मनुष्य में साहस हो तो सफल होने के साधन भी मिल जाते हैं ~ If Man has Courage ~ Motivation Hindi

दोस्तों साहस हो तो सफल होने के साधन भी मिल जाते हैं | बहुत बार लोगो के मन में यह प्रश्न उठता है कि साधन होने पर इंसान साहसिक सफलताएं प्राप्त कर सकता है या अन्तःक्षेत्र में प्रचण्ड इच्छाशक्ति रहने पर अद्भुत कार्य कर सकने की क्षमता एवं सुविधा जुटा सकता है। 


इस प्रश्न का अनेकों बार समाधान हो चुका है। बहुत से लोगों ने असम्भव समझे जाने वाले कार्य हाथ में लिए हैं और पूरे कर दिखाये हैं। जबकि दूसरी ओर साधन होते हुए भी कितने ही व्यक्ति कोई महत्वपूर्ण कदम उठा नहीं पाते है | किन्तु यदि लगन हो तो न केवल क्षमता विकसित होती है, पर साधन सामग्री भी जुटती है, सहायक मिलते हैं और ऐसे काम सम्भव हो जाते हैं, जिन्हें सामान्य बुद्धि से देवी चमत्कार ही कह सकते हैं।

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मनुष्य के दैत्य का कोई अन्त नहीं, वह डरपोक, कायर और स्वार्थी भी परले दर्जे का है किन्तु सदा ही वैसा नहीं होता, सभी वैसे नहीं होते। जिन्हें अपने मानवी पौरुष का सम्मान भरा बोध होता हे वे महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्राचीन समय से ही भयंकर खतरे उठाते रहे हैं। डरते, सहमते किसी प्रलोभन या भय के कारण नहीं स्वेच्छापूर्वक ऐसे दुस्साहसों को चुनाव करते रहे हैं जिनमें लोकहित के साथ-साथ उन्हें प्रखर पुरुषार्थ दिखाने का अवसर मिल सके।

क्या आप जानते हो कि दक्षिणी ध्रुव की खोज के विचार को कार्यान्वित करने की आवश्यकता ने एक मामूली से फिटर को एक अद्भुत आविष्कार करने का अवसर दिया। वह यह सोचता रहा कि बर्फ की मोटी सतह छेदकर समुद्र के गहरे जल में प्रवेश कर सकना और वहाँ की ठंडक को कम करके खोज के लायक तापमान उत्पन्न कर सकना कैसे सम्भव हो सकता है ? उस फिटर ने विज्ञान पढ़ा और समुद्र में पानी की ठंडी, गरम परतों के बारे में गहरा अध्ययन किया। इस जानकारी के आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि बर्फ के नीचे ठंडा पानी और ठंडे पानी के नीचे गरम पानी की परतें हैं यही हाल आकाश में हवा का भी है। ठंडी गरम परतों के रूप में हवा भी ऊपर आकाश में फैली हुई हैं। समुद्र का भी यही हाल है। ऐसी दशा में यह सम्भव है कि नीचे के गरम पानी को ऊपर और ऊपर के ठंडे पानी के नीचे धकेलने का रास्ता बन सके तो दक्षिणी ध्रुव के समुद्र में गहरे गोते लगाये जा सकते और नीचे क्या कुछ भरा पड़ा है , इसका पता लगाया जा सकता है। ऊपर कई जगहें ऐसी हैं जहाँ सिर्फ 15 फुट मोटी बर्फ है उसमें छेद करके पानी में जाने का रास्ता बना लेना तो प्रस्तुत औजारों से ही हो सकता है। उसमें कुछ विशेष कठिनाई नहीं है।

आखिर इस प्रयोजन को सिद्ध करने वाली मशीन बना ही ली गई उसका नाम रखा गया ‘ऐकाथर्म’ इसका प्रयोग कई झीलों में और खुले समुद्रों में किया गया वह अपना प्रयोजन पूरा करने में समर्थ थी। इसे लेकर समुद्री गोताखोर जिमथार्न स्वयं इस क्षेत्र में पहुँचा। इसके लिए अमेरिकी जलसेना का एक जलयान एडिस्टोपर और एक हैलिकाप्टर प्राप्त कर लिया गया। आवश्यक उपकरण लेकर जो समूह दक्षिणी ध्रुव से नई जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए रवाना हुई उसमें ऐसे पाँच व्यक्ति थे जो शोधकार्य की आवश्यक योग्यता से सम्पन्न थे।

इन लोगों ने ध्रुव क्षेत्र की लम्बी यात्राएं कीं। बहुत कुछ ढूंढ़ा-खोजा और पाया। हमें इतना जान लेना ही पर्याप्त है कि उन लोगों को पग-पग पर प्राण संकट का सामना करना पड़ा होगा। इन्हीं में एक कार्य सील मछली पर सवारी गाँठना भी शामिल था। ये खौफनाक विशालकाय मछली कभी-कभी ध्रुवीय बर्फ में जहाँ-तहाँ पाये जाने वाले छेदों में होकर ऊपर उछल आती हैं और बर्फ पर धूप सेंकने का आनन्द लेती हैं। साधारण मनुष्य उनका नाम सुनते ही डर सकता है। पर जिमथार्न ने दौड़कर उनमें से एक पर सवारी गाँठ ली और उस ऊंट की तरह बलबलाती मछली पर चढ़कर तब तक यात्रा की जब तक कि वह अपनी सुरंग के प्रवेश द्वार तक न पहुँच गई। ऐसे-ऐसे अनेक दृश्यों के चित्र और वहीं की परिस्थितियों के प्रमाण साधन ढूंढ़कर लाये जिनसे आगे चलकर उस क्षेत्र का सम्बन्ध में उन जानकारियों की शृंखला बन गई जो आगे चलकर समस्त मानव जाति की प्रगति के महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

मनुष्य पुरुषार्थ का पुतला है, उसकी शक्ति और सामर्थ्य का अन्त नहीं। वह बड़े से बड़े संकटों से लड़ सकता है और असम्भव के बीच सम्भव की अभिनव किरणें उत्पन्न कर सकता है शर्त यही है। कि वह अपने को समझे और अपनी सामर्थ्य को मूर्त रूप देने के लिए साहस को कार्यान्वित करे।

 

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