आदतों का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है ~ Effect of Habits on Life ~ Motivation in Hindi

 Effect of Habits on Life

दोस्तों हमारी आदतों का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है | आदत किसी प्राणी के उस व्यवहार को कहते हैं जो बिना अधिक सोच के बार-बार दोहराया जाये।

मनुष्य का स्वभाव है कि जिस काम को वह एक बार कर लेता है उसे फिर करना चाहता है, जिस विचार को एक बार मान में स्थान देता है उसे फिर मन में लाना चाहता है। अपने अनुभवों की आवृत्ति में उसे तृप्ति मिलती है। इस प्रकार जब कोई भाव चित्त में ठहर जाता है और बार-बार दुहराया जाता है, तो एक नई आदत बन जाती है।

दोस्तों उदासीनता तथा आनन्द
, क्रोध तथा शान्ति, लोभ उदारता-वस्तुतः समस्त मानसिक वृत्तियाँ—अपनी रुचि से ग्रहण की हुई आदतें हैं। जिस जगह से एक बार कागज मुड़ जाता है, अवसर आने पर दुबारा वही सरलता से मुड़ जाता है। पुराने अनुभव को दुहराने की यही वृत्ति हमारी सब आदतों का मूल है। और जो अनुभव विचार जितना ही दोहराया जाता है उसका संस्कार उतना ही दृढ़ होता जाता है और फिर वह जैसे हमारे स्वभाव का अंग ही बन जाता है और दृढ़ आदत का रूप धारण कर लेता है। ये ही आदतें जीवन के स्रोत हैं—जीवन की उत्पत्ति इन्हीं से है।

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अपने अनुभवों की पुनरावृत्ति द्वारा ज्ञान प्राप्त करना मन का स्वभाव है। आरम्भ में जिस विचार को ग्रहण करना और उस पर स्थिर रहना बड़ा कठिन होता है, अन्त में वही विचार मन में निरन्तर घूमने से प्राकृतिक तथा स्वाभाविक वृत्ति बन जाता है। जैसे किसी कार्य या व्यापार के सीखने में आरम्भ में बड़ी कठिनता होती है किन्तु कुछ समय के बाद धैर्य और अभ्यास से वही कार्य बिलकुल आसानी और पूरी चतुरता से पूरा हो सकता है वैसे ही किसी वृत्ति को मन में स्थापित करने के लिए चाहे पहले कितनी ही कठिनता या असंभाविता प्रतीत हो पर लगातार परिश्रम और अभ्यास से वह दृढ़ हो जाती है और अन्त में चरित्र का स्वाभाविक और सहज अंग बन जाती है।

जिस प्रकार हमारी मूल प्रवृत्ति हमें विशिष्ट अनुभवों के लिए प्रेरित करती है, उसके लिए हमें आतुर बनाती है, वैसे ही आदत भी पहले से प्राप्त अनुभव की पुनः प्राप्ति के लिए हमें उतावला बना देती है।

जो प्रातः काल उठकर स्नान करने और टहलने के आदी हैं उन्हें उस समय जब किसी कारण से नहाने या टहलने को नहीं मिलता तो वे खोये-खोये से दिखाई पड़ते हैं। अखबार पढ़ने का आदि व्यक्ति समय से अखबार न पाकर उसके लिए बेचैन हो उठता है। टेनिस का खिलाड़ी ठीक समय से क्लब की ओर चल पड़ता है। उस समय उसका मन न तो पढ़ने में और न बात करने में रमता है।

इसलिए व्यक्तित्व विकास एवं चारित्रिक शिक्षा में उचित आदतें डालने का विशेष महत्व है। आदत का चरित्र पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है।

सेमुअल स्माइल्स ने मनुष्य को ‘आदतों का पुँज’ कहा है। आदत किसी भी बात की डाली जा सकती है। श्रेष्ठ आचरण की आदत पड़ने से मनुष्य का चरित्र श्रेष्ठ हो सकता है। परन्तु बुरी आदत पड़ जाने पर आदमी दुश्चरित्र हो जाता है। वास्तविक शिक्षा तो वाँछनीय आदतें डालने का ही दूसरा नाम है।

