क्रोधित होने से पहले यह भी सोचें ~ Think Before You Get Angry ~ Motivation in Hindi

 क्रोधित होने से पहले यह भी सोचें

दोस्तों क्रोध का कारण बताते हुए गीता में कहा गया है| जब कामनाओं में विक्षेप आ जाता है तब उस विक्षेप के कारण के क्रोध उत्पन्न होता है। तीन-चार महीने के बच्चे को यदि कोई थप्पड़ मार दे तो उस थप्पड़ की पीड़ा से वह रो तो उठेगा, किंतु उठे हुए हाथ और स्वयं की पीड़ा का अंतर सम्बन्ध उसे ज्ञात नहीं रहता |  उसे यह पता ही नहीं होता है कि इस हाथ से थप्पड़ मारे जाने के कारण मुझे पीड़ा हो रही है

 इसलिए उसके रोने में क्रोध का आवेग नहीं रहता है । इससे हमें यह पता चलता है कि क्रोध, दुःख, कष्ट के कारण के बोध से उत्पन्न होता है। अपनी हानि या दुःख का कोई कारण उपस्थित होने पर क्रोध आ जाता है। जब तुम्हारे लक्ष्य या इच्छाओं के मार्ग में किसी रूकावट को देखकर तुम्हें क्रोध आ जाता है | यह क्रोध का सामान्य स्वरूप है।

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क्रोध मस्तिष्क में उभरने वाला एक आवेग है। मस्तिष्क में जिस भी आवेग का उसमें बार-बार उदय होता है, उसके संस्कार मन में गहरे हो जाते हैं और फिर यह आवेग तुम्हारे स्वभाव का एक अंग बन जाता है। एक ही तरह की बाधा के प्रति दो लोगों की प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है| एक व्यक्ति क्रोध से लाल-पीला होकर मरने-मारने पर उतारू हो जाता है जबकि दूसरा उस बाधा को दूर करने का गंभीर प्रयास शुरू कर देता है। 

दोस्तों इस भिन्नता का कारण मस्तिष्क में पड़ गये संस्कारों ही है। जब असफलता प्राप्त होती है तब क्रोधित होने की ही प्रवृत्ति जबरदस्त हो जाती है | और फिर यह क्रोध उस बाधक तत्व को ही नहीं अपितु संपर्क में आने वाले लोगों से बिना कारण के क्रुद्ध व्यवहार का प्रेरक बन बैठता है। मन की जटिलताएँ भी मनुष्य के क्रोधी स्वभाव का कारण होती हैं। जब तुम अपनी मानसिक जटिलताओं में उलझे हुए होते हो तब यह व्याकुलता जिस-तिस पर क्रोध बनकर बरस पड़ती है।

मोटेतौर पर क्रोध के तीन प्रकार हो सकते हैं। पहला कामना पूर्ति में अवरोध बने बाधक विषय के प्रति क्रोध, जो बाधक को हानि पहुँचाने की भावना से जुड़ा रहता है। दूसरा असफलता से क्रुद्ध मनःस्थिति में संपर्क में आए अन्य व्यक्तियों पर कारणवश या अकारण ही व्यक्त होने वाला क्रोध। तीसरा लम्बे अभ्यास से व्यसन-सा बन चुका क्रोध, जो स्वभाव का स्थायी अंग बन जाता है। पहले प्रकार का क्रोध लोक-व्यवहार में सबसे अधिक स्वाभाविक माना जाता है। सामाजिक जीवन में उसे एक तरह की स्वीकृति प्राप्त है। किन्तु क्रोध एक विचार मात्र नहीं है, वह एक भावावेग है। उसका सम्पूर्ण शरीर और मन पर प्रभाव पड़ता है।

दोस्तों सबसे बड़ी बात यह है कि क्रोध में दुःख या हानि के कारण को ही नष्ट कर देने की या क्षतिग्रस्त कर देने की भावना इतनी तेजी से उमड़ती है कि अपनी भूल, अपनी कमी  की ओर तो तुम्हारा ध्यान ही नहीं जाता है, तुम जो करने जा रहे हो, उसके परिणाम का भी विचार तुम्हें नहीं आता है। ऐसी स्थिति में कई बार क्रोध में किए गये कामों से तुम्हारी बहुत भारी हानि हो जाती है।

