तुम अपने ऊर्जा के भण्डार को नष्ट न करो ~ Your Energy Reserves ~ Motivation in Hindi

 

तुम अपने ऊर्जा के भण्डार को नष्ट न करो | इस बात को हमेशा याद रखना कोई दूसरा तुम्हें सकती नहीं देता है, बल्कि इसका मूल स्रोत तुम्हारे अंदर है | स्वामी विवेकानन्द के शब्द में— “अपने भीतर ही वह शक्ति मौजूद है। यदि तुम कार्य करने में लग जाओ, तो फिर देखेगा कि इतनी शक्ति आएगी कि तुम उसे संभाल भी न सकोगे।

तुम्हारे अंदर अनंत शक्तियों का भण्डार भरा पड़ा है। शारीरिक-मानसिक शक्तियों के अतिरिक्त आत्मचेतना की प्रचंडता का तो कहना ही क्या, जो अपने बनाने वाले की समस्त शक्तियों, विभूतियों एवं संपदाओं से विभूषित है; परंतु इनमें से 99% शक्तियाँ सोई हुई अवस्था में पड़ी रहती हैं। इसी तरह जाग्रत शारीरिक-मानसिक क्षमता का अधिकांश भाग व्यर्थ के कामों में नष्ट होता रहता है। 

बाहरी साधनों की ओर ही अधिक ध्यान आकृष्ट रहने के कारण स्वयं के लिए शक्ति और उसके व्यय की क्या स्थिति चल रही है, इस ओर कोई देखने की भी आवश्यकता अनुभव नहीं करता है, फलस्वरूप लगाई गई शक्ति और किए गए प्रयत्नों के एक प्रतिशत भाग का ही परिणाम सफलता के रूप में दिखाई पड़ता है। और बची हुई शक्ति तुम्हारे अव्यवस्थित रहने के कारण नष्ट हो जाती हैं, तुम्हारे अनावश्यक तरीके के कारण नष्ट हो जाती हैं, तुम्हारे फूहड़ ढंग के कारण नष्ट हो जाते हैं।

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इस दुनिया सफलता प्राप्त करना कौन नहीं चाहता है? सब लोग यह भी जानते हैं कि बिना प्रयत्न किए वांछित परिणाम नहीं मिलते है। इसलिए हर कोई प्रयत्न भी करता है; परंतु फिर भी सफलता नहीं मिलती, तो इसका कारण भाग्य या पुरुषार्थ का शिथिल होना मात्र ही नहीं है। सफलता या असफलता मात्र शक्ति-सामर्थ्य पर ही नहीं, वरन बहुत कुछ हमारी कार्यपद्धति पर भी निर्भर करती हैं, जिसका नियोजित होना आवश्यक है, जिसका व्यवस्थित होना आवश्यक है, जिसका नियमित होना आवश्यक है और जिसका क्रमबद्ध होना आवश्यक है।

दोस्तों एक बड़े पत्थर को उसके स्थान से हटाने के लिए दस व्यक्ति भी शायद पर्याप्त न हों, परंतु उसे युक्तिपूर्ण तरीके से कोई एक समझदार व्यक्ति भी आसानी से हटा सकता है। दस व्यक्ति अयुक्तिपूर्ण तरीके से हटाने का प्रयास कर अपनी शक्ति का अपव्यय ही करते हैं, जबकि समझदार आदमी अपनी अकेली शक्ति का एक भाग लगाकर ही उस कार्य को संपन्न कर लेता है, पूरा कर लेता है। ।

यदि तुम सूझ-बूझ और समझदारी से अपने प्रत्येक कार्य को करने का संकल्प लें लो, तो तुम इस क्षति को रोक सकते हो। शक्ति के प्रयोग में बुद्धि का उपयोग करने से तुम इस क्षति को रोक सकते हो| तुम्हारा किसी कार्य में उन्माद और ज्ञान का न होना इस अपव्यय का कारण है।

Sister निवेदिता ने कहा है कि, “शक्तिवानों के पास शक्ति तो बहुत है, पर वास्तव में उस शक्ति का सही प्रयोग वही कर सकता है, जिसके पास शक्ति से परे का विचार है।” शक्ति प्रयोग करने के लिए है, हमें अपनी बाढ़ में बहा ले जाने के लिए नहीं। Sister निवेदिता ने संयम को शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत बताया है।