किसी काम की हमें आदत पड़ जाती है वह कम समय एवं कम श्रम से ही सम्पादित होने लगता है। जब हम टाइप करना सीखते हैं तो आरम्भ में एक मिनट में पाँच-सात अक्षरों को टाइप कर लेना भी काफी मुश्किल मालूम पड़ता है। परन्तु आदत पड़ जाने के बाद 150 अक्षर तक प्रति मिनट के अनुपात से लोग टाइप करने लगते हैं। जो बालक आरम्भ में बड़े परिश्रम के बाद आधे घण्टे में कुछ ही अक्षर लिख पाता है वही लिखने की आदत पड़ जाने पर कई पृष्ठ उतने ही समय में बड़ी सरलता से लिखने लगता है।

आदत पड़ जाने पर काम में केवल शीघ्रता ही नहीं होती बल्कि कुशलता भी आ जाती है। जब कोई पहले मिट्टी के खिलौने बनाना आरम्भ करता है तो उसके बनाने में अधिक समय तो लगता ही है, खिलौना भद्दा भी बनता है। परन्तु अभ्यास से वही सुन्दर बनने लगते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि आदत ही कुशलता की जननी है।

जहाँ उचित आदत तुम्हारा उपकार करती है वहाँ बुरी आदत तुम्हारी हानि भी बहुत कर सकती है। जब तुम्हें एक बार कोई आदत पड़ जाती है। तो तुम उसके गुलाम बन जाते हैं, कोशिश करके भी छुटकारा पाना तुम्हारे लिए मुश्किल ही हो जाता है। कितने ही सत्संकल्प करके भी शराबी विवश होकर शराब पीता है। अतः अच्छी आदतें डालना जितना आवश्यक है, बुरी आदतों से बचना और भी जरूरी है। साधारणतः यह कहा जाता है कि भलाई करने से बुराई करना और पुण्य करने से पाप करना और सहज होता है।

यह बात सर्वमान्य है—लोग इसे एक स्वयं सिद्धि बात मानते हैं। गौतम बुद्ध जैसे श्रेष्ठ पुरुष ने भी कहा है—”बुरे और हानिकारक कार्य करने में सहज होते हैं, लेकिन लाभकारी कार्य और उत्तम अति कठिन  हैं।” परन्तु जैसे मनुष्य में बुरी लत पकड़ने की क्षमता है वैसे ही अच्छे लक्षण सीखने की भी है। अच्छी आदतों और वृत्तियों को बनाने और बदलने की जो मन में शक्ति है वही मनुष्य को इन्द्रियों के वश में मुक्त कर पूर्ण स्वतंत्रता का पथ दिखलाती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मन में अच्छे विचार लाने और अच्छे काम करने की आदत डालने के लिए बहुत अभ्यास और निरन्तर मेहनत की आवश्यकता है, किन्तु अन्त में एक समय वह आता है जब अच्छे विचार और कार्य करना स्वाभाविक और सरल हो जाता है और बुरे कर्म करना कठिन तथा सर्वथा अस्वाभाविक हो जाता है।

लोगों के लिए पाप करना सरल और स्वाभाविक है, क्योंकि उन्होंने किसी बुरे काम को बार-बार करके ज्ञानहीन विचारों की आदत डाल ली है। अवसर मिलने पर चोर के लिए चोरी करने से रुक जाना अति कठिन है, क्योंकि इतने दिनों तक उसके मानसिक भाव लाभ और लालच से परिपूरित थे। किन्तु ईमानदार आदमी के लिए—जिसने अब तक खरे और सत्य विचारों में अपना जीवन व्यतीत किया हो और इसलिए जिसे चोरी की नीचता, मूर्खता और निष्फलता का इतना ज्ञान हो गया हो कि उसके मन में चोरी करने का ध्यान तक भी नहीं आता है | समस्त पाप और पुण्य की नींव इसी तरह पड़ती है।

