नदी की धारा को चीरकर चल पड़ने जैसा पराक्रम होना चाहिए
The Ability to Tear the Stream
दोस्तों बहुत से लोग कहते है की नदी की धारा जिस दिशा में हो उसी दिशा में तुम्हें चलना चाहिए | परन्तु मैं यह कहना चाहता हूँ कि तू अपने अंदर नदी की धारा को चीरकर चल पड़ने जैसा पराक्रम होना चाहिए | बहुत कम ही लोग होते है जो अपने साहस के बल पर चलने की रीती नीति अपनाते है | दोस्तों एक मछली को देखा है तुमने कैसे तैरती है | कभी मौका मिले तो देखना | पर मौका मिलेगा कैसे तुम तो मोबाइल में ही अपना बहुत सा समय नष्ट कर देते हो |
एक छोटी सी मछली पराक्रम के द्वारा नदी के प्रचण्ड धारा को चीर कर उसके विपरीत चली जाती है | ऐसे पराक्रमी मनुष्य को विश्व विजेता की उपमा दी जाती जो महानता को अंगीकार करके प्रतिकूलताओं से टकराते हुए आगे सतत् आगे ही बढ़ते रहते हैं।
प्राणी को प्रगति करनी चाहिए । इसके बिना न तो किसी को चैन मिलता है, न सुख । कहा जाता है कि प्राणी सुख की खोज में फिरते रहते हैं। यह कथन तब ही सही हो सकता है जब उन प्रयासों के साथ सुविधा नहीं प्रगति भी जुड़ी हो। निम्न स्तरीय प्राणी सुविधा से संतुष्ट हो सकते हैं। किन्तु जिनका आत्मा जीवित है, उनका गुजारा प्रगति की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाये बिना हो ही नहीं सकता है ।
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इस स्तर के लोग सुविधा को हांसिल नहीं करना चाहते बल्कि वह तो उस गौरव को अर्जित करने का प्रयास करते हैं जिसे प्राप्त करके वो अपनी पीठ थपथपा सके। साहस और पराक्रम के क्षेत्र में अपनी स्थिति सामान्य जन समुदाय की तुलना में अधिक ऊँची, अधिक अच्छी सिद्ध कर सके। प्रगति इसी को तो कहते हैं मेरे भाई।
जिन्हें असामान्य कहा जाता है, उनका काम इससे कम में नहीं चलाता है। वे अपनी प्रधानता प्रकट किये बिना नहीं रह सकते है। सुविधाएँ उनका प्रगति पथ कभी अवरुद्ध नहीं करती है , और न ही वे सुविधाओं पर निर्भर रहते हैं। उनके अंदर तो पराक्रम का गुण कूट-कूट कर भरा होता है|
यदि विशिष्टता सिद्ध करने की उत्कंठा यदि उथलेपन की स्थिति में हुई तो वह भोंडे प्रदर्शन एवं एक कदम आगे बढ़ने पर उद्दण्डता के रूप में प्रकट होने लगती है॥ अहंकार असभ्य प्रदर्शन न कर पाये, इसके लिए ऋषियों ने दूरदर्शियों ने मानवी मनोविज्ञान को समझते हुए इस प्रवृत्ति को उत्कृष्टता के साथ जोड़ने का प्रयास किया । आत्मा के विकास के लिए उन्होंने कुछ उपयोगी क्षेत्र निर्धारण कर सिद्ध किया कि उस राजमार्ग पर चलने में दूसरों को चकाचौंध करने वाला न सही अपनी अंतरात्मा को गौरवान्वित करने वाला, श्रेय और संतोष परिपूर्ण मात्रा में मिल सकता है। वैभव तो चतुराई से कमाया जा सकता है किंतु व्यक्तित्व का निर्माण तो मनुष्य को अपनी कलाकारिता, सूझबूझ, एकाग्रता और ऐसे पराक्रम का प्रतिफल है। जो संसार के अन्यान्य उपार्जनों की तुलना में कही अधिक महत्व पूर्ण है।
इसमें संकल्प शक्ति का परिचय देना पड़ता है। इसमें साहसिकता का परिचय देना पड़ता है। इसमें दूरदर्शिता का परिचय देना पड़ता है। जन साधारण द्वारा अपनाई गयी रीति नीति से ठीक उल्टी दिशा में चलता उस मछली के पराक्रम जैसा है जो प्रचण्ड प्रवाह को चीर कर उसके विपरीत चलती है ऐसे मनुष्यों को ही विश्व विजेता की उपमा दी गयी है जो महानता को अंगीकार कर प्रतिकूलताओं से टकराते हुए आगे सतत् आगे ही बढ़ते रहते हैं। इस मार्ग को अपनाना ही मनुष्य की सबसे बड़ी दूरदर्शिता है।
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