अपने को तुच्छ न समझना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी कमजोरी है ~ The Biggest Weakness of Personality ~ Motivation in Hindi

 अपने को तुच्छ न समझना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी कमजोरी है

अपने आप को तुच्छ, हीन, हेय मान बैठना व्यक्तित्व की सबसे बड़ी कमजोरी है। यह मानसिक ग्रंथि किसी भी सुयोग्य, सुशिक्षित, धनी, सुखी, संपन्न को दयनीय और पिछड़ेपन की स्थिति में ले जाकर पटक सकती है। दूसरों को अपने से समर्थ, योग्य और बलवान मानकर गया गुजरा समझ बैठना आत्महीनता कहलाती है। दब्बू, झेंपू, संकोची स्वभाव के व्यक्ति अपनी दुर्बलता छिपाने का प्रयत्न करते हैं और विनयशीलता, सज्जनता का दिखावटी प्रयास करते हैं। 

किन्तु फिर भी उनकी हीनता की झलक स्पष्ट दिखाई दे जाती है। नम्र तथा सज्जनों को, शिष्ट और सभ्यों को अपने मान सम्मान की रक्षा करते हुए अपने मन की बात विनम्र शब्दों में व्यक्त करते हुए कोई कठिनाई नहीं होती, जबकि आत्महीनता की ग्रंथि से ग्रसित व्यक्ति से न कुछ व्यक्त करते बन पड़ता है। और न उचित उत्तर देते ही बनता है। दूसरों के पिछलग्गू बन कर कितने ही इस तरह का जीवन जीते हैं और प्रगतिशीलता से हाथ धोते देखे जाते हैं।

कितने ही व्यक्तियों को साधारण सी बात कहने में घबराहट होने लगती है , घुटन और बेचैनी महसूस होती है। बहुत साहस बटोर कर आधी अधूरी अभिव्यक्ति करने में ही वे समर्थ हो पाते हैं। इस प्रकार के अस्पष्ट राय व्यक्त करने के कारण संभव है लोग कथन का कुछ अन्य अर्थ लगा लें अथवा आत्महीनता की झलक उन्हें मिल जाये और उसका नाजायज फायदा मनुष्य की सारी बुद्धिमता, योग्यता और प्रतिभा पर पानी फेर देती है। अपने को व्यक्त न कर सकने के कारण वह दूसरों की दृष्टि में असमर्थ साबित होते है, अयोग्य साबित होते है, असफल साबित होते है, मूर्ख साबित होते है। उसकी क्षमता पर लोगों को विश्वास ही नहीं होता है। इसीलिए उन्हें उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपे जानें से भी लोग बचने लगते हैं। हर जगह ऐसे लोगों को उपेक्षा होने लगती है, उन्हें अवमानना का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार के व्यवहार से हीनता में और अधिक वृद्धि होती चली जाती है। फलस्वरूप वह अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।

 

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प्रायः आत्महीनता की घुटन दुर्भावनाओं में प्रकट होती देखी जाती है। अन्याय, पक्षपात की मान्यता जड़ जमाने लगती है। जितने लोगों से वास्ता पड़ता है, व्यक्ति को ऐसा लगता है कि वे सब विद्वेषी हैं। उसका हितैषी कोई है ही नहीं।

हीन भावना के कारण उनके आचरण भी अजीब हो जाता है। तोड़-फोड़, आक्रोश, अनशन, रूठना, रोना जैसे विचित्र व्यवहार करने लगता है। भूत-प्रेतों का प्रकोप भी ऐसे ही लोगों पर अधिक होता है। अनेकों सपने और दिव्य अनुभूतियाँ सुनाने में ऐसा ही वर्ग आगे रहता है।

कुछ ऐसे कारण है जिनसे तुम आत्महीनता का शिकार बनते हो | जैसे कुरूपता, दरिद्रता, ऊँच-नीच की भावना ,अशिक्षा, आदि | लोग भी उन्हें तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं, व्यवहार करते हैं, तब अंतः मन में हीनता के भाव घर कर लेते हैं। और यह मान्यता स्थाई स्थान बना लेती है।

जब तुम अपने आप को पापी, अपराधी, अभिशप्त, दुर्भाग्यशाली ग्रहदशा से पीड़ित मान बैठते हो तब तुम सदा दबे हुए , सहमे हुए , झिझके हुए, बुझे हुए से दिखाई देते हैं। तुम्हारा चेहरा सदा मुरझाया हुआ दिखाई पड़ता हैं, तुम शंकालु दिखाई पड़ते हो, तुम उदास ही दिखाई पड़ते हो। तुम सदैव अपने को त्रस्त और कठिनाइयों से लदा समझ बैठते हो। तुम अपना भविष्य अंधकारमय मान बैठते हो। तुम साहस हीन बन जाते हो। जब तुम भीतर से टूटे हुए और हारे हुए होते हो तब तुम अपने भाग्य को कोसते रहते हो। अपने से ऊँची स्थिति के लोगों से तुलना करने पर तुम्हें अपना दुर्भाग्य और अधिक स्पष्ट नजर आने लगता है। कदाचित यदि तुम यह तुलना अपने से छोटों से कर लेते तो तुम्हारा वर्तमान उतना हेय और हीन तथा अभावग्रस्त नजर न आता। तुम बड़ों से अपनी तुलना मत करों |  तुलना करने की जगह अपना पुरुषार्थ जगाकर प्रयत्न करो | अपने दुर्भाग्य को ख़तम कर दो, नष्ट कर दो।

