Summary:अश्वमेध का अर्थ है अमृतवर्षा- अनुग्रहवर्षा | अश्वमेध भारतवर्ष के एक प्रख्यात प्राचीन कालीन यज्ञ का नाम है । वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराणों के पन्ने अश्वमेध यज्ञ के महत्व के वर्णन से भरे पड़े है | प्राचीन समय में अश्वमेध यज्ञ पारिस्थितिक संतुलन हासिल करने के लिए, भगवान की कृपा तलाश करने के लिए और राष्ट्र को एकजुट करने के लिए किये जाते थे।
1. अश्वमेध यज्ञ एक आध्यात्मिक प्रयोग है। यह भारतीय संस्कृति के दिव्य ज्ञान, एक संस्कृति, भविष्य में दुनिया की संस्कृति बन संसार में प्रसार करने के लिए आयोजित किया जाता है।
2. अश्वमेध यज्ञ पारिस्थितिकी संतुलन के लिए और आध्यात्मिक वातावरण की शुद्धि के लिए गायत्री मंत्र से जुड़ा है।
3. 'अश्व' समाज में बड़े पैमाने पर बुराइयों का प्रतीक है और 'मेधा' सभी बुराइयों और अपनी जड़ों से दोष के उन्मूलन का संकेत है।
4. अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान राष्ट्र की सामूहिक चेतना को जगाने के लिए किया जाता है | अश्वमेध यज्ञ निष्क्रिय प्रतिभा और जनता की बौद्धिक प्रतिभा को जगाने के लिए किया जाता है।
5. अश्वमेध यज्ञ का आयोजन व्यापक भारतीय संस्कृति का शानदार प्रदर्शन है |
6. अश्वमेध यज्ञ खुशी और समृद्धि के लिए पूरे देश को जाता है। वास्तव में, "अश्वमेध" राष्ट्र को दर्शाता है।
7. अश्वमेध यज्ञ सार्वभौमिक दर्शन में वैदिक दर्शन में परिवर्तित करने, प्रसार और प्रेम के साथ इस सत्य ज्ञान बांटने के लिए किया जाता है।
8. अश्वमेध यज्ञ लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण बढ़ाने और मनुष्य में देवत्व जागकर उनको आत्म के उत्थान के लिए प्रेरित कर एक आदर्श समाज की स्थापना करने के लिए किया जाता है |
9. अश्वमेध यज्ञ पर्यावरण से सूक्ष्म प्रदूषकों विनाश करने के लिए किया जाता है।
10. अश्वमेध यज्ञ बौद्धिक गुलामी से छुटकारा पाने के लिए और सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
11. 'अश्व' गतिशीलता, velour और शक्ति का प्रतीक और 'मेधा' परम ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है। शक्ति और ज्ञान का संयोजन मनुष्य और बड़े पैमाने पर समाज के उत्थान होता है ।
शास्त्रकारों ने अश्वमेध को परम पुरुषार्थ कहा है। स्मृति में अश्वमेध को ‘सर्व कामधुक्’-अर्थात्-सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला कहा गया है। इसका कारण बताते हुए स्मृतिकार का कहना है-
अश्वमेधेन हविषा तृप्ति मायान्ति देवताः । तस्तृप्ता र्स्पथत्येन नरस्तृप्तः समृद्धिभिः॥
अर्थात्- अश्वमेध में हवि का हवन करने से देवताओं की तृप्ति होती है। तृप्त होकर देवता मनुष्य को इच्छित समृद्धि प्रदान कर संतुष्ट करते हैं।
विष्णु धर्मोत्तर पुराण के अनुसार अश्वमेध यज्ञ में अग्नि को संस्कारित कर उसमें श्रद्धा, भावना के साथ जो भी आहुति दी जाती है। उसे देवता ग्रहण करते हैं। देवताओं का मुख अग्नि है, इसीलिए देवता यज्ञ से प्रसन्न होकर यज्ञकर्ता की कामनाओं की पूर्ति करते हैं।
आपस्तम्ब स्मृति के अनुसार जिस स्थान पर अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न होता है, वहाँ समस्त देवता सारे तीर्थों की चेतना पूँजीभूत होती है।
महाभारत में व्यास जी युधिष्ठिर को इसका माहात्म्य समझाते हुए कहते है-
अश्वमेधों हि राजेन्द्र पावनः सर्व पाप्यनाम्। तेनेष्ट्य त्वं विपाणा वै भविता मात्र संशय॥ अश्वमेध वर्ष (61) 16
हे राजन्-अश्वमेध यज्ञ समस्त पापों का नाश करके यजमानों को पवित्र बनाने वाला है उसका अनुष्ठान करके तुम पाप मुक्त हो जाओगे।
आश्वलायन (16/61) के अनुसार सभी पदार्थों के इच्छुकों सभी विजयों के अभिलाषियों तथा अतुल समृद्धि के आकाँक्षियों को अश्वमेध का यजन अवश्य करना चाहिए।
ऋषि गोभिल ने ‘श्री वै अश्वमेधः कहकर अश्वमेध यज्ञ में हवन की जाने वाली दिव्य औषधियों, दिव्य मंत्रों के सम्मिलित प्रभाव से याजकों में मेधा-प्रतिभा का जागरण होता है। रोगों का नाश होकर आयु बढ़ती है।
पुराणकार के अनुसार उन्नत प्रतिभा और उत्तम स्वास्थ्य के आकाँक्षियों को इसका यजन अवश्य करना चाहिए। महर्षि कात्यायान न प्रदान करने वाले के साथ स्वर्ग तक आत्मा को पहुँचाने वाला वाहन कहा है।
इसका महात्म्य बताते हुए पद्मपुराण सृष्टि खण्ड में कहा गया है-
अश्वमेधाप्यायिता देवाँ वृष्ठयुत्यर्गेण मानवः। आप्यायनं वै कुर्वन्ति यज्ञाः कल्याण हेतवः॥
अर्थात्-अश्वमेध में प्रसन्न हुए देवता मनुष्यों पर कल्याण की वर्षा करते हैं।
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