आलस्य का पाप धो डालिये ~ Wash away the sin of Laziness ~ Motivation Hindi

 आलस्य का पाप धो डालिये।

आलस्य एक हीन प्रवृत्ति ही नहीं बल्कि तुम्हारे असंख्यों पापों का परिणाम

है |

जब तब तुम इससे पीछा नहीं छुड़ाओगे तब तक दुःख ख़त्म नहीं होंगे |

आलस्य से जल्दी छुटकारा पा लेना ही कल्याणकारी है।

आलस्य तुम्हारे जीवन का भयानक शत्रु है।

आलस्य जिसके पीछे लग जाता है, उसे मिटा कर ही छोड़ता है।

आलस्य अफीम के नशे की तरह है।

यह अन्दर ही अन्दर सारी शक्ति का शोषण कर लेता है।

आलस्य को छोड़ दो | इसमें तुम्हारी भलाई है |

महापुरुषों के जीवन पढ़िये,

वैज्ञानिकों के कमाल देखिये,

नायकों एवं सेना-नायकों की योग्यता पर नजर डालिये,

आविष्कार करने वालों को देखिये,

खोजियों, यात्रियों एवं आरोहियों के वृतान्त को सुनिये,

.

शिल्प शालियों के चमत्कार को देखिये,

व्यापारियों, व्यवसायियों तथा उद्योगियों की उपलब्धियों का अन्दाज लगाइये

और विद्वानों, कवियों तथा साहित्यकारों के कार्यों का दर्शन कीजिये।

आपको पता चल जायेगा कि इन सब ने ऐसे-ऐसे

और इतने अधिक काम कर दिखाये हैं कि

उन्हें मानव द्वारा किये गए कार्य मानने में आश्चर्य होता है |

कुछ आलसी लोग कहेंगे |

उनको ईश्वर ने विशेष प्रतिभा दी है |

जिसके बल पर उन्होंने इस प्रकार के सराहनीय कार्य किये हैं |

जिसके बल पर वे आश्चर्यजनक कार्य कर सकने में समर्थ एवं सफल हो सके हैं।

अगर मौका मिले तो उनके पास जाइये और पूछिए |

क्या आपको ईश्वर की ओर से कोई विशेष प्रतिभा मिली हुई है?

जिससे आप इस प्रकार के विलक्षण एवं विश्वस्त कार्य कर सके हैं|

वे यही कहेंगे कि मैंने तो अपने अन्दर कभी कोई विशेष प्रतिभा अनुभव नहीं की|

हाँ इतना अवश्य है कि मुझे काम करने का शौक अवश्य है।

अब इसको आप विशेष प्रतिभा मान लें अथवा मानव पुरुषार्थ।

यदि मनुष्य चमत्कार लेकर पैदा हो सकते

तो संसार में अब तक न जाने कितने इसका प्रमाण दे चुके होते।

वे जन्म लेते ही समझदार हो जाते

समझदार होते ही बिना किसी परिश्रम पुरुषार्थ के जो चाहते, कर दिखाते।

मैं तुम्हें चैलेंज करता हूँ, आप एक भी प्रमाण लाकर दे दो |

बिना मेहनत किये, उस व्यक्ति की विशेष प्रतिभा ने कुछ करके दिखाया हो |

प्रतिभा तभी चमकती है जब उसे पुरुषार्थ का सहारा मिलता है।

तुम यह नहीं जानना चाहते हो |

सफलता के पीछे उन व्यक्तियों का कितना पुरुषार्थ रहा होगा?

उन सफलताओं के लिए कितना प्रचण्ड तप, त्याग एवं पुरुषार्थ रहा होगा?

उन लोगों ने कितना परिश्रम किया है? और कितने खतरे उठाये हैं?

