तुम अपनी आदतों के गुलाम मत बनो ~ Don't be a Slave to your habits ~ Motivation Hindi

 तुम अपनी आदतों के गुलाम मत बनो|

दोस्तों तिनके-तिनके इकट्ठे करने पर मोटा और मजबूत रस्सा बन जाता है। अच्छी या बुरी आदतों के संबंध में भी यह बात पूरी तरह लागू होती है। जिस प्रकार एक छोटा सा छेद एक बड़ी नाव को डूबा देता है | उसी प्रकार बुरी आदतें तुम्हारे जीवन को बर्बाद कर देती हैं |

क्या आप जानते हो, अच्छी आदतें तुम्हारी जिंदगी को बदल के रख देती हैं।

और दूसरी तरफ तुम्हारी गलत आदतें तुम्हारी जिंदगी जहन्नुम बना देती है।

अगर तुम एक बार गलत आदतों का गुलाम हो जाते है, तो उन्हें छोड़ना मुश्किल हो जाता है | पुरानी आदतें नयी आदतों की बजाय अधिक शक्तिशाली होती हैं। आदत, बिजली की शक्ति के समान तेज और शक्तिशाली होती है।

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क्या आप जानते हो!  तुम जिन कार्यों या बातों को बार-बार दोहराते हो, वे तुम्हारे स्वभाव में शामिल हो जाती हैं | वह तुम्हारी आदतों का रूप धारण कर लेती हैं।

उदाहरण के लिए आलस को ही ले लो| आलस कोई जन्मजात दुर्गुण नहीं होता है | वह तो तुम्हारे समय कुसमय बार-बार दुहराते रहने से वैसा अभ्यास बन जाता है। और गतिविधियों में शामिल होने से तुम्हारी आदत बन जाता है | और यह अभ्यास बन कर इस प्रकार आदत बन जाते हैं मानो वह जन्मजात ही हो। तुम सोचते हो किसी देव दानव ने तुम पर थोप दिया हो। पर वास्तव में, यह अपना ही कर्तृत्व होता है जो कुछ ही दिन में बार-बार प्रयोग से ऐसा मजबूत हो जाता है मानो वह अपने ही व्यक्तित्व का अंग हो और वह किसी अन्य द्वारा ऊपर से लाद दिया गया हो।

जिस प्रकार बुरी आदतें अभ्यास में आते रहने के कारण स्वभाव बन जाती है और फिर छुड़ायें नहीं छूटती, वैसी ही बात अच्छी आदतों के सम्बन्ध में है।

अच्छी आदतों के संबंध में भी यही बात है। हँसते मुस्कराते रहने की आदत ऐसी ही है। उसके लिए कोई महत्वपूर्ण कारण होना आवश्यक नहीं। आमतौर से सफलता या प्रसन्नता के कोई कारण उपलब्ध होने पर ही चेहरे पर मुसकान उभरती है। किन्तु कुछ दिनों बिना किसी विशेष कारण के भी मुसकराते रहने की स्वाभाविक पुनरावृत्ति करते रहने पर वैसी आदत बन जाती हैं फिर उनके लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं पड़ती है और लगता है कि व्यक्ति कोई विशेष सफलता प्राप्त कर चुका है। साधारण मुसकान से भी सफलता मिलकर रहती है।

क्रोधी स्वभाव के बारे में भी यही बात है। कोई व्यक्ति अनायास ही चिड़चिड़ाते रहते देखे गये हैं। अपमान, विद्वेष या आशंका जैसे कारण रहने पर तो खीजते रहने की बात समय में आती है, पर तब आश्चर्य होता है कि कोई प्रतिकूल परिस्थिति न होने पर भी लोग खीजते झल्लाते चिड़चिड़ाते देखे जाते हैं। यह और कुछ नहीं उसके कुछ दिन के अभ्यास का प्रतिफल है। आदतों को आरम्भ करने में तो कुछ भी नहीं करना पड़ता है। पर पीछे वे बिना किसी कारण के भी क्रियान्वित होती रहती हैं। इतना ही नहीं कई बार तो ऐसा भी होता है कि मनुष्य आदतों का गुलाम हो जाता है और कोई विशेष कारण न होने पर भी उपयुक्त अनुपयुक्त आचरण करने लगता है। बाद में स्थिति ऐसी बन जाती है कि उस आदत के बिना काम ही नहीं चलता।

किसी न किसी उपयोगी कामों में लगे रहना, न होने पर प्रयत्न पूर्वक सौंपा हुआ काम कर लेना, एक प्रकार की अच्छी आदत ही है जो अपने व्यक्तित्व का वजन बढ़ाती है। कुछ न कुछ उपयोगी प्रक्रिया बन पड़ने पर अनायास ही सहज श्रेय प्राप्त करते हैं।

तिनके-तिनके इकट्ठे करने पर मोटा या मजबूत रस्सा बन जाता है। अच्छी या बुरी आदतों के संबन्ध में भी ऐसी बात है। आरम्भ में वे अनायास ही आरम्भ हो जाती है और थोड़ा सा प्रयत्न करने कुछ बार दुहरा देने भर से मनःस्थिति अनुकूल बन जाती है। स्वभाव का अंग बन जाने पर समूचे व्यक्तित्व को ही उस ढाँचे में ढाल लेती है।

अच्छी आदतों का अभ्यास किया जाय तो व्यक्तित्व सद्गुणी स्तर का बन जाता है। दूसरों के मन में अपने लिए सम्मान जनक स्थान बना लेता है। उसे सभ्य या शिष्ट माना जाता है। उसके संबंध में लोग और भी अच्छे सद्गुणों की मान्यता बना लेते है। उसके कार्यों में सहयोग करने लगते हैं या अवसर मिलते ही उन्हें अपना सहयोगी बना लेते हैं। सहयोग या असहयोग ही किसी की उन्नति या अवनति का प्रमुख कारण है।

अच्छी आदतें फलतः अपना हित साधन करती हैं। इनका देर-सबेर में उपयोगी लाभ मिलता है। इसके विपरीत बुरी आदतों से प्रत्यक्षतः और परोक्षतः निकट भविष्य में हानि ही उठाने का अवसर आता रहता है।

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दोस्तों तुम आदतों के गुलाम मत बनो|

आदत, बिजली की शक्ति के समान तेज और शक्तिशाली होती है। मनुष्य अपनी आदत का एक खिलौना बन जाता है और उसी के आधार पर उसके भविष्य का निर्माण होता है। कारण यह है कि उसे अपनी आदत के समान मित्र, साधन, विचार और अवसर बराबर प्राप्त होते रहते हैं। एक सी आदत वालों में स्वाभाविक प्रेम और एक दूसरे के विरुद्ध आदत वालों में स्वाभाविक भिन्नता बिना किसी परिचय के ही पायी जाती है।

आप अच्छी आदतें डालिए। क्योंकि आदतों से ही मनुष्य की जीवन धारा का निर्माण होता है। ईश्वर परायणता, आस्तिकता सब से अच्छी आदत है, क्योंकि उसके साथ-साथ वे सभी आदतें अपने आप अपने में आ जाती हैं जो जीवन को सुख शान्तिमय बनाने के लिए परम आवश्यक हैं।

पुराने स्वभाव तथा आदतों को दूर करने का एक ही उपाय है। वह है उनके विरुद्ध उत्तम तथा विशुद्ध संस्कारों का दृढ़ निश्चय तथा दृढ़ता से उन पर कार्य। सत्य संकल्प से सब मनोरथ सम्पन्न होते हैं।

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