क्या पुरानी आदतों का छूटना असम्भव है? ~ Is it impossible to break old Habits? ~ Motivation

 क्या पुरानी आदतों का छूटना असम्भव है?

क्या पुरानी आदतों का छूटना असम्भव है?

जो आदत या स्वभाव पड़ गया है, उससे मुक्ति असम्भव है|

ऐसा सोचना नितान्त भ्रममूलक है।

इस बात को याद रखो |

आदत को छोड़ना कठिन हो सकता है, किन्तु असंभव बिलकुल नहीं है।

यदि तुम अपने मनोबल को दृढ़ता से आत्म-विकास में लगा दो |

अपने सुधार में लगा दो |

तुम यह संकल्प कर लो|

मुझे अमुक निन्दनीय आदत से मुक्ति प्राप्त करनी है,

तो तुम अवश्य ही उससे छुटकारा प्राप्त कर लोगे |

तुम्हें यह जानने चाहिए कि आदत क्या है?

जिस काम को तुम बार-बार दोहराते हो वही तुम्हारी आदत बन जाती है |

प्रत्येक आदत की जड़ें तुम्हारे अंतर्मन में गहरी बैठी रहती हैं।

जिस प्रकार धीरे-धीरे एक कार्य करने से आदत बनती है,

उसी प्रकार धीरे-2 उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया करने से  उनसे छुटकारा प्राप्त हो सकता है |

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प्रत्येक गन्दी आदत के विरुद्ध आप उलटा काम करो।

जब मन पुनः पुरानी गलत आदत की ओर जाय,

तो दृढ़ता से उसका सामना करो |

तुम उसकी पुनरावृत्ति न होने दो।

पुरानी आदत करने में आसान होती है|

इसलिए उसकी ओर तुम्हारी स्वाभाविक रुचि होती है।

नई आदत का विकास प्रारम्भ में बड़ा अड़चन पूर्ण होता है।

किन्तु पुनः-पुनः उसी को करने से,

उसी को करने में आनन्द आने लगता है

और वह स्वाभाविकता का एक अंग बन जाता है।

यदि तुम चाहते हो की तुम्हारे बच्चो में अच्छी आदतें विकसित हो |

तो तुम्हें स्वयं उनके सामने अपने व्यवहार से उदहारण देना होगा |

जिससे बच्चो को उत्साह और प्रेरणा मिल सके।

तुम खुद तो ढीले ढाले रहते हो |

प्रातः काल शय्या त्यागने में शंकोच करते हो |

तुम खुद नियमों का पालन नहीं करते हो|

जो बच्चे १०-१५ घंटे तुम्हें देखते है |

तुम उन्हें कैसे शिष्टाचार का पाठ पढ़ा सकते हो?

शिष्टाचार का अर्थ यही नहीं कि आप दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।

स्वयं अपने साथ भी आपका व्यवहार उत्तम होना अनिवार्य है।

यदि आप अपने साथ दुर्व्यवहार करते है तो बड़ा पाप करते हैं।

आप पूछेंगे कि हम अपने साथ किस प्रकार दुर्व्यवहार करते हैं?

इसके अनेकों रूप हैं।

आप जानते हैं कि ठीक समय पर उठना चाहिए पर नहीं उठोगे |

आप जानते हैं कि व्यायाम करने से स्वास्थ्य ठीक रहता है, पर नहीं करोगे |

यह दुःख की बात है!

आप न तो ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं, न व्यायाम, टहलना या विश्राम करते हैं।

आप रुपये के लोभ में दिन रात कोलू के बैल की तरह लगे रहते हो |

आपके पास पर्याप्त धन है, जिसके द्वारा आप भोजन, वस्त्र,

तथा अच्छे मकान का प्रबन्ध कर सकते हैं,

किंतु आप कंजूसी के कारण इनमें से कोई भी काम नहीं करते।

यह सब अपने प्रति दुर्व्यवहार है।

अपने शरीर की बुराई की तरह जानते बूझते

आप अपने बच्चों की आदतों, या सभ्यता से गिरे हुए व्यवहार को नहीं रोकते,

उसकी गलती पर सजा नहीं देते, तो आप अन्याय करते हैं।

अपनी पत्नी की असभ्यताओं को रोकना आपका एक कर्त्तव्य हो जाता है।

परिवार के और सदस्यों की खराबियों का आप शिष्ट रीतियों से परिष्कार कर सकते हैं,

अपने नौकरों, आदि को अशिष्टता से रोक कर,

आप समाज में अच्छाइयों के बीज बो सकते हैं।

यदि ऐसा नहीं करते, तो यह आपका दुर्व्यवहार है।

आपकी दृष्टि कमजोर है,

किन्तु फिर भी आप सिनेमा देखते हैं,

यह अपने प्रति दुर्व्यवहार हुआ,

अपने अन्दर किसी मादक दृव्य को लेने की आदत डाल कर विषपान करना

आत्म-घात के बराबर है।

आरम्भ से ही सुन्दर आदतों के डालने से श्रेष्ठ चरित्र का निर्माण हो सकता है

परन्तु बुरी आदतों से जीवन का पतन।

अतः आदत की प्रबल शक्ति को जानकर

अच्छी आदतों के डालने के लिए प्रयत्नशील

और प्रत्येक बुरी आदत से बचने के लिए

सदैव सावधान रहना चाहिए।

इस बात को याद रखो |

आदत को छोड़ना कठिन हो सकता है, किन्तु असंभव बिलकुल नहीं है।

यदि तुम अपने मनोबल को दृढ़ता से आत्म-विकास में लगा दो |

अपने सुधार में लगा दो |

तुम यह संकल्प कर लो|

मुझे अमुक निन्दनीय आदत से मुक्ति प्राप्त करनी है,

तो तुम अवश्य ही उससे छुटकारा प्राप्त कर लोगे |

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