मनुष्य साहस के बल पर ही उन्नति और सफलता प्राप्त करता है ~ On the Strength of Courage ~ Motivation Hindi

 हर इंसान को यह पता है कि कहने लायक सफलताएँ प्रबल पुरुषार्थ का मूल्य चुकाने पर ही मिलती हैं। परन्तु कुछ लोगों के लिए कुछ न कहना ही उचित है, जो देवी−देवताओं की−वरदान आशीर्वाद की−सस्ती पगडण्डियाँ ढूंढ़कर जादू के जोर से बढ़े−चढ़े लाभ प्राप्त करने के सपने देखते रहते हैं और जब निराशा हाथ लगती है तो बहकी−बहकी बातें करते हैं।

मेरे भाई सच तो यह है कि महत्वपूर्ण सफलताएँ न तो भाग्य से मिलती हैं और न सस्ती पगडण्डियों के सहारे काल्पनिक उड़ाने उड़ने से मिलती है | इंसान को भी जो मिलता है, उसके लिए योजना बनाकर लगातार पुरुषार्थ करना पड़ता है।

क्या आप जानते हो कि सफलता प्राप्त करने के तीन मूल स्रोत हैं।  सफलता प्राप्त करने के तीन मूल स्रोत हैं पहला अपनी योग्यता बढ़ाते रहना | दूसरा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के साधना जुटाना तीसरा बिना थके बिना हिम्मत खोये लगातार मेहनत करते रहना

| इन्हीं तीन आधारों के बल पर ही सफलताएँ मिलती है |

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पुरुषार्थ के दो अंग क्या हैं? पहला है शारीरिक श्रम और दूसरा है उत्साह भरा मनोयोग। जिस प्रकार बिजली के दो तार मिलकर करेन्ट उत्पन्न करते हैं। उनके अलग−अलग रहने पर शक्ति का संचार नहीं होता है। अकेला श्रम तो मशीन भी करती है और पशु भी काम करने में लगे रहते हैं। यह पुरुषार्थ कहाँ हुआ? जब उस श्रम के साथ पूरा उत्साह लगता है और कार्य को अधिक सुन्दर बनाने की बात प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाती है तो फिर मध्यम स्तर का मस्तिष्क भी चतुर लोगों के कान काटने लगता है। मनोयोग से कुशलता एवं प्रवीणता का पथ−प्रशस्त होता है जिस कार्य में जितनी तत्परता बरती जायगी और जितनी गहराई तक उसे अधिक अच्छा बनाने का उपाय सोचने में उतरा जायगा, उतना ही प्रगति का पथ−प्रशस्त होता जायगा। आरम्भ में सामान्य से दीखने वाले व्यक्ति इसी आधार पर अपनी कुशलता बढ़ाते हुए असामान्य कहलाने की स्थिति में पहुँच जाते हैं।

आश्चर्य तब होता है जब श्रम करने के सर्वथा उपयुक्त शरीर और प्रतिभा सम्पन्न मस्तिष्क होते हुए भी लोग ऐसे ही निष्क्रिय बने रहते हैं और मन्द गति से अन्त−व्यस्त रीति से ज्यों−त्यों कुछ खट−पट भर करते हुए दिन गुजारते रहते हैं।

दोस्तों, शारीरिक, मानसिक क्षमताएँ और उपयुक्त साधन सहयोग होते हुए भी मनुष्य क्यों कुछ कर नहीं पाता हैं। इसका कारण तलाश करने पर एक ही निष्कर्ष निकलता है कि साहस का अभाव शिथिलता का प्रमुख कारण है। भाप या तेल न रहने पर इञ्जन चलने बन्द हो जाते हैं, भले ही उनके कलपुर्जे सब प्रकार सही हों। जो काम मशीनों के चलने में तेल या बिजली की शक्ति काम करती हैं वही साहस के बल पर मानवी सत्ता काम करती है। पराक्रम दृश्य स्वरूप है और साहस उसका प्राण। प्राण के बिना शरीर की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती। साहस के अभाव में शरीर और मस्तिष्क की भौतिक क्षमता कितनी ही बढ़ी−चढ़ी क्यों न हो उसका कोई उपयोग नहीं हो पाता। भीतर का उत्साह न जगे, किसी प्रक्रिया की पूरा करने के लिए इच्छा शक्ति−संकल्प शक्ति की आन्तरिक स्फुरणा का संचार न हो तो फिर शरीर मन में न तो उमंगें उठती हैं और न समर्थ सक्रियता का संचार होता है। अर्ध मृतक जैसी−अर्ध मूर्छित जैसी अन्त चेतना के बलबूते पर कोई कहने लायक पुरुषार्थ किसी से भी बन नहीं पड़ेगा।

