तुम्हें अकेले ही आगे बढ़ने का सच्चा साहस पैदा करना होगा ~ Dare To Grow Alone ~ Motivation in Hindi

 Dare To Grow Alone

तुम्हें अकेले ही आगे बढ़ने का सच्चा साहस पैदा करना होगा| किसी ने क्या खूब कहा है शरीर की ताकत मायने नहीं रखती है तुम्हारे अंदर जो साहस है उसके ताकत पर ही तुम्हारी सफलता निर्भर रहती है |

दोस्तों पानी का स्वभाव  नीचे की ओर बहना है। अगर तुम किसी वस्तु को गिरते हो तो  वह नीचे की ओर अनायास ही गिर पड़ती है। पर यदि किसी वास्तु को ऊपर की ओर ले जाना हो तो इसके लिए विशेष प्रयत्न करना पड़ता है। पानी को कुंए से ऊपर निकालना हो तो शक्ति लगानी पड़ती है। किसी वस्तु को ऊपर उछालना हो तो भी उसे फेंकने के लिए अतिरिक्त बल प्रयोग करना पड़ता है।

तुम्हारे स्वभाव में जन्म पिछले जन्मो की दुष्प्रवृत्तियों का भण्डार भरा पड़ा है। वे अपनी उछल कूद निरन्तर करती रहती हैं। उन्हें क्षण भर के लिए भी चैन नहीं है। नटखट बन्दर की तरह उनकी हरकतें चलती ही रहती हैं। ऐसी इच्छाएँ मन में उठती रहती हैं जैसी कि निम्नकोटि के प्राणियों की होती हैं। पेट भरना, अवसर मिलने पर स्वच्छन्द यौनाचार करते रहना, हमला करने या प्राण बचाने के प्रयास में लगे रहना संक्षेप में यही तीन पशु प्रवृत्तियाँ हैं। दूसरे की हानि का उन्हें कोई विचार नहीं रहता अपना मन जो करे, अपना लाभ जिसमें दिखाई पड़े वह कर गुजरना निम्न वर्ग के प्राणियों की प्रवृत्ति होती है।

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यह निम्न स्तर है, तुम तो ईश्वर के राजकुमार हो | तुमको किसी भी प्रकार यह शोभा नहीं देता है। छोटे जीवों की तुलना में मानवी चेतना की गरिमा और संभावना कहीं अधिक बढ़ी-चढ़ी है। इस जन्म में कुछ सोचने या करने का अवसर ही न मिला तो समझना चाहिए कि प्राप्त मौका तुम्हारा दुर्भाग्य बनकर रह गया।

दोस्तों इस बात को जान लो कि तुम इस भूलोक के सर्वोच्च प्राणी है। तुम्हारी शरीर संरचना और मानसिकता अद्भुत है | तुम असाधारण रूप से सौभाग्यशाली हो। तुम्हारे लिए उच्चस्तरीय श्रेय सम्पादन करने की पूरी संभावना है। आवश्यकता केवल इतनी भर रह जाती है कि तुम जीवन के साथ जुड़ी हुई उपलब्धियों का महत्व और कारण समझ जाओ।

जो किसी अन्य प्राणी को नहीं मिली वह तुम्हें प्राप्त हुआ है | इसे तुम अकारण या अनायास मिली मत मान लेना | और यह मत सोच लेना कि उपलब्धियों को अधिकाधिक मौज मजा उड़ाने में ही समाप्त कर दिया जाय। यह मौज भी नितान्त कल्पित है। वह जितने समय तक अनुपलब्ध रहती है, उतनी ही देर उस बारे में उठने वाली आकाश से तारे तोड़ने जैसी कल्पनाएँ उठती रहती हैं। पर जब इच्छित वस्तु या स्थिति प्राप्त हो जाती है तो उसके साथ जुड़े हुए दायित्व भार इतने अधिक वजनदार होते हैं कि उन्हें वहन करने भर से तुम्हारा कचूमर निकल जाता है। जो सोचा गया था वह रंगीली उड़ान भर बनकर रह जाता है। जो सिर पर लदा है उसकी न तो साज सँभाल बन पाती है, न उसे सुरक्षित रखना। तुम्हारे विरोधियों द्वारा ही उसकी झपट आरंभ हो जाती है। तुम्हारे अपने ही लोग उस लाभ में से बड़ा हिस्सा बँटाना चाहते हैं। न मिलने पर झगड़ा उत्पन्न करते है, ईर्ष्या-द्वेष का ऐसा बवंडर चल पड़ता है जिसके कारण उपलब्ध हुई सम्पदाएँ जी का जंजाल बन जाती हैं। उनका सदुपयोग कर सकना तो दूर, उन्हें सँभालना और उपयोग कर सकना तक कठिन हो जाता है। तब फिर नई कल्पनाओं की नई संरचना करने लगते हो |

