आत्मविश्वास बढ़ाने की एकमात्र कुँजी ~ Key To Increasing Confidence ~ Motivation in Hindi

 आत्मविश्वास बढ़ाने की एकमात्र कुँजी ~ Key To Increasing Confidence

दोस्तों क्या तुम आत्मविश्वास की कमी से जूझ रहे हो | क्या तुम अपना आत्मविश्वास खो बैठे हो| यदि ऐसा है तो यह वीडियो तुम्हारे आत्मविश्वास को बढ़ा देगी |

आत्मविश्वास से बढ़कर सुनिश्चित परिणाम और किसी का नहीं हो सकता। यदि तुम अपने ऊपर और अपनी सामर्थ्य पर भरोसा करो और यह मान लो कि कई अभावों, कठिनाइयों के रहते हुए भी तुम्हारे अंदर इतनी सामर्थ्य विद्यमान है कि किसी भी दिशा में आगे बढ़ सकते हो | तुम किसी भी झंझट से जूझ सकते हो

अपनी सामर्थ्य को कम मानने से, अपनी क्षमताओं पर विश्वास न करने के कारण ही तुम दूसरों की दृष्टि में दुर्बल और असमर्थ सिद्ध होते हैं।

.

अपनी क्षमता पर-अपनी प्रामाणिकता पर अविश्वास करना उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं से वंचित रहना है। अपने ऊपर भरोसा न करने से तुम्हारा आत्मबल विकसित नहीं होता है | और ना ही तुम्हारा मनोबल बढ़ता है। बुद्धिमान और तेजस्वी व्यक्ति वे होते हैं जिनका आत्म-विश्वास बढ़ा-चढ़ा होता है।

कठिन प्रसंगों पर आत्म विश्वास जितना सहायक होता है उतना और कोई नहीं। संसार के पराक्रमी व्यक्तियों का इतिहास वास्तव में उनके मनोबल की, आत्मविश्वास की गरिमा ही सिद्ध करता है।

इस बात को याद रखो सफलता उचित मूल्य चुकाये बिना किसी को नहीं मिली। अपने ऊपर भरोसा न करने वाले लोग यह सोचते हैं हम इतना बोझ कैसे उठा सकेंगे? आदि निषेधात्मक आत्म-हीनता भरे विचार मनुष्य की आधी शक्ति नष्ट कर देते हैं और कल्पित आशंका प्रगति की ओर बढ़ने नहीं देती है फिर सफलता मिले भी तो कैसे?

कहते हैं, कि “विपत्ति अकेली नहीं आती, वह अपने साथ और भी अनेकों मुसीबतें लिए आती है। ” कारण स्पष्ट है कि प्रतिकूलता से घबराया हुआ मनुष्य यह सोच नहीं पाता कि अब उसे क्या करना चाहिए। साधारण कठिनाइयों से पार होने में ही काफी धैर्य की आवश्यकता पड़ती है, सूझ-बूझ की आवश्यकता पड़ती है, दूरदर्शिता की आवश्यकता पड़ती है,

फिर कुछ अधिक परेशानी  से बचने के लिए सही मानसिक संतुलन की जरूरत होती है। यदि यह न रहे तो विपत्ति की नई शाखाएं फूट लगती हैं और कठिनाई का नया दौर आरंभ हो जाता है। जब कभी ठंडे मस्तिष्क से विचार करने का अवसर आता है तब मनुष्य पछताता है और सोचता है कि आने वाली विपत्ति नहीं टल सकती थी तो कोई बात न थी। अपने मानसिक संतुलन को तो विवेक द्वारा बचाया ही जा सकता था और जो परेशानियां अपनी भूलों के कारण सिर पर ओढ़ली गईं उनसे तो बचा ही जा सकता था।

इस संसार में सभी कुछ है। अच्छाई भी बुराई भी। आपत्तियों से जो शिक्षा मिलती है उसे कठोर अध्यापक द्वारा कान ऐंठकर सुनाई और समझायी हुई समझे |

स्वभाव में प्रसन्नता को सम्मिलित कर लेने में जीवन की बहुत बड़ी सार्थकता और सफलता सन्निहित है। मुँह लटकाये रहने की, रूठने की, भवें तरेरे रहने की आदत छोड़ देनी चाहिए। हँसते और मुसकराते रहने वाले का आधा डर तो अपने आप ही चला जाता है और आधे डर को वह अपने पुरुषार्थ तथा स्वजनों के सहयोग से दूर कर लेता है जो प्रसन्न मुख करने के कारण अनायास ही मित्रता करने लगे थे। प्रसन्नता, मित्र बढ़ाने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। जो हँसता है उसकी हँसी में सम्मिलित रहने के लिए दसियों व्यक्ति लालायित रहते हैं। पर जो साँप की तरह मुँह फुलाये बैठा रहता है और व्यंग बाणों की, कटुवचनों की फुंसकार ही छोड़ता रहता है उसके समीप जाने की हिम्मत कौन करेगा?

