उदासी एक रोग है इससे दूर रहो ~ Personality Development ~ Motivation in Hindi

 उदासी एक रोग है इससे दूर रहो

दोस्तों आज की इस वीडियो में मैं बात करूँगा उदासी क्या है ?  उदासी क्यों होती है? और उदासी से कैसे बचा जा सकता है ? उदासी अपने आप में एक रोग है।

तुमको हँसमुख होना चाहिए। तुमको उत्साही होना चाहिए। तुमको क्रियाशील होना चाहिए। तुमको जोशीला होना चाहिए। तुमको आनंदित होना चाहिए। जरा छोटे बच्चों को तो देखो |  वह किस तरह रहते है |

छोटे बच्चे जो स्वयं तो प्रसन्न रहते ही हैं, परिवार के लोगों यहाँ तक कि परिचितों और अपरिचितों को भी प्रसन्न करते हैं। छोटे बच्चों की तरह- मानवी संरचना अपने आप में ऐसी है जो प्रकृति के साथ उपयुक्त तारतम्य बिठाकर सहज ही प्रसन्न रह सकती है।

.

अगर तुम अपने शरीर और मन को निरोग रख सको तो इतने से काम चल सकता है |

दोस्तों जिसका पाचन तंत्र ठीक रहता है, उसके ठीक रहने पर शरीर के अन्य अवयव भी अपना काम सही रीति से अंजाम देते हैं। इसके लिए तुम्हें दो बाते हमेशा याद रखनी है पहला कम खाएं और दूसरा जो भी खाएं वह सुपाच्य और पौष्टिक होना चाहिए | किसी भी अंग के रोगी या गतिहीन होने का असर सिर पड़ता है और वह भारी रहने लगता है। कभी-कभी बढ़कर सिरदर्द के रूप में प्रकट होता है। आवश्यक नहीं कि इसका कारण मस्तिष्कीय कोई खराबी ही हो। शरीर के किसी भाग में अवरोध अड़ने पर उसकी प्रतिक्रिया समूचे शरीर पर होती है और उसका एक लक्षण उदासी के रूप में भी प्रकट होता है। इसलिए पेट को हल्का रखने के साथ-साथ उसे उत्साहवर्धक श्रम में भी लगाइए।

दोस्तों क्या आप जानते हो व्यायाम इसी उद्देश्य के लिए किया जाता है कि निष्क्रियता-जन्य अवरोधों से पीछा छूटे और काम को भार मानने की अपेक्षा मनोरंजन मानने की प्रवृत्ति बढ़े।

यह आवश्यक नहीं पहलवानों की तरह दंड बैठक जैसे कड़े और थकान वाले व्यायाम किए जाएँ। तेजी के साथ टहलने में नई-चीजों को देखने के अतिरिक्त व्यायाम भी हो जाता है। इसमें भी कोई मित्र, साथी, सहयोगी रह सके तो बीच-बीच में कुछ बातें करने या हँसने-हँसाने का सिलसिला भी चलता रहता है।

शारीरिक श्रम से नाड़ियों की गति तीव्र होती है साथ ही मानसिक उत्साह भी बढ़ता है। यदि व्यायाम की, टहलने की सुविधा न हो तो घर पर ही शरीर के अंगों को धीरे-धीरे फैलाने और धीरे-धीरे सिकोड़ने की धीमी गति देर तक अपनाई जा सकती है। दुर्बलों, वृद्धों, गर्भवती स्त्रियों, बीमारों के लिए तो स्वास्थ्य विज्ञानी ऐसे ही अंग संचालनों की सलाह देते हैं।

शरीर के साथ ही उदासी में मानसिक विकृतियाँ भी एक बहुत बड़ा कारण होती हैं। अपने को एकाकी समझना, सबसे अलग उपेक्षित समझना ऐसी भूल है जिसका परिणाम जीवन को निरानंद बना देता है, नीरस बना देता है। तुम्हें अपने आप को समाज का अंग मानना चाहिए। परिवार को सुखी और समुन्नत बनाने में रुचि लेनी चाहिए। घर एक ऐसा उद्यान है जिसमें विभिन्न आयु और रिश्तों के व्यक्ति रहते हैं। उनकी अपनी-अपनी इच्छाएँ, आवश्यकताएं, समस्यायें और विशेषतायें होती हैं। उन्हें तभी समझा जा सकता है जब घनिष्ठता और आत्मीयता का भाव रहे। इस मनःस्थिति में वे सभी प्रिय लगते हैं और उनके भटकावों को घटाने और सुयोगों को बढ़ाने में यथासंभव रुचि लेना ऐसा काम है जो अपनी और पराई दृष्टि में व्यक्तित्व का मूल्य बढ़ाता है। जिसके फलस्वरूप प्रसन्नता का वातावरण बनना स्वाभाविक है।