क्या आप जानते हो की साहस किसे कहते हैं? शौर्य, साहस शब्द का प्रयोग अक्सर युद्ध क्षेत्र में दिखाई गई वीरता के अर्थ में होता है। पर यह परिभाषा बहुत ही संकुचित है। वास्तव में आलस्य प्रमाद हटाकर शारीरिक एवं मानसिक स्फूर्ति उत्पन्न करने वाली उमंग को साहस कहते हैं। इसका पहला निशाना अपनी उदासी एवं उपेक्षा वृत्ति को बनना पड़ता है। उसके बाद अन्य दोष दुर्गुणों को ढूँढ़−ढूँढ़ कूड़े के ढेर में फेंक देने के रूप में अगला कदम उठता है।

तुम्हारे व्यक्तित्व को उभरने से कौन रोकता है? निराशाजनक भविष्य की डरावनी कल्पनाएं तुम्हारे व्यक्तित्व को उभरने से रोकती है, असफलता की आशंकाएँ तुम्हारे व्यक्तित्व को उभरने से रोकती है, अयोग्यता और दुर्भाग्य ग्रस्त होने की मान्यताएँ तुम्हारे व्यक्तित्व को उभरने से रोकती है| इन बुरी कल्पनाओं की घटनाओं को हटाने में साहस ही समर्थ होता है।

क्या कायरता और सज्जनता एक ही वस्तु है?  काल्पनिक कठिनाइयों से तुम डरे सहमे रहते हैं | जिसके कारण तुम कुछ करने के लिए कदम बढ़ाने से पहले ही अनिष्ट की आशंका से भय−भीत हो जाते हो | तुम अपनी हिम्मत खो बैठते हो | तुम्हें अपनी योग्यता पर विश्वास ही नहीं रहता है, तुम्हें अपने क्षमता पर विश्वास नहीं रहता है, तुम्हें अपनी प्रखरता पर विश्वास ही नहीं रहता है|  तुम समय पर अनुकूलता और उदार सहायता की भी आशा खो देते हो। इस तरह तुम आत्म हीनता की ग्रन्थि से बुरी तरह जकड़ जाते हो |

किसी के सामने अपने विचार व्यक्त करते हुए−प्रयोजन रखते हुए तथा उचित सहयोग की माँग करते हुए तुम्हारा मुँह ही नहीं खुल पाता है। तुम्हारी मन की बात मन में ही दबी रहती है। तुम्हें लगता है कहने पर कोई झिड़क देगा, तुम्हारा उपहास करेगा इसलिए तुम चुप रहना ही अच्छा समझते हो।

इस तरह तुम अन्याय को सहते रहते हैं, अनीति के विरुद्ध आवाज उठाने की तुम  हिम्मत नहीं करते हो | तुम रोते कुसमुसाते सहते तो बहुत कुछ हो, पर प्रतिकार के लिए कुछ कहने−करने में तुम्हारी नानी मरती है। अपनी इस कायर दुर्बलता को तुम कभी−कभी सज्जनता, कभी सहनशीलता, आदि का नाम देने का प्रयास करते रहते हो | यह झूठा दब्बूपन तुम्हारी आत्मा को धोका देना है |  मेरे भाई कायरता और सज्जनता एक ही वस्तु है | मैं यह किसी अन्य को नहीं समझा सकता।