क्रोध तुम्हारे मन को उत्तेजित कर देता है| इससे तुम्हारे शरीर में भी तनाव आ जाता है। तुम्हारा रक्त संचालन तीव्र हो उठता है और तुम्हारे शरीर में अनावश्यक गर्मी आ जाती है। तुम्हारी विचार शक्ति कमजोर हो जाती है। तीव्र रक्त संचालन से तुम्हारा चेहरा लाल हो जाता है, तुम्हारे होंठ फड़कने लगते हैं, आँखें लाल हो जाती हैं। तुम्हारे अंदर ओर भी अनिष्ट और ख़राब प्रभाव पड़ता है। तुम्हारे दिल की धड़कन तेज हो जाती है, तुम्हारी आँतों का पानी गर्मी के कारण सूखने लगता है। तुम्हारी पाचन क्रिया कमजोर पड़ जाती है| तुम्हारे खून में एक प्रकार का विष पैदा हो जाता है, जो तुम्हारी जीवनी-शक्ति को कमजोर कर देता है।

एड्रीनल ग्रंथियों से क्रोध की स्थिति में जो हार्मोन्स निकलता हैं, वह रक्त के साथ मिलकर Liver में पहुँचता हैं और वहाँ जमे ग्लाइकोजन को Glucose में बदल देते हैं। यह अतिरिक्त शुगर तुम्हारे शरीर पर घातक प्रभाव डालती है। इस प्रकार क्रोध से बाधक तत्व को कोई हानि हो या न हो, तुम्हारी हानि अवश्य होती है। क्रोध के कारण को कोई क्षति कभी-कभार होती है, परन्तु क्रोधी व्यक्ति की अपनी क्षति हर बार होती है।

तुम्हारी कामनाएँ बहुत ज्यादा होती है | तुम्हारी हर कामना पूरी होना असम्भव है और अनुचित भी है क्योंकि उनमें से कई दूसरों की कामनाओं के विरुद्ध होती है। जिससे दूसरे व्यक्तियों में भी क्रोध भड़क उठने की सम्भावना बाद जाती है |

क्रोध के अधिकांश कारण तो बहुत ही सामान्य व छोटे होते हैं। कई बार तो वे बिलकुल आधारहीन ही दिखाई पड़ते हैं। कभी-कभी ऐसे भी समाचार सुनने में आते हैं कि किसी छोटी-सी बात पर क्रोधावेश में आकर एक आदमी की पिटाई करके उसकी हालत मरने तक की कर दी गयी। यह अविवेकी क्रोध और उन्मत्त अहंकार के साधारण किंतु भयंकर परिणाम हैं।

इसलिए महापुरुषों ने कहा है क्रोधी मनुष्य आँखों के होते हुए भी अंधा होता है | वह केवल उस ओर देखता है, जिसे वह दुःख का कारण या अपनी कामनाओं का बाधक समझता है। क्रोध एक अति वेगवान मनोविकार है। सोचने-विचारने का समय वह मस्तिष्क को देता ही कब है। वह तो आँधी-तूफान की तरह पूरे मनोजगत पर सहसा छा जाता है और अनर्थकारी कार्य सम्पन्न करने के बाद ही हटता है।

इसीलिए तो ऋषियों ने कहा है- मनुष्य द्वारा बहुत प्रयत्नों से अर्जित यश और तप को भी क्रोध नष्ट कर डालता है।