किन्तु जब तुम अपने को हेय और गया गुजरा मान बैठते हो |  तब तुमसे ऐसे प्रयत्न,  ऐसे पुरुषार्थ की आशा भी नहीं की जा सकती है। तुम्हारा मनोबल पहले से ही क्षीण हो चुका होता है।

वियना के एक बहुत प्रसिद्ध मनोविज्ञानी डाक्टर एर्ल्फड एडलर के अनुसार आत्महीनता की ग्रंथि में वे ही लोग फँसते हैं जिनका चिंतन निषेधात्मक होता है,  जिनका चिंतन नकारात्मक होता है , जो स्वार्थी होते हैं, जो चालाक होते हैं। जो केवल अपने ही स्वार्थ सिद्ध करने की सोचते है |  जो केवल अपने ही व्यक्तिगत लालसा और कामनाओं की पूर्ति के सपने संजोते रहते हैं |  जिनका मन कल्पनाओं की उड़ान भरता रहता है। उनका कहना है कि मनुष्य की धारणाएँ प्रायः भ्रम मूलक होती हैं। अधिकाँश लोग अपना मूल्याँकन सही रूप से नहीं कर पाते और दूसरों की दृष्टि में कुछ का कुछ प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार वे स्वयं अपने को ही धोखा दे रहे होते हैं। वास्तविकता और कलपना का संघर्ष तुम्हारे मन में अनेक विकृतियाँ उत्पन्न कर देता है और तुम्हें आत्महीनता की गहरी खाई में धकेल देता है। तुम्हारे लिए इससे छुटकारा पाना तभी संभव है जब तुम अपना आत्मबल बढ़ाओ और अपना आत्म निरीक्षण करो। और यह भी तभी संभव है जब तुम्हारी चिंतन की दिशा धारा सही हो।

वास्तव में जब तक तुम प्रत्येक व्यवहार की विवेचना का अभ्यास नहीं बनाओगे। उसके मूल में बैठी प्रेरक भावनाओं पर दृष्टि नहीं डालोगे, तब तक आत्महीनता से छुटकारा पाना तुम्हारे लिए मुश्किल ही होगा है। आत्महीनता का कारण या तो वंशानुगत होता है अथवा परिवार के सदस्यों के परस्पर आचरण और व्यवहार से उत्पन्न होती है। उस पर विचार करके ही उसी तरह के निराकरण के उपाय उपचार की व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। प्रायः तुम दूसरों की दृष्टि में अपने को परखने का असफल प्रयास करते हो, इसीलिए तुम स्वयं अपने असली रूप को, तुम अपनी शक्ति को, तुम अपनी सामर्थ्य को , तुम अपनी योग्यता को देखने से वंचित रह जाते हो। इससे छुटकारा पाना तभी संभव है जब तुम  दृढ़ निश्चय करो कि तुम संसार के श्रेष्ठ प्राणी हो | तुम्हारे लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है | दूसरे यदि तुमसे श्रेष्ठ हैं तो तुम वैसा क्यों नहीं बन सकते हो। यही वह  तुम्हारे मन की स्थिति है जो तुमको ऊँचा उठाती है और जो तुम्हें श्रेय सम्मान का अधिकारी बनाती है।

सुविख्यात रूसी लेखक गोर्की ने अपने देश के किसानों को संबोधित करते हुए कहा था कि -’याद रखो कि तुम पृथ्वी के सबसे श्रेष्ठ और आवश्यक प्राणी हो। कोई कारण नहीं कि कोई व्यक्ति अपने को अनावश्यक तुच्छ अथवा हीन समझे। यदि वही अपना मूल्य न समझेगा तो दूसरे उसे किस प्रकार आवश्यक मानेंगे। “यही मत शेक्सपियर का भी है कि सबसे बड़ी बात हे कि मनुष्य न दीन-हीन है न तुच्छ। उसे सदैव मनुष्य तत्व और मनुष्य सुलभ शक्तियों में विश्वास बनाए रखना चाहिए। अन्य प्राणियों की तरह न वे गये गुजरे हैं न तुच्छ। इस तरह की बलवती भावनाओँ से ही आत्महीनता की ग्रंथि से छुटकारा पाया जा सकता है।

 

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