सुस्पष्ट आदर्श का अर्थ क्या होता है ~ Lakshy ka Mahatv in Life

 


Summary:

सुस्पष्ट आदर्श का अर्थ अपनी भावनाओं का यथार्थ रूप में व्यक्त होना है। तुम्हारे आदर्श की मूर्ति तुम्हारे दिमाग में, मन में साफ-साफ मौजूद हो। ऐसा सुस्पष्ट, आदर्श उसी समय प्राप्त हो सकता है जब कि लक्ष्य, आदर्श, उद्देश्य, उसका प्रारम्भ, विकास और प्राप्ति अपनी आशाओं, आकांक्षाओं और अभिलाषाओं आदि सभी बातों की सुनिश्चित रूप-रेखा तुम्हारे सामने मौजूद हो। तुम्हारे मानसिक नेत्रों के सामने तुम्हारा लक्ष्य अथवा ध्येय ऐसे स्थूल रूप में दिखायी पड़ता हो कि अपनी कल्पना के हाथों से उसे छू सको। उसकी एक-एक भाव-भंगिमा, उसकी एक-एक रेखा तुम्हारे नेत्रों को सजीव दिखलाई पड़ती हो। जितना ही तुम्हारा आदर्श का ज्ञान यथार्थ होगा, जितने ही उज्ज्वल रूप से तुम्हारी भावनायें मूर्तिवती होंगी उतना ही तुम्हारी कार्य-प्रणाली भी शक्तिशाली होगी और उतने ही वेग से तुम उसकी सफलता के लिए अपनी समस्त शक्तियों को केन्द्रित कर सकोगे। सुस्पष्ट आदर्श का हम जितना भी महत्व समझें वह कम ही है। यदि हमारा लक्ष्य अथवा ध्येय ही हमारे सामने स्पष्ट नहीं है तो हम कभी सफलता के दर्शन नहीं कर सकते। कितने ही लोग जो जन्म भर बड़े-बड़े उद्योग, प्रयत्न करते रहते हैं, लक्ष्य के अस्पष्ट या अस्थिर होने के कारण कुछ नहीं कर पाते। ऐसा व्यक्ति उस मनुष्य के समान है जो अपने निर्दिष्ट स्थान, उसके मार्ग और यात्रा के विवरण की जानकारी किये बिना ही यात्रा आरम्भ कर देता है। वह नहीं जानता कि किधर जा रहा है, पर मन में सोचता है कि मैं अपने गन्तव्य स्थान की ओर जा रहा हूँ। या वह ऐसे मनुष्य के समान है जो बिना निशाना लगाये ही बन्दूक छोड़ देता है और फिर भी आशा करता है कि गोली लक्ष्य पर लग ही जायेगी। या वह ऐसे मनुष्य के समान है जो मकान का ढाँचा बनवाना आरम्भ कर देता है बिना यह सोचे समझे कि उस मकान में कितने कमरे होंगे और उसकी लम्बाई-चौड़ाई क्या होगी? अब तक मनुष्यों ने उसी वस्तु को पाने में सफलता पाई है जिसका यथार्थ चित्र उसके दिमाग में अंकित हो चुका है। हर एक कार्य जिसके करने में मनुष्य सफल हुआ है, वही होता है जो पहले उसके मानस-पट पर प्रत्यक्ष हो चुका होता है और इस प्रत्यक्षीकरण से उसकी इच्छा शक्ति को प्रोत्साहन मिला है। जितने उज्ज्वलतर रूप में वह अपने कार्य को अपने भीतरी नेत्रों के सामने मूर्तिमान करता है, उतना ही शक्तिमान और स्थायी उसका कार्य होता है। जो मनुष्य अपनी अभिलाषाओं के शिखर पर चढ़ना चाहता है, उसके लिये केवल यही आवश्यक नहीं है कि उसके सामने एक उत्तम आदर्श हो वरन् यह भी अनिवार्य है कि वह आदर्श सुस्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष भी हो। उसके सामने एक अस्पष्ट-सा विचार भर न हो जिसे वह वास्तविकता में परिवर्तित करना चाहता है। Subscribe to Knowledge lifetime: https://bit.ly/372jJ9F Youtube: https://www.Youtube.com/Knowledgelifetime https://www.knowledgelifetime.com

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