झूठ बोलना एक बहुत बुरी आदत है ~ Lying is a Bad Habit ~Self Improvement

 
मेरे प्यारे भाई बहनों सत्य बोलना धर्म का एक अंग ही नहीं आत्म निर्माण का प्रथम और अनिवार्य चरण भी है। साधारण से साधारण और अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति से भी धर्म का अर्थ पूछा जाय तो वह सर्व प्रथम सत्य बोलने की ही शिक्षा देते हैं। साथियों, स्कूल के अध्यापक भी अपने छात्रों को ‘सत्यं वद’ का उपदेश देते हैं। कोई भी संत महात्मा अपने धार्मिक प्रवचनों में सत्य भाषण की महिमा सर्व प्रथम गाते हैं। विश्व के विचारवान व्यक्तियों, विद्वानों, महात्माओं और उपदेशकों से लेकर सामान्य व्यक्ति तक ने जितना महत्वपूर्ण बतलाया है, उतना शायद ही अन्य किसी सदाचरण को बताया है।

साथियों, यह विडंबना ही कही जायेगी कि झूठ बोलने को एक बुरी आदत कह कर उसे अवाँछनीय और अनैतिक बता कर ही कितने ही लोग सत्य भाषण का व्रत सध गया मान लेते हैं। सत्य भाषण की जितनी प्रशंसा की जाती है लगभग उतनी ही झूठ बोलने को आदत लोगों के स्वभाव का अंग बनी है। बेईमान, चोर, अवसरवादी, दुर्व्यसनी, नशेबाज, अनैतिक आचरण करने की दुष्प्रवृत्तियाँ जितनी हैं उन सबको मिलाकर भी झूठ बोलने की आदत वालों की संख्या से अधिक नहीं हैं। साथियों, यह भी देख गया है कि बच्चा सर्व प्रथम यदि कोई दुर्गुण सीखता है तो वह है झूठ बोलना। कई ऐसी बातें हैं जिन्हें स्पष्ट बताने में बच्चा डरता है। बाहर शैतानी करने की शिकायत आने पर पिटने के डर से बच्चा झूठ बोलेगा, या कोई नुकसान कर देने पर धमकाये जाने के भय से झूठ बोलेगा। जो भी कारण हो, बच्चे में अन्य दुर्गुण जब प्रवेश करते हैं तो उनका प्रवेश द्वार झूठ बोलना ही बनता है। इसमें वह अपनी सुरक्षा समझने लगता है कि झूठ बोल दिया तो पिताजी की नाराजगी से बच जायेगा। आरम्भ में तो माता पिता भी इस ओर कोई ध्यान नहीं देते, पर जब लड़का बड़ी गलतियां करता है और झूठ बोलकर अपना बचाव भी तो अन्य दुर्गुण बड़ी तेजी से बढ़ते हैं। बड़े वयस्क व्यक्ति भी सुरक्षा की दृष्टि से झूठ बोलना सीखते हैं या उसे अपने स्वभाव का अंग बना लेते हैं। प्रारम्भिक रूप में झूठ बोलने की इतनी हानियाँ दिखाई भी नहीं देतीं। क्योंकि सामान्य व्यवहार में उसकी कोई तीव्र प्रतिक्रिया नहीं दिखाई देती। लेकिन जब इस आदत के परिणामस्वरूप बड़ी हानियाँ होती हैं तो निश्चित ही पश्चाताप होता है। देर से आफिस पहुँचने वाला कर्मचारी कभी बस न मिलने या कभी बच्चे की तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर अपना बचाव कर लेता है। लेकिन बार बार के बहाने सुनकर जब अधिकारियों का विश्वास उठ जाता है या सन्देह होने लगता है तो संयोग से कदाचित असली कारण होने पर भी विश्वास नहीं टूटता। साथियों सहयोगियों का विश्वास खोकर व्यक्ति की स्थिति उस ग्वाले की सी हो जाती है जो भेड़िया आया! भेड़िया आया!! चिल्लाकर गाँव वालों को इकट्ठा कर लिया करता था और झूठ मूँठ ही उन्हें हैरान कर देता। रोज की बात होने के कारण गाँव वालों ने जाना छोड़ दिया तो सचमुच भेड़िया आ जाने और सहायता के लिए चिल्लाने पर भी कोई नहीं आया और उसकी कितनी ही बकरियाँ मारी गयीं। इस प्रकार मित्रों का विश्वास खोकर हम अपनी हानि तो करते ही हैं जिसका देश कभी कभी बड़े बड़े दुष्परिणाम लाता है-हम स्वयं अपना विश्वास भी खो देते हैं। मेरे प्यारे भाई बहनों इस बात को हमेशा याद रखिये कि झूठ बोलने वाला किसी और को धोखा देने में भले ही सफलता प्राप्त कर ले पर अपनी अन्तरात्मा के सामने तो वह उतना ही अपराधी रहता है। दूसरों का विश्वास तोड़ना, आत्मविश्वास खोने के साथ साथ आत्म बल भी क्षीण होने लगता है। सबसे पहला दुर्गुण झूठ बोलने वाला व्यक्ति अपने बचपन में ही सीखता है और नहीं सीखता है तो बड़ा होकर अभ्यास करता है। बचपन में पड़ी हुई झूठ बोलने की आदत थोड़ी सी कड़ाई और वाणी के संयम से छूट सकती है। पर वयस्क होने पर पकड़ी गयी यह आदम मुश्किल से छूटती है क्योंकि तब इसे कोई बड़ा अपराध भी नहीं माना जाता और न ही इतना बुरा क्योंकि तब इसमें कुछ लाभ होता दिखाई देता है। झूठ बोलना, असत्य भाषण करना हर दृष्टि से हानिकारक है। साथियों, मैं देख रहा हूं कि झूठ बोलने के व्यापक दोष से हमारा समूचा जीवन प्रभावित होता है और उसका विष सारे व्यक्तित्व को ही विषैला बना देता है। यहाँ तक कि विदेशों से आने वाले पर्यटक भी जब देखते हैं कि हरिश्चन्द्र बुद्ध और गाँधी जी के वंशज हम कदम कदम पर झूठ बोलते हैं तो वे हमारे बारे में क्या धारणा लेकर जाते हैं। इस दुर्व्यसन को राष्ट्रीय स्वाभिमान पर व्यक्तिगत आत्म गौरव पर धब्बा मान कर तत्काल छोड़ देना ही श्रेयस्कर है। आप जीवन में बहुत प्रगति करों, यही ईश्‍वर से प्रार्थना करता हूं। मुझे ध्यानपूर्वक सुनने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! Subscribe to Knowledge lifetime: https://bit.ly/372jJ9F Youtube: https://www.Youtube.com/Knowledgelifetime

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