अपने शरीर में बीमारियों को हम खुद ही बुलाते हैं ~ We Get Sick Ourselves ~ Motivation in Hindi

अपने शरीर में बीमारियों को हम खुद ही बुलाते हैं

We Get Sick Ourselves


अपने शरीर में बीमारियों को हम खुद ही बुलाते हैं| सुनकर शॉक लगा क्या आपको ? जब भगवान ने हमारे शरीर को सशक्त और प्राणवान बनाया है, तो प्रश्न उठता है कि फिर लोग असमय क्यों मरते हैं? क्यों रोग बीमारियों की दहशत झेलते रहते हैं। इस प्रश्न का उत्तर शास्त्रकारों ने इस प्रकार दिया है कि लोग अपने आप रोग और मृत्यु को आमन्त्रित करते हैं।

योग वशिष्ठ में मृत्यु को सम्बोधित करते हुए कहा गया है— हे मृत्यु, आप अकेले—अपने ही बल से किसी को नहीं मार सकतीं। जो मरता है अपने ही कर्मों से मरता है—आप तो निमित्त मात्र हैं।

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शरीर की संरचना अद्भुत है। भगवान ने तुम्हें दीर्घजीवन के लिए अच्छा-खासा शरीर दिया है | यदि तुम उसे संभाल कर रखों तो एक लम्बा जीवन बड़ी आसानी से जिया जा सकता है।  इसके लिए तुम्हें कोई भी विशेष उपाय करने या रहस्य खोजने की जरूरत नहीं है, इसके लिए तुम्हें केवल इतना ही करना है कि इस सुन्दर यन्त्र की नटखट बच्चों की तरह तोड़-फोड़ करना बन्द कर दें और प्रकृति प्रेरणा के अनुसार सादा, सरल और शान्त जीवन जियो।

मित्रों, दुरुपयोग तो अमृत का भी बुरा होता है। आत्म-रक्षा के काम आने वाले अस्त्र-शस्त्रों को भी यदि गलत ढंग से प्रयुक्त किया जायगा तो वे अपनी ही हाथ-पैर काट देंगे। तुम आये दिन शारीरिक रोगों से पीड़ित होते हो |  विभिन्न प्रकार के शारीरिक कष्ट सहते हो |

क्या आप जानते हो यह रोग आखिर हैं क्या? ईश्वर ने जब तुम्हें इतना बढ़िया शरीर दिया तो उसके साथ यह बीमारियों की व्यथा क्यों लगा दी? जब इस प्रश्न पर विचार करते हैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ता है कि रोग केवल हमारी प्रतिकूल चलने की उद्दण्ड नीति का दुष्परिणाम है। उन्हें गलत रास्तों पर चलने का  दण्ड भी कह सकते हैं। जब तुम प्रकृति की आज्ञा का पालन नहीं करते हो तो वह तुम्हें दंड देती है | रोगों के रूप में |

मैक्स वार्म वैण्ड कहते थे—यह ठीक है कि हम मृत्यु को टाल नहीं सकते, पर यह भी गलत नहीं कि बुद्धिमानी के साथ जीवन जिया जाय तो मौत को वर्षों पीछे धकेला जा सकता है।

पहले लोग सैकड़ों वर्ष लम्बी जिन्दगी जीते थे। आज भी डेढ़ सौ से ऊपर आयु के मनुष्य जीवित हैं। सौ वर्ष तो न्यूनतम आयु मानी गई है यदि इस दीपक को जान-बूझकर बुझाने की हरकतें न की जायें, तो वह सौ या उससे भी अधिक समय तक आसानी से जीवित रह सकता है। अपने अनुभव के आधार पर भारतीय ऋषि-मुनियों ने मनुष्य की सामान्य आयु एक सौ पच्चीस वर्ष घोषित की है।

प्रकृति का यह सामान्य नियम है कि जो प्राणी जितने समय में प्रौढ़ होता है उससे पांच गुना जीवन जीता है। नियमानुसार घोड़ा पांच वर्ष में युवा होता है तो घोड़े की उम्र 25 वर्ष से 30 वर्ष तक मानी गई है। ऊंट 8 वर्ष में प्रौढ़ होकर 40 वर्ष तक कुत्ता 2 वर्ष में विकसित होकर 20 वर्ष तक और हाथी 50 वर्ष में युवा होकर 200 वर्ष तक जीवित रहता है। मनुष्य भी साधारणतया 25 की उम्र में युवा होता है। अतः 100 से 150 वर्ष तक की उम्र मानी गई है उसकी।

