निर्दयता, घमण्ड और
कृतघ्नता ऐसी प्रवृत्तियां हैं, जिनसे बुद्धि पाप में फँस जाती है।
(1)
निर्दयी मनुष्य अविवेकी और अदूरदर्शी
होता है। वह दया और सहानुभूति का मर्म नहीं समझता। क्रूरता संसार में सबसे बड़ा पाप
है। किसी प्राणी के प्रति क्रूरता का व्यवहार करने वाला एक प्रकार से अपनी ही आत्मा
के प्रति क्रूरता का व्यवहार करता है। संसार के समस्त प्राणियों में एक ही आत्मा का
निवास रहता है। जो आत्मा हममें है वही आत्मा अन्य पशु-पक्षियों में भी है।

(3) कृतघ्न दूसरों के उपकारों को शीघ्र ही भूल जाता है।
वह प्रत्येक कार्य में अपना स्वार्थ देखता है। वस्तुतः उस अविवेकी का हृदय सदैव मलीन
और स्वार्थ पंक में कलुषित रहता है। दूसरों के किये हुये उपकारों को मानने एवं उनके
प्रति अपनी कृतघ्नता प्रकाशित करने से हमारे आत्मिक गुण−विनम्रता, सहिष्णुता और उदारता
प्रगट होते हैं।