यह तो बाधक तत्व को हानि पहुँचाने की उत्तेजना उत्पन्न करने वाले क्रोध के दुष्परिणाम हैं। जब क्रुद्ध मनः-स्थिति में संपर्क में आए अन्य व्यक्तियों के प्रति रोषपूर्ण व्यवहार किया जाता है, तब वह तो सर्वथा अनुचित एवं अन्यायपूर्ण होता है। उसका परिणाम और भी अधिक हानिकारक होता है। जिसे यों अकारण अपमानित किया गया है, उसके मन में अपमान का यह शूल निरन्तर चुभता रहता है और उसका परिणाम हर प्रकार से अशुभ ही होता है। ओफिस से बिगड़कर आया ऑफिसर या क्लर्क पत्नी को पीटकर एवं बच्चों से नाराज होकर पारिवारिक सुख में आग लगाता है। बाहर का क्रोध घर के नौकर पर उतारने वाले, क्षुब्ध नौकर द्वारा छिपकर की जाने वाली चोरी, लापरवाही वह क्षति को भोगते हैं। क्रुद्ध मनःस्थिति में मित्रों, परिचितों से दुर्व्यवहार करने वालों को मैत्री सुख और परिचितों की सहानुभूति से वंचित रहना पड़ता है। साथ ही निंदा व तिरस्कार भी सहना पड़ता है।

क्रोधी मनुष्य दूसरे के समर्थ-शक्तिशाली होने पर जब अपने मन्तव्य में सफल नहीं हो पाता, वो वह स्वयं अपने ऊपर वैसी ही क्रिया करने लगता है, जो वह दूसरों को हानि पहुँचाने के लिए करने की सोच रहा था। सामाजिक जीवन में वैसे क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है|  लोक कल्याणकारी क्रोध की बात भिन्न है। उस क्रोध का जन्म उद्वेग-उत्तेजना से नहीं, विवेक-विचार से होता है।

तुम सात्विक आहार, प्रसन्नता एवं शांत विचारों से क्रोध को जीत सकते हो। क्रोध की बाहरी अभिव्यक्ति दबाकर मन ही मन लम्बे समय तक सुलगते रहना ही ‘बैर’ है। यह बैर क्रोध से भी भयंकर हानियाँ उत्पन्न करता है।

दोस्तों जब कभी तुम्हारे अंदर क्रोध उमड़े तो एक प्रयोग करके देखना। क्रोध का उभार होते ही चुपचाप कमरे में चले जाओ और शीशे में अपना चेहरा देखो। तुम अपने आप देखोगे कि चेहरे पर आयी तमतमाहट ने तुम्हारे सौंदर्य को थोड़ा सा भी नहीं बढ़ाया है, बल्कि कम ही किया है। तुम्हारा मुँह फीका पड़ गया है, लगता है जैसे तेज बुखार हो गया हो। तुम थोड़ी देर टहलने के बाद, तत्काल ही पानी से मुंह धो लो और पोंछ कर फिर शीशे के सामने खड़े हो जाओ। पहले चेहरे और अब के चेहरे में तुम्हें अंतर साफ़ दिखाई दे जाएगा। तुम क्रोध से बचकर मुसकराहट लाने का प्रयास जारी रखों। तुम क्रोध को दूर से ही नमस्कार कर लिया करो।

दोस्तों क्या आप जानते हो क्रोध सदैव जल्दबाजी का परिणाम होता है। जब कोई गलत कार्य होता देखो या कोई हानि हो जाए, तो उसके कारण का निश्चय करने में तुम जल्दबाजी न करें। याद करो पहले भी बहुत बार कारण खोजने में तुमसे चूक हुई थी | इसलिए अनुचित या हानिप्रद कार्य के घटनास्थल से इधर-उधर हट जाओ, किसी पार्क  में टहलें या किसी प्रियजन के पास पहुँच जाओ। उससे स्नेहपूर्ण बात करो। कुछ न हो सके तो एक गिलास ठण्डा पानी पी लो और क्रोध को शांत करो। इस क्रोध के आवेग को भड़कने देने में घाटा ही घाटा है। इसे शांत करने में लाभ ही लाभ है। इसलिए विश्व के समस्त धर्मशास्त्रों और नीति ग्रंथों में क्रोध को विनाशकारी अतः त्यागने योग्य ही बताया गया है।

 

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