कोई नवयुवक जब अपने जीवन के कार्यक्षेत्र में उतरता है, तो उसे विश्वास रहता है कि मेरे पास शक्ति का अगाध भंडार है। अदम्य आत्मविश्वास और साहस से भरा हुआ यौवन अक्सर युवकों को अतिवादी और अभिमानी बना देता है। इस अभिमान में वह अपनी शक्तियों को अनियंत्रित ढंग से नष्ट करने लगता है।

इस संबंध में प्रख्यात मनीषी ‘विलियम शेक्सपियर’ ने ‘मेजर फॉर मेजर’ नामक अपनी कृति में लिखा है कि, “यह एक अच्छी बात है कि दैत्य स्तर की शक्ति हो; किंतु यह अत्याचारपूर्ण है कि उसका दैत्य की तरह उपयोग किया जाए।” जहाँ कहीं भी, जब कभी शक्ति-अभिमान के कारण अनाचरण हुए हैं, वह निश्चित रूप से घातक और असफलता प्रदान करने वाले ही सिद्ध हुए हैं। जब अवसर निकल जाता है, तो पश्चात्ताप के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं लगता।

रावण, कंस, हिरण्यकशिपु जैसे अतिबलशाली दैत्य इसके इतिहास में सबसे प्रसिद्ध उदाहरण हैं। अंत समय में लक्ष्मण को उपदेश देते हुए महाबली रावण ने यही कहा था कि, “मैं इस दुनिया में कई अच्छे काम करना चाहता था; परंतु यही सोचता रहा कि मुझमें तो अपार शक्ति है, जब चाहूँगा कर लूँगा। इस तरह उन्हें कल पर टालते-टालते मेरा काल ही आ धमका; किंतु वह कल नहीं आया, जिस दिन मैं वे कार्य कर सकता था। अपरिमित शक्ति मात्र अत्याचार में ही लगी रही और उसके सदुपयोग का अवसर बीत गया।

शक्ति किसी कार्य में लगे या न लगे, उसका खरच होना तो रोका नहीं जा सकता। उपयोगी कार्यों में न लगने पर वह आलस्य, प्रमाद या परपीड़न— अत्याचार जैसे दोषों से तुमको पथभ्रष्ट करके ही रहेगी। वह सामर्थ्य तुम्हें दूषित जीवन की ओर ही धकेलती है। दोसतों अतिविश्वास भी कभी-कभी आलस्य और अन्य बुराइयों को जन्म देता है। व्यक्ति सोचने लगता है कि हमारे पास तो शक्तियों का अतुल भंडार है। इसको जब चाहेंगे तब कर लेंगे। कल पर छोड़ा हुआ आज का काम अनिवार्य रूप से अधिक श्रम माँगेगा; परंतु पहली बात तो यह है कि आलस्य और प्रमाद के कारण टाला गया काम कभी पूरा भी होगा, यह भी संदिग्ध है।

गुरु गोलवलकर’ ने शक्ति के उस स्वरूप की प्रशंसा की है, जो सद्गुण की प्रेरणा से युक्त हो, जो नम्रता की प्रेरणा से युक्त हो, जो पवित्रता की प्रेरणा से युक्त हो, जो परोपकार की प्रेरणा से युक्त हो, जो मानवमात्र के प्रेम से युक्त हो | प्रायः जिनके पास जितनी बड़ी शक्ति होती है, वह उतना ही अधिक उसका दुरुपयोग करता हैं, दूषित जीवन बिताने वालों की शक्तियों का उपयोग बेकार और अनावश्यक कार्यों में ही होता है।

सुप्रसिद्ध विचारक ‘स्वेट मार्डेन’ ने इस बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, “हजारों दिन की एकत्र की हुई शक्ति को बेकार के कार्यों में खर्च कर डालना क्या मूर्खता नहीं है? जिन शक्तियों को काम में लाने से तुम्हें शारीरिक और मानसिक कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है, तुमने उन्हें नादानी में यों ही बरबाद कर दिया | यह कहाँ की बुद्धिमानी है।”

