भाग्य को जाना नहीं, अपने पुरुषार्थ के बल से बनाया जाता है! ~ Destiny Is Created By the Power of One's Own Effort ~ Motivation

 

भाग्य को जाना नहीं, बनाया जाता है! Destiny Is Created By the Power of One's Own Effort

दोस्तों आज की इस वीडियो में मैं बात करूँगा भाग्य को जाना नहीं, अपने पुरुषार्थ के बल से बनाया जाता है!

प्राचीन काल में ज्योतिष का सीधा सम्बन्ध नक्षत्र विद्या से था। सुदूर स्थित ग्रह-नक्षत्रों का ज्ञान, उनकी गति गणना और स्थिति का वैज्ञानिक अनुसंधान अपने देश में उस समय चरम उत्कर्ष पर था जब लोगों में कर्मफल के सिद्धाँत पर दृढ़ आस्था थी। जब तक ज्योतिष विशुद्ध विज्ञान का विषय रहा तब तक इस दिशा में प्रगति भी होती रही और लोगों में कर्म के प्रति आस्था बनी रही, परिश्रम के प्रति आस्था बनी रही, पुरुषार्थ के प्रति आस्था बनी रही। पर कालान्तर में न जाने यह मान्यता कैसे चल पड़ी कि लाखों-करोड़ों मील दूर पर स्थित तारे और नक्षत्र एक-एक व्यक्ति के निजी जीवन पर अपना विशिष्ट प्रभाव डालते और शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं।

फलित ज्योतिष, हस्तरेखा, अंक विज्ञान, आकृति विज्ञान, कम्प्यूटर ज्योतिष आदि न जाने कितनी विद्यायें आज चल पड़ी हैं जिनके माध्यम से तुम भविष्य को जानने की कोशिश करते हो। कहा जाता है कि इन विधाओं के माध्यम से भविष्य को जान कर व्यक्ति संभावित विपत्तियों से बच सकता है। इस मान्यता की संगति भारतीय संस्कृति के प्राण-कर्मफल के सिद्धांत से कहाँ मेल खाती है

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 भारतीय देवसंस्कृति का प्रत्येक मानने वाला यह जानता और मानता भी है कि हम जो कर्म कर चुके हैं, उनका ही फल आज भोग रहे हैं और जो आज कर रहे हैं उनके भले-बुरे परिणाम कल भोगने पड़ेंगे। तब भविष्य की संभावित घटनायें जानकर व्यक्ति उनसे कहाँ तक बच सकता है। पहली बात तो यह है कि उन घटनाओं को इस विद्या द्वारा जाना ही नहीं जा सकता और यदि किसी तरह जान भी लिया जाय तो उनके परिणामों से बच पाना असंभव है। फिर उन्हें जानने से क्या लाभ?

बुद्धिजीवियों का कहना है कि इससे लाभ तो कुछ नहीं होता। हाँ हानि की ही अधिक संभावना रहती है। इस तथ्य को इस कहानी के माध्यम से भली प्रकार समझा जा सकता है- कहा जाता है कि सृष्टि के निर्माण होने के बाद भगवान् ने प्रत्येक मनुष्य को जन्म लेने पर उसका भविष्य सुना देने का नियम बनाया था। उस नियम का बराबर पालन भी किया जाता था। एक बार किसी कुकर्मी व्यक्ति ने पुनर्जन्म लिया। पिछले जन्म के पापों का दुष्परिणाम उसे इस जन्म में भोगना था, अतः उसका भाग्य बड़े ही भयंकर ढंग से लिखा गया। 60 वर्ष की आयु तक उसकी किस्मत में तमाम कठिनाइयाँ और विपत्तियाँ लिखी गई थी। फिर उसे ऐसे भयंकर रोग से ग्रस्त होना बताया गया था कि जो चालीस वर्ष तक कष्ट देता रहता। इस प्रकार इन यातनाओं को सहते हुए उसके भाग्य में सौ वर्ष की आयु पार करने पर मृत्यु लिखी गई।

यह भविष्य उस व्यक्ति के जन्म लेते ही नियमानुसार सुनाया गया। एक-एक विपत्ति का वर्णन सुनकर वह व्यथित होता गया और अन्त में जाकर वह इतना चिंतित तथा उद्विग्न हो उठा कि सौ वर्ष जीना तो दूर, तत्क्षण ही भय के कारण मर गया। यह कहानी वस्तुतः एक रूपक की तरह है जिसे पढ़कर समझना चाहिए कि दूरदर्शी और करुणामय परमात्मा यदि कर्मफल की दृष्टि से किसी का भाग्य निश्चित करता भी हो तो, उसे जानने के कोई सूत्र नहीं छोड़ता। यदि इस प्रकार के सूत्र छोड़े जाते हैं तो मनुष्य अपना सारा भविष्य पहले से ही जान लेता और यदि भाग्य में सुख-सुविधाएँ लिखी हैं तो पहले से ही निश्चित होकर बैठ जाता क्योंकि करने से तो कुछ तो कुछ होना ही नहीं है, नियति ने पहले से ही सब कुछ निश्चित कर रखा है। फिर कुछ करने-कराने से क्या अंतर पड़ता है, और यदि भाग्य में कष्ट और विपत्तियाँ ही हैं तो क्यों न पहले से ही आत्महत्या कर उनसे छुटकारा पाले।

कर्मफल के इन सामान्य सिद्धाँतों से परिचित होने के बावजूद भी बहुत से शिक्षित-अशिक्षित लोगों को अपना भाग्य जानने के लिए इतनी उत्सुकता है कि ज्योतिष आजकल एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में विकसित हो गया है। ज्योतिषी, हस्तरेखाविद्, आकृति विज्ञानी आदि भविष्यवक्ता भोली जनता को भाग्य के सितारों की चाल बताकर दोनों हाथों से अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। यही नहीं तथाकथित प्रगतिशील अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में भी दैनिक, साप्ताहिक, मासिक तथा वार्षिक राशिफल छपते रहते हैं। समझ में नहीं आता कि अपनी प्रगतिशीलता का ढिंढोरा पीटने वाले अखबार भी इस अवसरवादिता से लाभ उठाने में क्यों संकोच नहीं करते?

हमें अनुग्रहीत होकर भाग्य जानने के लिए इधर-उधर भटकने की अपेक्षा परिश्रम और पुरुषार्थ द्वारा अपने भाग्य का स्वयं निर्माण करने में लगना चाहिए। भाग्य को जानना असंभव है, पर उसका निर्माण अपने परुषार्थ के द्वारा किया जा सकता है। यह चेतना जब प्रत्येक व्यक्ति में जायेगी तो समाज में कर्मठता भावना उत्पन्न होगी, पुरुषार्थ भावना उत्पन्न होगी, लगन की भावना उत्पन्न होगी।

 

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