टिटहरी के साहस की कहानी: दोस्तों पौराणिक कथाओं में टिटहरी की कहानी बहुचर्चित रही है, जिसके अण्डे पानी में बहकर समुन्द्र में चले गए |  उस टिटहरी ने उन्हें वापस लेने का साहस किया था और चौंच से मिट्टी डाल−डाल कर समुद्र को पाटने की शुरूआत की थी | कहते हैं कि उस साहस से प्रभावित होकर अगस्त मुनि सहायता के लिए खड़े हुए थे और उनके प्रयत्न से टिटहरी को अण्डे वापस मिले थे। मेरे भाई इस कहानी की सच्चाई पर तुम संदेह कर सकते हो | परन्तु यह तथ्य सुनिश्चित है कि दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति जब व्यवस्थित योजना बनाने और उसकी पूर्ति के लिए समग्र तत्परतापूर्वक कार्य लग जाते हैं, तो देर सवेर उन्हें सफलता मिलकर ही रहती है। पुरुषार्थी व्यक्ति जन सहयोग और देव अनुग्रह को बल पूर्वक अपनी ओर आकर्षित करते हैं और उन्नति के उच्चशिखर तक पहुँच कर रहते हैं।

दुस्साहस किसे कहते हैं? दुस्साहस तो उसे कहते हैं जिसमें नीति और मर्यादाओं का ध्यान न रखकर उद्दंडता अपना ली जाती है। दुस्साहस उसे भी कहते हैं जिसमें योग्यता, साधन, अवसर, एवं परिस्थितियों का ध्यान न रखते हुए ऐसे ही ऊट−पटाँग काम आरम्भ कर दिये जाते हैं और जब वस्तुस्थिति का सामना करना पड़ता है तो साधन रहित छलाँगे लगाने वाले की टाँग जिस तरह टूटती है, उस तरह पछताना पड़ता है। साहस के नाम पर कई बार लोग दुस्साहस कर बैठते हैं और उस मूर्खता के कारण उपहास के पात्र बनते हैं।

दोस्तों  प्रशंसा उस साहस की है जिसमें अपनी क्षमता को अतिवाद से बचाकर यथार्थ रूप से आँका जाता है। दूरदर्शिता−पूर्ण, संतुलित एवं व्यावहारिक कार्यक्रम निर्धारित किया जाता है। उसके भले−बुरे सभी पहलुओं पर विचार कर लिया जाता है− आवश्यकतानुसार सुधार संशोधन का प्रावधान रखा जाता है। जब आवश्यक समीक्षा विवेचना के उपरान्त कदम उठाने का निर्णय हो गया तो उस राह पर चल ही पड़ते हैं। परिस्थितिवश सरलता भी हो सकती है, अनुकूलता मिल सकती है और अभीष्ट सफलता आशा से कहीं पहले मिल सकती है। लक्ष्य से आगे बढ़ जाने के अवसर भी आ सकते हैं। किन्तु ऐसा भी हो सकता है कि कई प्रकार की अकल्पित कठिनाइयाँ सामने आ खड़ी हों और उनके सुलझाने में बहुत प्रयास भी करना पड़े। ऐसी स्थिति में प्रगति क्रम धीमा रह सकता है और रास्ते में हेर−फेर करने की आवश्यकता पड़ सकती है। इन अड़चनों के रहते हुए भी यदि हिम्मत न टूटी और खेल जैसी हार−जीत को मनोरञ्जन क्रम भर मान रखा गया तो काम मले ही बिगड़ जाय पर साहस नहीं टूटेगा। इस बार की असफलता के पीछे छिपी भूलों को अपनी अनुभव शृंखला में संजोकर रखा जा सकता है और अगले कार्यों में भूलों की पुनरावृत्ति न होने देने का विशेष ध्यान रखते हुए इतनी अच्छी सफलता पाई जा सकती है जो पिछली क्षति की सन्तोषजनक पूर्ति कर दे।