यदि तुम्हें जीवन में स्वस्थ शरीर, सभ्य मन और सज्जनोचित व्यवहार की तीन कलाएँ प्राप्त हो जाये तो तुम्हारा जीवन बिना विक्षोभ और टकराहट के चल सकती है। विवेकशील मन उपयोगी योजनाएँ बनाता है | विवेकशील मन संकल्प बल तथा पुरुषार्थ के सहारे बिना भटकाए उन्हें सफल बनाने में प्रयत्न करता हैं |  सही मार्ग पर सही रीति से चलने वाले की सफलता निश्चित होती है। जीवन में अवरोध केवल तुम्हारी प्रगति की गति को धीमा कर सकते है। सफलता के चरम लक्ष्य तक पहुँचने में साधनों की कमी कुछ विलम्ब कर सकती है, पर यह नहीं हो सकता कि सुविधाओं के अभाव में तुम्हारा मार्ग अवरुद्ध पड़ा रहे। इतिहास साक्षी है कि अभावग्रस्त परिवारों और पिछड़ी परिस्थितियों में जन्में व्यक्तियों ने भी अपनी प्रतिभा के बलबूते आगे बढ़ने का रास्ता बनाया है। कोई भी साधन तुम्हें घर बैठे नहीं मिल सकते है, कोई भी सहायक तुम्हें घर बैठे नहीं मिल सकता है | उन्होंने तो अपने में आकर्षण पैदा करके सहयोग देने के लिए, उपस्थित होने के लिए बाधित किया है।

जब तक परख नहीं होती तभी तक किसी के संबंध में  तुम्हारा मन अनिश्चित और शंकालु रहता है। पर जब कठिनाई, दबावों, आकर्षणों के सामने न झुकने की स्थिति स्पष्ट हो जाती है तो तुम्हारी प्रशंसा करने वालों की भीड़ लग जाती है | तुम्हारा समर्थन करने वालों की तादात बढ़ जाती है | तुम्हारे सहयोगियों की कमी कोई नहीं रहती है। साथ ही किसी न किसी प्रकार उतने साधन भी जुट जाते हैं जो तुम्हारे आगे बढ़ने के लिए नितान्त आवश्यक होते हैं।

पुरातन काल के साधु-ऋषियों द्वारा अपनी इच्छा से सब कुछ त्याग कर देना सबको पता है | इसके द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया था कि भौतिक अनुकूलताओं के न होने पर भी व्यक्तित्व की प्रखरता अपने बलबूते निज के पैरों पर खड़े रहने और लक्ष्य की दिशा में बढ़ चढ़ने में मनुष्य पूरी तरह समर्थ होता है। यदि ऐसा न हो तो सम्पन्न लोग वैभव के आधार पर हर स्तर की सफलता खरीद लिया करते। उन्हीं का वर्चस्व सभी जगह दिखाई पड़ता।

इसके विपरीत जिन्हें सहज सुविधा उपलब्ध नहीं है, वे विवश बाधित होकर गई गुजरी अनपढ़ परिस्थितियों में ही बँधे पड़े रहते, फिर किसी निर्धन या अशिक्षित को ऐसा कुछ करने का अवसर ही न मिला होता जिसे महत्वपूर्ण कहा जा सके। सुविधा से सुगमता तो रहती है पर यह जान लो प्रतिभा असुविधाओं के माहौल में ही निखरती है। पत्थर पर घिसने के उपरान्त ही औजारों की धार तेज होती है। ठीक इस प्रकार प्रतिकूलताओं से संघर्ष करने के उपरांत ही तुम Intelligent बनते हो | तुम्हारा I.Q level बाद जाता है | तुम तेजस्वी बनते हो | तुम प्रखरता सम्पन्न बनते हो |

जो मनुष्य साहसी है और अकेले आगे बढ़ता है उसी का जीवन  ही सच्चा जीवन होता है| सोचिए अगर तुम्हारे अंदर कुछ भी करने का साहस नहीं होता तो तुम्हारी जिंदगी का सफर कैसा होता ? इसलिए दोस्तों तुम अपने अंदर अकेले ही आगे बढ़ने का सच्चा साहस पैदा करों | तुम सफलता प्राप्त करोगे | यह विश्वास रखो | 

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