कठिनाइयाँ प्रतिभा के विकास में सहायक ही होती हैं। क्योंकि
विपरीतताओं में शारीरिक एवं
मानसिक क्रियाशीलता को उभरने का भरपूर अवसर प्राप्त होता है। विलासितापूर्ण जीवन जागृत क्षमताओं को भी सुलाने वाला सिद्ध
होता है।
भारतवर्ष को सर्व प्रथम एक सूत्र में आबद्ध करने वाले
चन्द्रगुप्त मौर्य भुरा नाम की
एक दासी के पुत्र थे, उनका जीवन अभावों और गरीबी के बीच पनपा। चाणक्य जैसे मार्गदर्शकों के निर्देशन में उन्होंने अपनी
आन्तरिक क्षमताओं को जागृत
किया और इसी के बल पर भारत को एक अखण्ड राष्ट्र के रूप में गढ़ने में समर्थ हुए।
प्रसिद्ध विचारक और दार्शनिक कन्फ्यूशियस को जन्म के तीन वर्ष बाद ही पितृ स्नेह से वंचित हो जाना पड़ा। अपने पिता को
अभी ठीक प्रकार पहचान भी नहीं पाया था कि
वह अनाथ हो गया और छोटी उम्र में ही उसे जीविकोपार्जन
के कठोर श्रम में लग जाना पड़ा। लेकिन महानता के बीजों को
उगाने
की ललक उसमें प्रारम्भ से थी। परिणाम स्वरूप गरीबी और तंगहाली में रहते हुए भी वह अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफल रहा।
ईसा मसीह जिनके अनुयायी आज दुनिया के एक तिहाई लोग हैं,
एक
बढ़ई के पुत्र थे। उनका अधिकाँश बचपन सड़कों पर
अभावग्रस्तता की स्थिति में गुजरा।
सिकन्दर यद्यपि राज पुत्र था पर आरम्भ से ही उसे दुर्दिनों का
सामना करना पड़ा। अपने प्रेमी के प्रणय जाल
में फंसकर सिकन्दर की माँ ने अपने ही पति राजा
फिलिप की हत्या करवा दी और सिकन्दर का भी तिरस्कार किया। परन्तु सिकन्दर का परिस्थितियों पर हावी होने का संकल्प इतना मजबूत था
कि उसने अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में
परिणत कर दिखाया।