निर्बल को दण्ड और सर्वश्रेष्ठ की रक्षा प्रकृति के विकास का सिद्धान्त है ~ Punish the Weak and Protect the Best

दोस्तों निर्बल को दण्ड और सर्वश्रेष्ठ की रक्षा प्रकृति के विकास का सिद्धान्त है। इंसान में निर्बलता चाहे शारीरिक हो, निर्बलता चाहे मानसिक हो, निर्बलता चाहे बौद्धिक हो, निर्बलता चाहे आत्मिक हो | निर्बल इंसान को प्रत्येक स्थिति और प्रयत्न का विपरीत परिणाम भी भोगना पड़ता है। निर्बल व्यक्ति अपने प्राकृतिक और जन्म सिद्ध अधिकारों से भी समुचित लाभ नहीं उठा सकता। 


प्रकृति की उस व्यवस्था का उस पर उलटा ही प्रभाव होता है और दुख तथा हानि ही उठानी पड़ती है। स्वास्थ्य खराब हो तो सामान्य आहार भी नहीं पचता, स्वादिष्ट व्यंजन भी अस्वस्थ व्यक्ति को अरुचिकर लगते हैं। ऐसे व्यक्ति के लिए मधुर गीत, मनोरंजन, सुख-सुविधायें, धन दौलत सब कुछ व्यर्थ हैं। यहाँ तक कि वह चैन की नींद भी नहीं सो सकता। स्वास्थ्य खराब होने का कारण निर्बलता ही तो है। बलवान और पुष्ट शरीर में रोगाणु एक क्षण के लिए भी नहीं बचते। प्रविष्ट करते ही मनुष्य की जीवनी शक्ति उन्हें नष्ट कर डालती है।

संसार में जो भी श्रेष्ठ और सुन्दर साहित्य का लाभ भी वही इंसान कर सकता है जो बौद्धिक रूप से मजबूत है | परन्तु यदि कोई व्यक्ति बौद्धिक निर्बलता का शिकार हो तो संसार के अतुल ज्ञान और आनंद के भण्डार का उसके लिए कोई मूल्य नहीं है।

इसी प्रकार मानसिक निर्बलता के कारण व्यक्ति प्रकृति या ईश्वर के द्वारा दिये गये उन अवसरों का कोई लाभ नहीं उठा पाते, जो आगे बढ़ने के लिए जरूरी होते हैं। जिस व्यक्ति का मनोबल मजबूत है वह विपरीत परिस्थिति में भी आगे बढ़ता है और ऊँचा उठता है | इसके विपरीत मानसिक रूप से निर्बल व्यक्ति उन परिस्थितियों में निराश हो जाता है, अपने कर्तव्य को भूल जाता है, अपने लक्ष्य को भूल जाता है, अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है |

आत्मिक दृष्टि से निर्बल व्यक्ति आध्यात्मिक क्षेत्र में भी कोई प्रगति नहीं कर पाता है |  उसके लिए वह आनंद और शान्ति अति दुर्लभ ही नहीं असाध्य भी होती है, जिसे आत्मबल सम्पन्न लोग प्राप्त कर जीवन को सफल बना लेते हैं।

मित्रों इस बात को हमेशा याद रखना कि प्रकृति की सारी शक्तियाँ मनुष्य के हित में ही काम करती हैं। लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि आध्यात्मिक भाषा में इन्हीं शक्तियों को देवता कहा गया है। वेदों में भी सूर्य, चन्द्र, वरुण, इन्द्र आदि बहुत से देवताओं का उल्लेख है परन्तु वास्तव में यह प्रकृति की ही विभिन्न शक्तियाँ हैं।

कमजोर व्यक्ति के लिए दूध, मिश्री और भी अपच पैदा करते हैं। चाकू और सुई जैसे औजार मनुष्य के दैनिक जीवन में होने वाले कार्यों को सरल बनाने के लिए ही बने हैं। असावधानी या अन्य कारणों से किसी के हाथ पाँव छिद जाये तो उन औजारों का क्या दोष ? अपनी शक्ति और सामर्थ्य की उपेक्षा करने वाले निर्बल व्यक्ति भी इसी प्रकार की असावधानी के कारण प्राकृतिक शक्तियों से हानि उठाते हैं। इस हानि के लिए उन शक्तियों को कदापि दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

जो तत्व बलवानों के लिए सहायक सिद्ध होते है वही निर्बलों के लिए घातक बन जाते हैं। अगर हम ऋतुओं का ही प्रभाव लें। सर्दी-शक्तिशाली के लिए स्वास्थ्य और बलवर्धक तथा सक्रियता बढ़ाने वाली होती है। नीरोग और स्वास्थ्य प्रेमी जन सर्दियों में तरह-तरह से अपना स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त करते हैं। परन्तु कमजोर लोगों के लिए तो यही सर्दी, जुकाम, बुखार से लेकर निमोनिया और गठिया जैसे रोग उत्पन्न करने वाली बन जाती है। स्वस्थ व्यक्ति प्रातःकाल की सुहानी धूप में प्रकृति से जीवनी शक्ति प्राप्त करता है परन्तु कमजोर को घर के भीतर बैठकर आग तापनी पड़ती है। धूप और हवा उसे बीमार बना देती है।