बुजदिली क्या है? भीतर की बुजदिली का प्रतिबिम्ब बाहरी दुनिया में डरावनी विभीषिकाएं बनकर सामने आ खड़ा होता है। रात के अँधेरे में झाड़ी भूत बनकर और रस्सी साँप बन कर डराती है। मरघट में खड़े हुए पीपल के पत्ते जब हवा में खड़−खड़ाते हैं तो लगता है डालियों पर भूत नाच रहे हैं। वास्तविक भूतों का अस्तित्व कदाचित ही कभी देखने में आता है 99 प्रतिशत उनकी सत्ता लोगों की डर भरी कुकल्पनाओं पर ही टिकी रहती हैं। यह डरे हुए लोग उन काल्पनिक भूतों से भयंकर त्रास पाते हैं और कभी−कभी तो मृत्यु के मुख तक में चले जाते हैं। यह आत्म दुर्बलता का ही त्रास है।

बहादुर लोग सोचते हैं जब शरीर धारी जीवित मनुष्य किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो यह शरीर साधन से रहित मरे हुए भूत यदि होते भी होंगे तो हमारा क्या बिगाड़ कर सकते हैं। मरघटों के नजदीक खेतों में किसान रात में भी रहते, फसल, रखाते और हल जोतते हैं, अपनी निर्भयता के कारण उनकी पूर्ण सुरक्षा रहती है और कभी भूतों से पाला ही नहीं पड़ता है।

बुजदिली एक रंगीन चश्मे की तरह है जिसे पहन लेने पर डरावना रंग ही चारों ओर छाया हुआ दीखता है। रास्ता चलते लोग डाकू, आक्रमणकारी लगते हैं और हर दिशा से विपत्ति के पहाड़ टूटते प्रतीत होते हैं। हर घड़ी यही लगता है कि अगले दिनों मुसीबत की घड़ी आने ही वाली हैं। घाटा, बीमारी, मृत्यु, मुकदमा, आक्रमण जैसी आशंकाएँ ही मस्तिष्क में घुमड़ती रहती हैं। इस प्रकार की असंतुलित मनः स्थिति में कुछ सोच सकना और भावी गतिविधियों का निर्धारण कर सकना भी सम्भव नहीं होता। ऐसे व्यक्ति बहुधा डरे−सहमे किसी कोने में दबे−छिपे अपने दिन काटते हैं और अपनी सहज प्रतिभा को सरलतापूर्वक मिल सकने वाला लाभ भी नहीं उठा पाते। इस प्रकार की छोटी−छोटी हानियाँ हर घड़ी उठाते−उठाते समूचे जीवन में भयजन्य क्षति इतनी बड़ी होती है जिसका लेखा−जोखा लेने पर प्रतीत होता है कि इसी दुर्बलता के कारण तीन चौथाई उज्ज्वल सम्भावनाएँ अकारण नष्ट हो गईं।

मेरे भाई इस बात को सदा याद रखो, साहस सदा बाजी मारता है। अन्दर का शौर्य वाह्य जीवन में पराक्रम और पुरुषार्थ बनकर प्रकट होता है। कठिनाइयों के साथ दो−दो हाथ करने की खिलाड़ी जैसी उमंग, मनुष्य को खतरा उठाने और अपनी विशिष्टता प्रकट करने के लिए प्रेरित करती है साहसी लोग बड़े−बड़े काम कर गुजरते हैं। बड़े कदम उठाने में पहल तो उन्हें ही करनी पड़ती है, पर पीछे कहीं न कहीं से सहयोग भी मिलता है और साधन भी जुटते हैं। सफलताओं के ताले साहस की चाबी से खुलते हैं। दूसरे मनुष्य जब गई−गुजरी परिस्थितियों में रहते हुए अपना प्रगति क्रम जारी रखते हुए उन्नति के उच्च शिखर तक पहुँच सके तो हम वैसा क्यों नहीं कर सकते? इस प्रश्न का अनुकूल उत्तर जिनका अन्तःकरण देता है वे आत्म विश्वास के धनी एकाकी आगे बढ़ते हैं और देखते हैं कि अनुकूलता उनके बांये और सफलताएँ दांये कदम से कदम मिलाकर चल रही होती हैं।

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