दोस्तों गुमसुम एकांत में बैठे रहने की आदत भी जिंदगी को बोझिल बना देती है। इसलिए घर के कामों में योगदान करने का अवसर ढूंढो|  दफ्तर के कामों में योगदान करने का अवसर ढूंढो| व्यवस्था के कामों में अपना योगदान करने का अवसर ढूँढ़ते रहना चाहिए। इससे सुव्यवस्था का आनंद मिलेगा और अपने कर्तव्य की उपयोगिता पर तुम्हें हर्ष भी होगा। तुम इस पर गौरव भी अनुभव करोगे।

आजीविका उपार्जन के कामों के अतिरिक्त बचा हुआ समय स्वाध्याय में लगाइए। जीवन को ऊँचा उठाने वाली, गुत्थियों को समझने और सुलझाने वाली पुस्तकें एक शानदार मित्र और परामर्श दाता की तरह हैं, जो अपने चिंतन को परिष्कृत करने में जितनी सहयोगी बनती है, उसकी तुलना में उन पर किये जाने वाला खर्च बहुत ही कम होता है। उपयोगी पुस्तकों के अध्ययन को आजीविका उपार्जन के समान ही महत्व देना चाहिए। उपयोगी से तात्पर्य यह है कि मात्र मनोरंजन करने वाले साहित्य से नहीं है। विषैले पदार्थों की तरह उनसे बचा ही जाना चाहिए, उन्हें पढ़ने की अपेक्षा न पढ़ना ही अच्छा। गंदे उपन्यास, कामुकता, भड़काने वाले साहित्य आजकल बहुत हैं। उनसे बचा भी जाना चाहिए और बचाया जाना भी।

कोई मनोरंजक कला, कौशल प्रयोग में लाने की गुंजाइश हो तो उसकी व्यवस्था बनानी चाहिए। संगीत, बागवानी, टूशन पढ़ाना जैसे कई ऐसे माध्यम हो सकते हैं जो ज्ञान भी बढ़ाते और एकाकी बैठे रहने की मनहूसियत से भी बचाते हैं। बच्चों के साथ खेलना, उन्हें कहानियाँ सुनाना, प्रश्नोत्तर के आधार पर अपना और उनका मनोरंजन करना भी एक उपयोगी स्वभाव है जिसे आदत में सम्मिलित करने का प्रयत्न भी करते ही रहना चाहिए।

प्रकृति के जुड़ें| तुम्हारे आसपास उड़ने, चहचहाने वाले पक्षी बिना पैसे के खिलौने हैं। बादल, टीले, जलाशय, वृक्ष, फल−फूल यदि रुचिपूर्वक देखे जा सकें तो यह समूचा संसार एक खिले हुए उद्यान की तरह आकर्षक प्रतीत होगा। किसी ऊँचे स्थान पर बैठकर चारों ओर नजर दौड़ाने से खेतों, बगीचों की सैर करने में ऐसा बहुत कुछ मिल सकता है जो तुम्हारी उदासी को दूर कर सकता है। पर तुम्हारे पास तो टाइम ही नहीं है |

दोस्तों कई बार चिंतन में विकृति घुस पड़ती है | जिससे खीज और उदासीनता का दौरा पड़ता है| भविष्य में क्या होने वाला है, किसी को पता नहीं, फिर उसे अनुपयुक्त मानकर अपने आपको चिंता के गर्त में क्यों धकेला जाय? , निराशा के गर्त में क्यों धकेला जाय? भय और आशंका के गर्त में क्यों धकेला जाय? अगले दिनों सफलतायें मिलने, सहयोग उपलब्ध होने और उन्नति के अवसर आने की सकारात्मक कल्पनायें करते रहने में ही क्या हर्ज है। वे फलित होती हैं तब तो ठीक अन्यथा उनकी कल्पना तो तात्कालिक आनंद प्रदान करती ही है।

परिस्थितियों की तरह किन्हीं व्यक्तियों को अनुपयुक्त मानते रहने की अपेक्षा यह अच्छा है कि उसकी भूतकालीन तथा वर्तमान काल की जो अच्छाइयाँ दिखाई पड़ें उन पर संतोष व्यक्त करें, साथ ही स्थिति में सुधार करने की यथा संभव चेष्टा करते रहें कृतघ्नता जितनी कष्टदायक होती है वैमनस्य उत्पन्न करती है, उसकी तुलना में कृतज्ञता की प्रवृत्ति ऐसी है जो अपने को प्रसन्नता प्रदान करती है और शत्रु को मित्र बनाती है।

अपनी वर्तमान स्थिति को बेकार वे ही मानते हैं जो अपने से अधिक सुखी या संपन्न लोगों के साथ तुलना करते और असंतुष्ट रहते हैं। यदि अपने से पिछड़े या अभावग्रस्त लोगों के साथ तुलना करें तो प्रतीत होगा कि तुम्हारी वर्तमान स्थिति भी लाखों व करोड़ों से अच्छी है। अपनी असफलताओं और कमियों की सूची मस्तिष्क में लादे फिरने से वे बहुत भारी बन जाती है अच्छा यह है कि भूतकाल की सफलताओं और भविष्य की आशाओं को सुंदर गुलदस्ते की तरह सजाये और उसे देखकर अपनी प्रसन्नता में वृद्धि की जाये तो उदासी से छुटकारा मिल सकता है।

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