सौ वर्ष से अधिक जीने वाले लोगों के असंख्य उदाहरण आज भी हमारे आसपास देखें को मिल जायेंगे जिन्होंने स्वस्थ और निरोग जीवन जिया है। अधिकांश लोग सौ वर्ष से पूर्व ही जीवन समाप्त कर देते हैं| और वह भी जीवन भर स्वास्थ्य की खराबी की चिन्ता नहीं करते हुए अनेक रोग, बीमारियों के शिकार बनकर। सुखपूर्ण, स्वाभाविक और प्राकृतिक मृत्यु तो शायद ही किसी को प्राप्त होती हो।

कुछ समय पूर्व पश्चिमी जर्मनी में 30 देशों के लगभग 2000 वैज्ञानिको ने यह निष्कर्ष निकाला कि ‘‘शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की गड़बड़ी और अल्पजीवन की जड़ है आज का अप्राकृतिक, स्वाभाविक, असन्तुलित जीवन।’’

इंग्लैंड के थामस पार 152 वर्ष तक स्वस्थ हालत में जीवित रहे। वे साधारण भोजन करते थे। बादशाह चार्ल्स ने एक बाद इन्हें मुलाकात के लिए बुलाया और बढ़िया भोजन की दावत भी दी किन्तु इससे वे मर गये। इस प्रकार का भोजन उन्होंने कभी नहीं किया था इसलिए वह विषैला सिद्ध हुआ और इसी कारण उनके प्राण चले गये।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर डा. हैरिस सोबले ने यह दावा किया है कि यदि मनुष्य अपने ‘‘बिगड़े हुए वातावरण अर्थात् रहन-सहन और आचरण पर नियन्त्रण कर ले तो आयु दुगुनी-तिगुनी हो सकती है।

डा. सोबले ने आगे बताया—‘मनुष्य को अपने शरीर का ज्ञान होना चाहिए। खाने-पीने पर ध्यान देना चाहिए। शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करना चाहिए। अन्त में उन्होंने शुद्ध, पौष्टिक खाद्य पदार्थ और जलवायु की बात कही।

मनुष्य यदि नियम-संयम व श्रम का जीवन बिताये तो सौ वर्ष की आयु कोई आश्चर्य नहीं है। न केवल दीर्घायुष्य वरन् लम्बे समय तक यौन और बल, वीर्य ओज भी जीवन के अन्त तक स्थिर रखा जा सकता है।

मनुष्य क्यों बूढ़ा होता है और क्यों मरता है इस प्रश्न के उत्तर में पिछले दिनों यह कहा जाता रहा है कि इसका कारण नाड़ियों का कड़ा हो जाना है, कोशिकाओं की कोमलता घट जाना और विभिन्न अंगों में कई तरह के अवांछनीय पदार्थों का जम जाना ही बुढ़ापे का कारण है। थके और घिसे पिटे कल पुर्जे जब अपना काम करने से इनकार कर देते हैं तो प्रकृति उस मशीन को तोड़ फोड़कर गला देने के लिए भट्टी में भेज देती है और नया खिलौना ढालती है, यही है जीवन और मृत्यु का अनवरत चक्र।

घटनाये और तथ्य बताते हैं कि बीमारियां अकारण और अपने आप ही नहीं आतीं। अस्त-व्यस्तता, असंयम और अनुचित रहन-सहन बनाकर हम स्वयं ही उन्हें आमन्त्रित करते हैं। उन्हें दूर करना हो तो औषधोपचार एक सीमा तक ही काम देता है। निर्दोष और शुद्ध स्वास्थ्य तो अपने रहन-सहन, आहार-विहार में आवश्यक परिवर्तन करके ही प्राप्त किया जा सकता है। यदि शरीर को सही ढंग से रखा जाय, असंयम और अस्त-व्यस्त जीवन क्रम के द्वारा उस पर अत्याचार न किया जाय तो लम्बे समय तक स्वस्थ, जवान और शक्तिशाली रहा जा सकता है।

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