सबसे बड़ा शत्रु है– असंयम ~ The biggest enemy is Incontinence ~ Health Motivation ~ Success in Life

 सबसे बड़ा शत्रु है– असंयम ~ Health Motivation ~ Success in Life

इस बात को समझ लो |

असंयम ही तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु है | 

असंयम को अपने जीवन से ख़त्म कर दो |

इससे जितनी जल्दी हो सके छुटकारा पा लो |

नहीं तो यह तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर देगा |

जीव जंतु, पशु पक्षी कभी भी रोग ग्रस्त नहीं होते है

और न ही कभी बेमौत मरते है |

बीमारियाँ प्रकृति की देन नहीं हैं।

तुम अपने आप को देखो तुम्हारा जीवन असंयमित हो गया है | 

तुम्हारा जीवन प्रकृति के विरूद्ध हो गया है | 

यदि तुम अपने चटोरेपन को काबू में रख सकें, 

.

नियमितता और संयमशीलता का ध्यान रखो,

तो बीमार पड़ने का कोई भी कारण शेष नहीं रह जाता ।

अप्राकृतिक विलासिता-पूर्ण जीवन की आदत डाल कर

तुमने अपने पैरों पर अपने आप ही कुल्हाड़ी मारी है|

असंयम अपनाकर तुमने अपने-आप,

अपने स्वास्थ्य का सत्यानाश किया है|

पीढ़ी दर पीढ़ी तक

इस अव्यवस्था में ग्रसित रहने के कारण

अब बीमारी और कमजोरी एक पैतृक धरोहर के रूप में

तुम्हारे पल्ले बँध गई है ।

फिर भी यदि तुम चाहो और थोड़ा सा अपने स्वभाव में परिवर्तन कर

तो तीन चौथाई बीमारियों से अनायास ही पीछा छुड़ा सकते हो ।

तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा शत्रु असंयम है ।

असंयम के द्वारा जितनी हानि तुम्हें उठानी पड़ती है,

उतनी हानि सौ दुश्मन मिलकर भी तुम्हें नहीं पहुँचा सकते है ।

तुम अपनी इंद्रियों और मन की शक्ति का उपयोग सही तरह नहीं करते हो |

इनकी शक्ति को व्यर्थ के कार्य में खर्च करते हो |

इसके कारण तुम्हारे अंदर दुर्बलता उत्त्पन होती है |

तुम्हारी सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है |

जिससे तुम्हारे सामने दुखद परिणाम आते है |

जीभ के चटोरेपन के कारण तुम मिठाई या मिर्च मसालों के लिये लार टपकाते हो |

तुम्हें यह भी नहीं पता है तुम्हारा प्राकृतिक भोजन क्या है |

वह भोजन जो बिना अग्नि का उपयोग किये,

कम से कम अग्नि का उपयोग किये,

प्राकृतिक रूप में उपलब्ध हो वही सही भोजन ।

इस दृष्टि से फल, शाक, दूध, दही, छाछ, मेवे

आदि को उत्तम आहार माना जा सकता है ।

अन्न का उपयोग बिना अधिक तोड़ मरोड़ का होना चाहिए ।

खिचड़ी, दलिया, चावल, दाल, उबले हुए अन्न

या मोटे बिना छने आटे की रोटी का उपयोग

भूख से कुछ कम मात्रा में

अच्छी तरह चबाकर नियत समय पर करने की आदत डाली जाय

तो वह आसानी से पच सकता है,

अच्छा रक्त माँस बनाकर शरीर का ठीक पोषण कर सकता है ।

पर तुम्हारी जो चटोरेपन की आदत पड़ गई है,

वह गुण को नहीं स्वाद को देखती है ।

जो चीज जितनी ज्यादा पीसी, भुनी तली गई होगी,

मिठाई, घी, मसाले आदि का जितना अधिक सम्मिश्रण होगा

उतनी ही वह स्वादिष्ट लगेगी ।

इस स्वाद के वशीभूत होकर तुम हानिकारक चीजें,

अधिक मात्रा में खाते रहते हो ।

फलस्वरूप अपनी पाचन क्रिया बिगाड़ लेते हो |

उसके बिगाड़ने पर तुम अनेक प्रकार के रोगों के शिकार हो जाते हो |

हकीम लुकमान का यह कथन एकदम सही है कि

“लोग अपने दाँतों से अपनी कब्र खोदते हैं ।”

