हम ‘बल’ की उपासना करें ~ Importance of Power in Life

 हम ‘बल’ की उपासना करें।

दोस्तों बल यानि शक्ति का महत्व अति प्राचीन काल से ही माना गया है। बिना बल के तुम अपने जीवन के चार पुरुषार्थ को भी पूरा नहीं कर सकते हो | चाहे धर्म हो, अर्थ हो, काम हो और चाहे मोक्ष हो | शक्तिहीन मनुष्य न तो अपनी रक्षा कर सकता है और न ही अपने सम्मान की | बिना बल के तुम अपने जीवन में कोई उन्नति नहीं कर सकते हो।

छांदोग्य उपनिषद के अनुसार जिस समय मनुष्य में बल होता है तभी वह कर्म करता है, दृष्टा और श्रोता होता है। बल के प्रभाव से ही पृथ्वी, अंतरिक्ष, आकाश, पर्वत, देव और मनुष्य संचालित होते हैं। एक बलवान व्यक्ति सेंकडो निर्बल लोगों को कंपायमान कर देता है। इसलिए तुम बल की उपासना करो। शक्ति की उपासना करो।

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रोजमर्रा के जीवन में थोड़ी सी विपरीत परिस्थिति के सामने आते ही तुम्हारे पैर लड़खड़ा जाते हैं । तुम पैन होश हवास खो बैठते हैं |  तुम अपना कर्तव्य भूल जाते हो | तुम अपना प्रतिज्ञा भूल जाते हो |  तुम अपना लक्ष्य भूल जाते हो |  और कभी-कभी वह कर जाते हैं, जो तुम्हें नहीं करना चाहिए था। तुम अपने मानव होने की गरिमा को भूल जाते है | तुम अपने प्रगतिशील चिंतन से मुख मोड़कर अपनी दिशाधारा ही उलटी कर देते हो।

दोस्तों क्या आपने कभी सोचा है, ऐसा क्यों होता है? इस पर मनोविज्ञानी और दार्शनिक कहते हैं कि यह व्यक्ति के मनोबल के गिर जाने से होता है| यह व्यक्ति की संकल्प शक्ति गिर जाने से होता है|  यह व्यक्ति की आशंकाओं-कुकल्पनाओं-के भय के कारण अधिकाधिक होता देखा जाता है।

आज सबसे बड़ी समस्या यही है कि तुम्हारा मनोबल समाप्त हो गया हैं,  मुसीबतों से जूझने की अदम्य सामर्थ्य जो तुम्हारे अंदर है, वह क्षीण होती चली जा रही है| ऐसी स्थिति में तुम जरा सा भी प्रतिकूलता का आघात भी सहन नहीं कर पाते हो।

यह आघात तुम्हारे यश-कीर्ति के क्षेत्र में भी हो सकता है जिसमें तुम्हारे अहं पर गहरी चोट लगती है | यह आघात तुम्हारे धन-समृद्धि के क्षेत्र में भी हो सकता है जिसमें तुम्हारा अच्छा-खासा घाटा होता है|  यह आघात तुम्हारे विद्या-बुद्धि के क्षेत्र में भी हो सकता है जिसमें जैसी अपेक्षा थी, वैसे परिणाम हस्तगत नहीं हुए अथवा किसी कारण असफलता का सामना करना पड़ा तथा बल-आरोग्य के क्षेत्र में भी हो सकता है, जब शरीर तो प्रत्यक्षतः स्वस्थ था पर वातावरण के दबाव या अकस्मात् उत्पन्न तनाव के कारण मनोबल टूट गया |  उच्च रक्तचाप-मस्तिष्कीय रक्तस्राव के रूप में प्रकट हो गया और तुम्हे पूरा तरह तोड़ गया।

दोस्तों तीन ऐसी स्थितियाँ जो तुम्हारे संकल्पबल भारी क्षति पहुँचाती है | जो तुम्हारे आत्मबल भारी क्षति पहुँचाती है | जो तुम्हारे चित्त की दृढ़ता भारी क्षति पहुँचाती है | जो तुम्हें समाज में दुर्बल नागरिक बनती है। इसे सबसे पहला तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास की कमी का होना |  दूसरा है तुम्हारे अंदर कल्पित भय का होना | और तीसरा है तुम्हारा भविष्य के प्रति निराशा का होना | उदासी का होना | मायूसी का होना |

ये तीनों ही स्थितियाँ ऐसी हैं, जो तुम्हारे संकल्पबल-आत्मबल को क्षति भारी पहुंचाती है |   

पिछले 2000 वर्षों में, हमारे राष्ट्र के सांस्कृतिक पतन का कारण, हार का कारण, विनाश का कारण, अधोगति का कारण यही है कि हमने बल की उपासना करना बंद कर दिया था | इसलिए दोस्तों तुम्हें अपने बल को बढ़ाने का प्रयास करना होगा |

यदि इस दुर्बलता से हमें उबरना है, तो हमें एक ही उपनिषद् वाक्य जीवन में उतारना होगा- “बलम् उपास्य” । हम सभी बल की, आत्मबल संवर्धन की, तथा मनःशक्ति संवर्धन की साधना करें। इसी में मानव मात्र के समूचे समाज व राष्ट्र का हित है

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