण्ड करना यह बताता है कि इस व्यक्ति की समझ उन सांसारिक पदार्थों को ही महत्व देने तक सीमित है, जिनके स्थायित्व का कोई ठिकाना नहीं है।

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आज जो धनी है, वे सारे जीवन भर धनी रहेंगे, इसका कोई ठिकाना नहीं। घर के लड़के व्यसनी, आलसी एवं कुमार्गगामी निकले तो भी संपत्ति देर तक नहीं ठहरती, भले ही वह कितनी ही अधिक क्यों न हो ऐसे अगणित उदाहरण देखने सुनने को मिलते रहते हैं जिनमें पिछले दिनों सुसम्पन्न कहलाने वाले व्यक्ति आज दर−दर की ठोकरें खाते देखे जाते हैं। इन सब बातों का जो ध्यान रखेगा वह सम्पत्ति की अस्थिरता को अनुभव करेगा और उस पर घमंड करने का कोई कारण न देखेगा, धन का अहंकार आज किया जा सकता है पर कल जब वह न रहेगा तो आसमान से गिर कर पाताल से टकराने जितनी चोट लगेगी। हर कोई उस पतन का मजाक उड़ायेगा। ऐसे व्यक्ति दूसरों की सहानुभूति भी अर्जित नहीं कर पाते।

अहंकार का उद्देश्य ही यह है कि सामने वालों को यह अनुभव कराया जाय कि वे अहंकारी की तुलना में छोटे हैं। अमीरी के ठाठ−बाठ इसी दृष्टि से बनाये जाते है कि संपर्क आने वाले लोग अपने साथ उसकी तुलना करें और यह स्वीकार करें कि यह व्यक्ति हमारी अपेक्षा बड़ा है। वैभव के आधार पर बड़प्पन पाने का तरीका ही यह है कि लोगों को अनुभव करने दिया जाय कि वे तुलना में बहुत छोटे हैं।

रूप का अहंकार प्रदर्शित करने के लिए नई उम्र के लोग बन–ठनकर निकलते, शृंगार बनाते और बचकानी चाल−ढाल अपनाते है। उनका उद्देश्य दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करके यह छाप डालना होता है कि उनके रूप के साथ देखने वाले अपने रूप–यौवन की तुलना करें और यह स्वीकार करें कि यह रूपवान व्यक्ति कितना सुन्दर और सौभाग्यशाली है।

अपव्यय की पूर्ति के लिए उन्हें अवाँछनीय और अनैतिक तरीके अपनाने पड़ते हैं। युवा लड़कियों का इस प्रकार ‘इठलाना’ तो उनके लिए दुष्ट, दुराचारियों कि शिकार बनने के लिए स्पष्टतः भयंकर खतरा उत्पन्न करता है। किसी भी दृष्टि से विचार किया जाय, रूप−यौवन का उद्धत प्रदर्शन करना एक ओछे किस्म का और हानिकारक प्रयास ही सिद्ध होता है।

शारीरिक बल का प्रचंड प्रदर्शन करने के लिए आम−तौर से गुण्डागर्दी का सहारा लिया जाता है अथवा बलिष्ठ सिद्ध होने के लिए कोई अचंभे जैसा श्रम किया जाता है। यह दोनों ही चेष्टाएँ अन्ततः हानिकारक ही सिद्ध होती है।

संस्थाओं में महत्वपूर्ण पद पाकर उद्भव आचरण एवं अहंकार प्रदर्शन करने वालों की भी दुर्गति ही होती है। उनके विरोधी प्रतिद्वंद्वी खड़े हो जाते हैं और पदों की छीना−झपटी का ऐसा कुचक्र चलता है कि न केवल संस्थाओं का ढाँचा ही लड़खड़ाने लगता है वरन् वह उद्देश्य भी नष्ट होता है जिसके लिए उन्हें खड़ा किया गया था।

दोस्तों विद्या की प्रतिक्रिया विनय होनी चाहिए। फलों से लदे हुए वृक्षों की डालियाँ नीचे झुक जाती हैं। विशिष्टताओं और विभूतियों से लदे मनुष्यों को तो नम्रता और सज्जनता से भरा पूरा होना चाहिए। झुकना ही उनकी महानता है। विद्वान, गुणवान, कलाकार,या ऐसे ही अन्य विशिष्ट व्यक्ति तभी सम्मान के योग्य बनते हैं जब उनमें सौजन्य का आवश्यक मात्रा बनी रहे।

ज्ञान का अहंकार सबसे घटिया किस्म का है। धन,बल, रूप आदि भौतिक पदार्थों के कारण बने अहंकार को तो एकबार यह सोचकर उपेक्षा भी की जा सकती है कि यह बन्दर के हाथ तलवार लगने जैसी विडंबना है। विद्वान का अहंकार अक्षम्य है। ज्ञान के साथ तो सज्जनता और शालीनता जुड़ी ही रहनी चाहिए। यदि विद्वान, ज्ञानी, संत, घमंडी होंगे तो फिर नम्रता और विनयशीलता का अनुकरणीय आचरण कहाँ से सीखा जायगा?

प्रत्येक सम्पत्ति अस्थिर है। पानी की लहरों की तरह उनका आना जाना बना रहता है। आयु बढ़ने के साथ-साथ रूप, यौवन ही नहीं विद्या बुद्धि भी घटने लगती है। धन तभी तक अपना है जब तक उस पर अपना नियन्त्रण है। बेटे, पोतों के हाथ में सत्ता चले जाने पर धन समझा जाने वाला वृद्ध पुरुष भी अनाथ निर्धन जैसा परमुखापेक्षी हो जाता है। पद छिनने के बाद उच्च पदाधिकारी भी चपरासी से गये बीते बन जाते हैं। जिन आधारों की देर तक ठहरने की सम्भावना नहीं, जो वर्ष में बिजली की तरह चमक कर विलीन हो जाते हैं उन वैभवों का घमंड करना अपनी अदूरदर्शिता का परिचय देना ही है। इस अहंकार प्रदर्शन में ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, विरोध, विद्रोह एवं ठगे, बहकाये जाने के इतने अधिक खतरे मौजूद हैं जिन्हें देखते हुए विज्ञ व्यक्ति इसी निष्कर्ष पर पहुँचता है कि ओछेपन की इस मूर्खता से जितनी जल्दी छुटकारा पाया जा सके उतना ही उत्तम है।

निन्दा अहंकार की है, स्वाभिमान की नहीं। स्वाभिमान अपने आत्मिक स्तर को अक्षुण्ण बनाये रहने से सम्बन्धित है। नियमित समय का पालन, श्रमशीलता कर्त्तव्य−निष्ठा उत्तरदायित्वों का निर्वाह, मर्यादाओं का पालन, प्रामाणिक सदाचरण, सज्जनोचित सद्व्यवहार, न्यायानुसार निष्पक्ष चिन्तन, उदात्त दृष्टिकोण, उदार व्यवहार जैसी वैयक्तिक क विशेषताओं का संरक्षण एवं अभिवर्धन ऐसी विभूतियाँ हैं जिन पर गर्व करना उचित कहा जा सकता है। इन विभूतियों को नष्ट होने देने के लिए जो सुरक्षात्मक मनोबल अन्तःकरण में विद्यमान रहता है उसे स्वाभिमान कहते हैं। इस स्वाभिमान की रक्षा के लिए हमें प्राण−प्रण से प्रयत्न अहंकार को निरस्त करना ही श्रेयस्कर हैं।

 

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