तुम हँसता हँसाता जीवन क्यों नहीं जी सकते? ~ Happy Life ~ Motivation Hindi

किसी की आत्मा पर अनावश्यक भार लदा है या नहीं इसकी नाप−तौल इस आधार पर की जा सकती है कि वह कितना खिन्न, असन्तुष्ट रहता है अथवा हँसता−मुसकराता दिखाई पड़ता है। खीज, असन्तोष, रोष, उद्वेग से जलते−भुनते व्यक्ति को देखकर सहज ही यह कहा जा सकता है कि विकृत चिन्तन का शिकार है। इसकी जीवन नाव दृष्टि दोष के भँवर में फँसकर डूबने की तैयारी कर रही है। नी कठिन कसौटियों पर कसे जाने के लिए कितनी प्रसन्नतापूर्वक प्रस्तुत किया।

धनी और दरिद्र−विद्वान और मूर्ख−पुण्यात्मा और पापी परिस्थिति वश अनुकूलता, प्रतिकूलता के झूले पर प्रकृति क्रम के अनुसार आगे पीछे झूलते रहते हैं। लाभ−हानि, सुख−दुःख और यश−अपयश के अवसर हर किसी के जीवन में रात और दिन की तरह आते−जाते हैं। न उससे ज्ञानी बचते हैं न अज्ञानी।

ताश,शतरंज से लेकर−हाकी, पोलो या दूसरे विभिन्न खेलों के खिलाड़ी घड़ी−घड़ी में हारते−जीतते रहते हैं। पर उससे उनके उत्साह में कोई फर्क नहीं पड़ता। हार में न वे रोते हैं और न जीत में उछलते हैं।

निश्चिन्तता, निर्भयता जैसे गुणों की इसलिए प्रशंसा की गई है कि वास्तविक कठिनाई आने पर उसका सामना कर सकने योग्य साहस और विवेक सुरक्षित बना रहता है। यदि संकट सिर पर आ ही जाय और उसे भुगतना ही पड़े तो भी हलकी मनःस्थिति वाला व्यक्ति उसे धैर्यपूर्वक सहन कर लेता है। वह सोचता है, जब अच्छे दिन नहीं रहे तो यह बुरे दिन भी बहुत समय तक क्यों टिकेंगे। समय बदलेगा, अच्छी स्थिति आवेगी और फिर नये सिरे से प्रयत्न करके प्रस्तुत हानि की क्षति पूर्ति कर लेंगे। विपत्ति को टालने अथवा हलका करने का सबसे सस्ता और सबसे हलका नुस्खा यह है कि कठिनाई को हलकी माना जाय और उसके हल हो जाने पर विश्वास रखा जाय।

उन्नति के लिए उत्साहपूर्वक प्रयास करना एक बात है और अपने आपको दीन दरिद्र अनुभव करना दूसरी। खिलाड़ी अधिक रन बनाने के लिए, पहलवान कुश्ती पछाड़ने के लिए, छात्र ऊँचा वज़ीफ़ा पाने के लिए प्रतियोगिता में उतरते हैं, प्रयत्न करते और विजय उपहार पाते हैं। पर इनके न मिलने तक अपने आपको दीन−दुःखी नहीं मानते रहते। उन्हें अपनी सामयिक स्थिति पर सन्तोष भी होता है और गर्व भी। फिर भी अधिक प्रसन्नता पाने−अधिक ऊँचे उठने के लिए प्रयत्न जारी रखते हैं।

हलकी−फुलकी, हर्षोल्लास एवं सन्तोष, आनन्द से जिन्दगी जीने की योजना बनानी चाहिए और इस मार्ग में जो−जो अवरोध हों उन्हें चुन−चुनकर मार्ग से हटाना चाहिए। जो ईश्वर ने दिया है वह भी कम नहीं है। हमारा अधिकाँश मानसिक बोझ अवास्तविक और निराधार होता है। चिन्तन की विकृतियाँ ही हमें अशान्त बनाये रहती हैं। सन्तान न होने पर कितने ही व्यक्ति दुःखी रहते हैं जबकि उत्तरदायित्वों का बोझ हलका होने के कारण उन्हें सन्तान का भार वहन करने में बेतरह पिसते हुए लोगों की तुलना में अधिक प्रसन्न होना चाहिए था।

इसी प्रकार अनेकों अनावश्यक महत्वाकाँक्षाएँ दुःखी बनाये रहती हैं। जिनके जीवन−क्रम का सामान्य निर्वाह क्रम रुकता नहीं। कठिन समय में भी चिन्तन का परिष्कृत स्तर मन का भार हलका करने में बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है। खोज करने पर प्रतीत होगा कि दुःखी मनःस्थिति का बहुत बड़ा कारण सही ढंग से सोच सकने में त्रुटि रहना ही था। उसे सुधार लेने पर अधिकाँश समस्याओं का हल मिल जाता है फिर भी जो रह जाय उसे हर किसी को कुछ न कुछ कमी, कठिनाई रहने के सामान्य क्रम को ऐसे ही हँसते−खेलते सहन किया जा सकता है।

मेरे भाई इसी प्रकार अन्य अप्रिय प्रसंग हर किसी के जीवन में कभी न कभी घटित हुए ही होते हैं। यदि उन्हें ढूँढ़−ढूँढ़कर एकत्रित किया जाय और उन्हीं को स्मरण करते रहा जाय तो लगेगा कि सारी जिन्दगी दुःख, कष्ट सहते−सहते असफल बीत गई। इसके विपरीत यदि सुखद प्रसंगों को ढूँढ़ा जाय तो वे भी इतने अधिक दिखाई पड़ेंगे जिनके आधार पर सुखी जीवन जी लेने का गर्व किया जा सके। एक स्मृति दुःखी बनाती है और दूसरी के कारण होठों पर मुसकान दौड़ने लगती है। दोनों में से जिस का भी चुनाव करना हो प्रसन्नतापूर्वक किया जा सकता है।

हँसी−खुशी का हलका−फुलका जीवन शारीरिक, मानसिक,पारिवारिक, आर्थिक सभी पक्षों को प्रभावित करता है और सुखद सम्भावनाएँ विनिर्मित करने में भारी योगदान देता है। वह कठिन नहीं अति सरल है। चिन्तन में थोड़ा हेर−फेर करके हम खिन्न, उद्विग्न जीवन को हँसता−हँसाता बनाने में अभीष्ट सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

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