बिना पुरुषार्थ के किसी प्रकार की सफलता की प्राप्ति असम्भव है।

तुम इस विश्वास को दृढ़तापूर्वक अपने मस्तिष्क में धारण कर लो।

सफलता की किंवदन्तियों की ओर ध्यान जाता ही उन लोगों का है

जो आलसी और निकम्मे होते हैं।

उन्हें कुछ काम तो करना नहीं होता खाली बैठे हुए खयाली घोड़े दौड़ाया करते हैं।

अफीमचियों की तरह प्रमाद की पिनक लिया करते हैं

और खयाली दुनिया में उपलब्धियों के सपने देखा करते हैं।

यही सोचा करते हैं कि ईश्वर ने जिस प्रकार उनको दिया हमें भी देंगे |

यह याद रखों आलसियों के यह खयाली पुलाव न

तो कभी किसी काम आये हैं, न आते हैं और न ही आयेंगे।

जिस तरह शेखचिल्ली का उपहास बनाया जाता है |

उसी प्रकार आलसी मनुष्य के दुर्भाग्य के सिवाय और कुछ नहीं मिलता है |

आलसी मनुष्य की बर्बादी तय है |

तुम्हारे अंदर अलादीन के हजारों चिरागों से अधिक चमत्कारी शक्तियाँ भरी पड़ी हैं|

वे चमत्कार तभी दिखाती हैं, जब उन्हें परिश्रमपूर्ण संघर्ष से जगाया जाता है।

आलसी आदमी को यदि अलादीन का चिराग मिल भी जाये|

तो वह भी उसके लिये व्यर्थ ही सिद्ध होगा।

आलस्य के अभिशाप से न तो वह उसको घिस सकेगा |

न उससे उत्पन्न होने वाली शक्ति का उपभोग करने के लिये उसके पास कोई योजना होगी।

ऐसी दशा में वह चिरागी देव भी उसकी कुछ सहायता न कर सकेगा।

यदि आलसी अथवा निकम्मे आदमी को करोडो रुपए दे दिए जाये |

थोड़े समय बाद वह फिर भिखारी बन जायेगा |

जब तुम संसार के सर्वोपरि साधन

और ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ देन ‘मानव शरीर का’

उसकी चमत्कारी शक्तियों का ही

जब कोई उपभोग नहीं कर पाते

तब तुम अन्य प्राप्त साधनों का क्या उपभोग कर सकोगे?

आलस्य तुम्हारे जीवन को अभिशाप बना देता है।

तुम्हारा शरीर एक बेकार वस्तु की तरह बोझ जाता है।

कोई काम न करने से,

खाली बैठ-बैठे समय काटते रहने से,

उसमें निस्तेजता आती है,

तब तुम्हारा जीवन एक बोझ की तरह ही भयावह बन जाता है।

तुम संसार की सारी विभूतियों से वंचित हो जाते है।

तब तुम दूसरों की उन्नति देखकर मन ही मन चिढ़ने लगते है।

किंतु तुम उसके उस पुरुषार्थ से कभी स्पर्धा नहीं करते हो |

जो उसकी सफलता का मूल आधार होता है।

यदि तुम किसी की उपलब्धियों ईर्ष्या करने के बजाय

उसके परिश्रम के प्रति स्पर्धा करों |

तब अवश्य ही तुम्हारे अंदर कुछ करने का उत्साह जाग उठे |

तुम भी परिश्रम के बल-बूते पर सब कुछ बदल कर रख दो |

किन्तु तुम आलसी ही बने रहना चाहते हो |

तुम्हें काम करने और पसीना बहाने की कल्पना मात्र से ही मौत आने लगती है।

इस मानव जीवन का अवसर पाकर भी तुम आलस्य के गुलाम हो |

इस जीवन को बेकार गँवा करा पाप कर रहे हो |

इस पाप से बचना तुम्हारा कर्तव्य है |

संसार की सभी वस्तुऐ परिश्रम का पुरस्कार हैं।

इनको पाने का अधिकारी वही है, जो परिश्रम से काम करता है|

बिना कुछ काम किये जो पड़ा-पड़ा खाता है|

वह प्रत्यक्ष न सही परोक्ष रूप में किसी परिश्रमी का भाग चुराता है।

अगर तुम अपने आप से पूछों कि

इस प्रकार बेकार पड़े-पड़े खाते रहने में तुम्हें क्या सुख मिलता है?

क्या तुम्हारी आत्मा उसे इस अकर्मण्यता के लिये नहीं धिक्कारती?

क्या कभी इस बात की ग्लानि नहीं होती कि

जब संसार में और लोग परिश्रम कर रहे हैं |

पसीना बहा रहे हैं |

तब उसका इस प्रकार पड़ा रहना मूर्खतापूर्ण बेहयायी नहीं है।

इस बात को जान लो

हाथ, पाँव और मन, मस्तिष्क के सुरक्षित रहने पर भी

जो परिश्रम नहीं करता, उससे अधिक अभागा दूसरा इस दुनिया में नहीं है।

इसलिए आलस्य के पाप को पुरुषार्थ के पुण्य से धो डालो

यही तुम्हारे लिए श्रेयस्कर है।

आलस्य एक भयानक पाप है|

इसको आश्रय देकर तुम दूसरों पर पराश्रित रहते हो |

दयनीय दशा में पड़े रहते हो |

तुम तो मनुष्य कहलाने योग्य भी नहीं हो।

मनुष्य तो वही है,

जो ईश्वर के द्वारा प्रदान की गयी क्षमताओं का उपयोग करके

कुछ ऐसा कर दिखाये,

जिससे उसका मनुष्य होना सार्थकता का गौरव प्राप्त कर ले।

 

 

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