साधारणतः तुम अपने बारे में कुछ ठीक विश्लेषण नहीं कर पाते हो। इसके लिए तुम  दूसरों पर निर्भर रहते हो। । जो तुम्हारी बढ़ाई करता है वह हमें मित्र और प्रिय लगता है। पर जो तुम्हारी निंदा करता हैं वे शत्रु दिखाई देते हैं, बुरे लगते हैं, क्योंकि उन्होंने तुम्हारा बुरा पहलू सामने प्रस्तुत करके मन में निराशा और खिन्नता उत्पन्न की दी।

आत्म-निरीक्षण की दृष्टि से अपने दोष, दुर्गुणों को ढूंढ़ना उचित है। बुढ़ापे या थकान का बहाना लेकर काम से जी चुराना एक बुरी और भोंड़ी आदत है।  बिनोवा की आयु 80 वर्ष की थी, वे अंत तक देश के कोने-कोने में नैतिक क्रांति का संदेश लिए घूमते रहे। खाली बैठने-बेकारी से बड़ी विपत्ति दूसरी नहीं है। आमतौर से तुम्हें जितना काम करना पड़ता है यदि उसे उत्साहपूर्वक करो तो हमें तुम्हें कभी भी नकारात्मक चिंतन का शिकार नहीं होना पड़ेगा।

एक बढ़ई किसी मजिस्ट्रेट की मेज को बहुत अधिक सावधानी से तैयार कर रहा था। किसी ने पूछा कि तुम इस इतने परिश्रम से क्यों बना रहे हो? बढ़ई ने इस प्रकार उत्तर दिया कि “जब मैं मजिस्ट्रेट होकर इस मेज पर बैठ कर काम करूं तो मुझे यह सुन्दर लगे। ” और वास्तव में हुआ भी वैसा ही कुछ वर्ष बाद वह मजिस्ट्रेट बनकर उस मेज पर बैठा। दोस्तों इस तरह का होता है आत्मविश्वास | तुम्हें अपने चिंतन और सोच को बदलना होगा | इस बढ़ई की तरह सोच रखकर कार्य करना होगा | जो भी काम करो उसे पूरे मन से करो | उसे बढ़िया ढंग से करो | परिश्रम से कभी जी मत चुराओ | यह छोटी से आदत ही आत्मविश्वास उत्पन्न कर देगी तुम्हारे अंदर | विश्वास करो मेरे भाई |

अमरीका के महान जन-सेवक गैरीसन ने अन्यायी रूढ़ियों का उच्छेद करने के लिये जब ‘लिबरेटर’ नाम का सामयिक पत्र प्रकाशित किया तो उसके प्रथम अंक में ही उसने लिखा था-”सच्चे दिल से मैं यह कार्य कर रहा हूँ। मेरे हृदय में किसी प्रकार की शंका नहीं है। मैं कभी किसी प्रकार का बहाना करके एक इंच भी पीछे नहीं हटूँगा और मेरी बात को सब कोई सुनेंगे। ” ऐसी अचल निष्ठा से गैरीसन का चरित्र विकसित हुआ था। इतना ही नहीं लिंकन, ग्राँट आदि जो बहुसंख्यक महान आत्मायें प्रतिष्ठा की रक्षा करते हुये वीरगति का प्राप्त हुई वे भी ऐसे ही दृढ़ निश्चय वाली थीं। इस प्रकार की इच्छा शक्ति होना वास्तव में महत्व की बात है। यही सफल जीवन की कुंजी भी है।

एक चिंतक का कथन है कि “संसार में तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं |

पहले प्रकार का मनुष्य बोलता है मैं करूँगा | दूसरा बोलता है मैं नहीं करूँगा | तीसरे प्रकार का मनुष्य बोलता है मैं कर नहीं सकता हूँ |

पहली प्रकार के लोग सब कामों को पूरा कर डालते हैं, दूसरी प्रकार वालों को सब बातों का उलटा फल मिलता है और तीसरी प्रकार के सदैव असफल होते हैं।

दोस्तों बात को अपने मन में कूट-कूट कर भर लो | आत्म-श्रद्धा में, आत्मविश्वास में इतना बल है कि जो कार्य असंभव जान पड़ता है। उसको भी करने का जो दृढ़ निश्चय कर लेता है तो वह कार्य उसके जीवन में कभी न कभी पूरा हो ही जाता है। तुम अपने ऊपर भरोसा करों और नई सूझ-बूझ हर क्षण पैदा करते रहों , नयी स्फूर्ति उत्पन्न करो। आत्म विश्वास का अच्छा परिणाम  मिलकर ही रहता है।

दोस्तों जो अपने ऊपर भरोसा करता है सारी दुनिया उस पर भरोसा करती है।

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