लाखो मनुष्यों के लिए क्रोध और अधीरता स्वाभाविक और सरल है, क्योंकि वे ऐसे विचारों और कार्यों को मन में बार-बार स्थान देते है और प्रत्येक बार दुहराने से यह आदत और अधिक दृढ़ तथा स्थायी होती जाती है। इसी प्रकार शान्ति और धैर्य गुण भी स्वाभाविक बनाए जा सकते हैं—प्रथम शान्ति तथा धैर्ययुक्त विचार मन में लाने और फिर उसे निरन्तर मन में घुमाने से और उसी में प्रवृत्ति हो जाने से वैसा ही स्वभाव हो जाता है। इस प्रकार शाँत रहने और धैर्य धरने की आदत पड़ जायगी और क्रोध और अधीरता सदा के लिए विदा हो जायगी। इसी तरह सभी खोटे विचार मन से निकाले जा सकते हैं, अशुभ कर्म से छुटकारा मिल सकता है और पाप पर विजय प्राप्त हो सकती है।

जिस बात की आदत डालनी हो हमें उसके लिए दृढ़ प्रतिज्ञा करनी चाहिए। यदि मुमकिन हो तो यह प्रतिज्ञा बहुत लोगों के सम्मुख की जाय जिससे आत्म गौरव की रक्षा करने के लिए उसका पालन करना हमारे लिए आवश्यक हो जाय। प्रतिज्ञा करने के बाद उसे कार्य रूप में परिणत करने में शीघ्रता करनी चाहिए क्योंकि जैसे-जैसे समय टलता जाता है, इरादा ढीला पड़ता जाता है। कार्य आरम्भ करने के उपरान्त उसमें किसी प्रकार का अपवाद तब तक न होने देना चाहिए जब तक आदत पूर्ण रूप से पुष्ट न हो जाय। जिस प्रकार किसी सूत के गोले को बहुत देर तक लपेटने के बाद यदि छोड़ दिया जाय तो एक बार छूटने से बहुत देर का श्रम व्यर्थ हो जाता है वैसे ही बहुत दिनों की पड़ी आदत एक ही अपवाद से ढीली तथा शिथिल पड़ जाती है। याद रहे कि जब तक आदत पूरी तरह पुष्ट न हो जाय तब तक किसी प्रलोभन से उसके विरुद्ध कार्य नहीं करना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो काम किया जाय उस सम्बन्ध में विचार तथा बातचीत कम से कम की जाय। बात, सूक्ष्म विचार, ऊँची-ऊँची उड़ान मन को दूसरी ओर ले जाकर चित्त को चंचल करते हैं और आदत में सहायक बनने के स्थान में बाधक होते हैं। आदत पड़ जाने के बाद भी, कभी-कभी उसकी आवृत्ति करके अभ्यास बनाये रखना चाहिए।

इन सब बातों का ध्यान रखने से अनेक अच्छी आदतें डाली जा सकती हैं। शिक्षा में तो इस प्रकार से, समय से काम करने की, शिष्टाचरण की, नियम मानकर चलने की, सच बोलने की, बड़ों का सम्मान करने की, स्वास्थ्य की, सफाई, ईमानदारी, आदि की सुन्दर आदतें यदि आरम्भ से ही डाली जाय तो सब अभ्यास होने पर याँत्रिक सी हो जाती हैं। परन्तु साथ ही हमें किसी भी बुरी बात की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए नहीं तो वही आदत का रूप धारण कर बालक के चरित्र को गिरा देगी। याद रहे कि जीवन में अच्छी आदतें डालना तथा बुरी आदतों से बचना दोनों ही आवश्यक हैं। आरम्भ से ही सुन्दर आदतों के डालने से श्रेष्ठ चरित्र का निर्माण हो सकता है परन्तु बुरी आदतों से जीवन का पतन। अतः आदत की प्रबल शक्ति को जानकर अच्छी आदतों के डालने के लिए प्रयत्नशील और प्रत्येक बुरी आदत से बचने के लिए सदैव सावधान रहना चाहिए।

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