सुनकर आश्चर्य हुआ होगा ऐसा कैसे हो सकता है |

पर यह बिल्कुल सही है |

जीभ के असंयम के कारण तुम अपनी आधी आयु खो देते हो|

तुम एक चौथाई जिंदगी में बीमारियों का कष्ट उठाते हो,

हकीम डाक्टरों के आगे नाक रगड़ते हो |

तुम उनकी जेबें गर्म करते हो | 

यह हानि कुछ कम हानि नहीं है

पर तुम अपनी बुद्धिमत्ता पर गर्व करने वाले

ऐसे बेवकूफ आदमी हो

जो जरा देर की जीभ की खुजली मिटाने के लिये

खुशी-खुशी इतनी हानि सहन करते हो ।

जीभ ही नहीं अन्य इंद्रियों का असंयम भी

कम या अधिक रूप से ऐसा ही घातक है ।

ब्रह्मचर्य की मर्यादाओं का उल्लंघन करते रहने के कारण

आज अधिकाँश नर-नारी गुप्त रोगों से ग्रसित पाये जाते हैं ।

पुरुषों में स्वप्नदोष, नपुँसकता, शीघ्रपतन, बहुमूत्र, आदि

और स्त्रियों में प्रदर, गर्भाशय में सूजन, गांठें,

मासिक धर्म के समय कमर में दर्द, अधिक रक्त स्राव

आदि नाना प्रकार के जननेन्द्रिय संबंधी रोग घर कर लेते हैं ।

जो लड़के-लड़की विवाह से पूर्व बहुत स्वस्थ और सुन्दर थे

वे दो चार वर्ष में ही अपना सत्यानाश

इस असंयम की मूर्खता के कारण कर लेते हैं ।

दोस्तों इस बात का समझ लो असंयम मीठा जहर है ।

असंयम बाहर से प्रिय लगता है, प्रसन्नतावर्धक दीखता है,

क्षणिक सुख की अनुभूति कराता है

परन्तु परिणाम में विष के समान भयंकर सिद्ध होता है ।

मानसिक ऐयाशी भी ऐसी ही घातक है ।

शौकीन तबियत के लोग आये दिन ऐसे मनोरंजन के साधन जुटाते रहते है ।

जिनमें समय नष्ट करके वह अपना जीवन बर्बाद करते है |

वासनाओं पर काबू रखना तुम्हारे शौर्य, पराक्रम

एवं पुरुषार्थ का प्रधान चिन्ह है । 

तुम्हें मनः क्षेत्र में कुहराम मचाने वाले

इस असंयम के विरुद्ध लड़ते रहना होगा ।

असंयम के चंगुल में फँसे रहना

अपनी सारी महत्वपूर्ण शक्तियों की बरबादी करके

जीवन को असफल बनाने के लिए

बुराई के समक्ष आत्म समर्पण करने के बराबर है ।

आलस्य और प्रमाद में पड़े हुए

तुम अपने बहुमूल्य समय का सत्यानाश करते रहते हैं ।

जीवन की एकमात्र संपदा समय ही है ।

यदि तुमने उसका सदुपयोग कर लिया

तो तुम वह विजयी बनोगे, सफल बनोगे,

उन्नति के शिखर पर जा पहुंचोगे |

और यदि तुमने लापरवाही के साथ वक्त काटा,

तो तुम्हें हाथ मलते रहना ही रह जाना पड़ेगा ।

तुम कोई भी काम सफलता पूर्वक नहीं कर सकोगे |

तुम्हें सबेरे जल्दी उठने की आदत डालनी होगी |

तुम्हें हर काम को फुर्ती और मुस्तैदी से निबटाने की आदत डालनी होगी |

तुम्हें अपने कार्यक्रम में आशावादी और उत्साही रहना होगा |

तुम्हें समय को सही विभाजित करके हर काम ठीक समय पर करना होगा ।

यह सब ऐसे दिव्य गुण है

जिन्हें अपनाकर तुम प्रगति के साधन उपलब्ध करते हुए

विजय श्री का वरण कर सकते हो ।

अधिकतर तुम असंयम के वशीभूत होकर

दावतों में बहुत खा जाते हैं और बाद में कष्ट उठाते हो ।

कोई भी चीज एक सीमित मात्रा में ही आनंददायक हो सकती है,

उनकी अति सब प्रकार घातक ही सिद्ध होती है ।

इसलिए भौतिक उन्नति के बारे में

किसी भी व्यक्ति या राष्ट्र को अधिक महत्वाकांक्षी नहीं होना चाहिए ।

अपनी वासनाओं और तृष्णाओं पर तुमको संयम ही करना चाहिए।

इस बात को समझ लो |

असंयम ही तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु है | 

असंयम को अपने जीवन से ख़त्म कर दो |

असंयम से जितनी जल्दी हो सके छुटकारा पा लो |

नहीं तो यह तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर देगा |

 

 

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