संसार में सम्मान और प्रतिष्ठा भी शक्तिशाली को ही मिलते हैं। कमजोर और क्षीण मन वाले लोगों को हर कोई क्रूर दृष्टि से देखता है | क्या तुम जानते हो शेर को उसके ताकत और स्फूर्ति के कारण ही जंगल का राजा कहा गया है। सामान्य व्यक्ति भी सिंह को पराक्रम और शक्ति का प्रतीक मानता है। राजा महाराजा तथा सरकार भी उसके चित्र को राज चिन्ह के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। इसके विपरीत ‘निर्बल’ बकरी और खरगोश को जंगली जानवरों से लेकर मनुष्य और देवता तक खा जाते हैं। उन्हें हर घड़ी अपने प्राण का भय बना ही रहता है। छोटे-छोटे पेड़ पौधे जो बारिश और सर्दी में उग आते हैं, बसंत के आते ही सूख कर नष्ट हो जाते हैं, जबकि उसी बसंत में बड़े वृक्ष लहलहाने लगते हैं, उनमें नयी कोपलें फूटने लगती हैं। अशक्त और निर्बल का अस्तित्व हर स्थान में असुरक्षित ही रहता है|  निर्बल व्यक्ति हर स्थिति में असुरक्षित ही रहता है | निर्बल लोगों के विकास में कोई भी सहयोगी नहीं बनता है | यहाँ तक भगवान भी  उनपर घात लगाये बैठा रहता है। मृत्यु भी तो ऐसे ही निर्बल लोगों को पहला शिकार बनाती है |

मित्रों उत्तम की रक्षा करना प्रकृति के विकास का सिद्धान्त है। इसीलिए उसकी व्यवस्था में निर्बल और अशक्त लोगों को कदम-कदम पर खतरे और हानियाँ उठानी पड़ती हैं। सफल, सुरक्षित और सुखी जीवन के लिए हमें अपनी शक्ति बढ़ाने की जरूरत को स्वीकार करना ही पड़ेगी। शक्ति बढ़ाने की जरूरत की ओर युवकों का ध्यान खींचते हुए, स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है- “सबसे पहले आपको बलवान बनना पड़ेगा। शक्ति संवर्धन ही उन्नति का एकमात्र मार्ग है। इसी प्रकार परमात्मा और आत्मा के अधिक निकट पहुँचा जा सकता है।”

उद्देश्य चाहे व्यक्तिगत हो या फिर सार्वजनिक दोनों को ही सफल बनाने के लिए शक्ति और सामर्थ्य की जरूरत होती है |  इंसान को किसी भी क्षेत्र में सफलता अचानक से नहीं मिलती है। सफलता प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयास करते हुए अपनी शक्तियों को विकसित करना होता है।

सभी वस्तुएँ और उपलब्धियाँ के लिए पात्रता और सुरक्षा के लिए शक्ति का विकास करना चाहिए। इस पात्रता का विकास लगातार श्रम साधना द्वारा ही किया जा सकता है। संसार में ज्ञान का अभाव नहीं है, अभाव है उस बौद्धिक सामर्थ्य का जिसके कारण हम उसे प्राप्त करने में अक्षम हैं। शिक्षा साधना द्वारा इसी सामर्थ्य और शक्ति का विकास करना होता है।

इसलिए सफलता की इच्छा करने वाले व्यक्तियों को इसी राजमार्ग का सहारा लेकर अपनी पात्रता और सामर्थ्य का विकास करना चाहिए। तुम्हें अपनी शारीरिक निर्बलता को दूर करना चाहिए | तुम्हें अपनी मानसिक निर्बलता को दूर करना चाहिए |  तुम्हें अपनी बौद्धिक निर्बलता को दूर करना चाहिए | तुम्हें अपनी आत्मिक निर्बलता को दूर करना चाहिए | तुम्हें इन सब निर्बलताओं को दूर कर अपने जन्मसिद्ध अधिकार को प्राप्त करना चाहिए | यह प्रयास ही तो शक्ति की साधना है मेरे भाइयों। इस साधना द्वारा अपनी कमजोरियों को दूर करके तुम  अपने चारों ओर फैली हुई आनन्द और सफलताओं के तत्वों का लाभ उठाओ।

मित्रों निर्बलता एक ऐसा अपराध है, निर्बलता एक ऐसा पाप है जो अन्य लोगों को भी उनके मार्ग से भटका देता है | उन्हें विपत्तियों के गड्डे में गिरा देता है। इस संसार की प्रकृति के विधान में निर्बलता का कठोर दण्ड लिखा गया है। अगर तुम समय रहते सावधान नहीं हुए तो तुम्हें उसे भोगना ही पड़ेगा |

अभी भी समय नहीं निकला है | आज से ही यह संकल्प लो कि हम अपने आपको स्वस्थ रखेंगे | अगर हमें कोई बीमारी है तो उसे दूर करेंगे | हम अपने आपको आर्थिक दृष्टि से मजबूत करेंगे | हम अपने आपको पारिवारिक दृष्टि से मजबूत करेंगे | हम अपने आपको सामाजिक दृष्टि से मजबूत करेंगे | हम अपने आपको राजनीतिक दृष्टि से मजबूत करेंगे |

आप जीवन में उन्नति करे यही ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ | मुझे ध्यान पूर्वक सुनने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद |

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