और भी बहुत से तरीके है जिनसे तुम्हारी शक्तियों का अपव्यय होता है। अपनी आवश्यकता तथा सामर्थ्य से अधिक श्रम करने के कारण आई हुई थकान उस दिन के लिए तुमको बेकार कर देती है। यदि तुम एक सप्ताह तक रातभर जागकर काम करता रहो और विश्राम न करो, तो उसका जो प्रभाव तुम्हारे स्वास्थ्य पर होगा, उससे तुम महीने-डेढ़ महीने के लिए बेकार हो जाओगे। उस एक सप्ताह में काम भी उतना ठीक नहीं होगा, जितना कि शक्ति के संतुलन को ध्यान में रखते हुए तुम उन सात दिन में कर सकते थे। तुम्हें इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि कहीं थककर या आधे मन से तो कोई काम नहीं हो रहे हो।

इस संतुलन को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि किसी भी कार्य में जरूरत के अनुसार ही शक्ति लगाई जाए। कितने ही व्यक्ति एक काम में दस गुना अधिक शक्ति लगाते हैं। कलम को तलवार की तरह पकड़कर जोर देते हुए लिखने की कई छात्रों की आदत होती है। कलम पर पूरे हाथ का दबाव डालते हुए वे ऐसे लगते हैं, जैसे हल चला रहे हों। जिस चीज को पकड़ने के लिए हाथ का थोड़ा-सा कसाव ही काफी है, उसके लिए घोड़ों की लगाम समझकर पकड़ने वाले बहुत हैं। कितने ही व्यक्ति शक्ति से अधिक बोझ उठाते और असमय ही वृद्धावस्था या रुग्णता को निमंत्रण देते देखे जाते हैं। इस संबंध में वाल्मीकि रामायण के अरण्य कांड 50/89 में कहा गया है— हे सौम्य! मनुष्य को उतना ही बोझ उठाना चाहिए, जो उसे शिथिल न कर दे ।

उत्तेजना और आवेश भी तुम्हारी शारीरिक और मानसिक शक्तियों को आग की तरह जला डालते हैं। क्रोध और चिड़चिड़ेपन के छोटे-छोटे दौर तुम्हारी शक्तियों को नष्ट कर देते है |  मन में किसी के प्रति ईर्ष्या-द्वेष तुम्हारी शक्तियों को नष्ट कर डालती है |  की गई भूलों पर लम्बे समय तक व्यर्थ पश्चात्ताप करने से तुम्हारी शक्तियों को नष्ट  हो जाती है | तुम्हें इन मानवीय बुराइयों से बचना चाहिए | जब तुम इन छिद्रों से अपनी शक्ति-सामर्थ्य को बहा देते हो, तब तुम टूटे-फूटे मन और बल से कोई भी कार्य भली-भाँति नहीं कर सकते। उत्साहहीन होने पर, पस्तहिम्मत होने पर न तो तुम मार्ग की बाधाओं को समझ पाते हो और न ही उन्हें दूर करने का प्रयत्न कर सकते हो।

तुम्हारे हृदय की पवित्रता तुम्हारी शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है। शक्ति आती ही हृदय से है, शरीर या बुद्धि से नहीं। इस तथ्य को सदा स्मरण रखा जाना चाहिए कि कोई दूसरा शक्ति नहीं देता, वरन अपना अंतराल ही इसका मूल है। स्वामी विवेकानन्द के शब्द में— “अपने भीतर ही वह शक्ति मौजूद है। यदि व्यक्ति कार्य करने में निरत हो जाए, तो फिर देखेगा कि इतनी शक्ति आएगी कि वह उसे संभाल न सकोगे। दूसरों के लिए रत्तीभर काम करने से भीतर की शक्ति जाग्रत हो उठती है। दूसरों के लिए सोचने में धीरे-धीरे हृदय में सिंह के समान बल आता है। इस शक्ति के समुचित सदुपयोग से तुम कठिन-से-कठिन एवं बड़े-से-बड़े कार्य को भी सरलतापूर्वक संपन्न कर सकते हो। जिससे तुम जीवन में सफलता प्राप्त करते हो | मुझे सुनने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका दिन सुबह हो | तुम जीवन में सफलता प्राप्त करो यही ईश्वर से कामना करता हूँ | धन्यवाद

 

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