जीवन के लक्ष्य का
निश्चय जितनी जल्दी हो जायेगा, मनुष्य उतना ही अधिक लाभ में रहेगा।
लक्ष्य निर्धारित करने के लिये कोई विशेष आयु नहीं स्थिर की जा सकती है। फिर भी उत्तम यह है कि विद्यार्थी जीवन में या उसकी समाप्ति होने तक प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य अवश्य ही निश्चित हो जाना चाहिये।
चौदह से लेकर बीस वर्ष की आयु तक में लक्ष्य का स्थिर हो जाना उपयोगी सिद्ध होता है। यदि जीवन की औसत सीमा पचहत्तर वर्ष मान ली जाय, तो मनुष्य को जुटकर काम करने के लिये लगभग 40-45 व
र्ष मिलते हैं।
प्रारम्भिक आयु में लक्ष्य स्थिर हो जाने से, मनुष्य को अपने अंतिम काल में अपनी सफलता का सुख उठाने का अवसर मिल जाता है।
लक्ष्य प्राप्ति के लिये काफी समय तक संघर्ष करना पड़ता है।
यदि देर में लक्ष्य निश्चित हुआ, तो संघर्ष करते करते जीवन का अन्त आ जाता है और मनुष्य उस आनन्द से वंचित रह जाता है।
जो सफलता के अन्त में प्राप्त होता है।
लक्ष्य निर्धारित करने के लिये कोई विशेष आयु नहीं स्थिर की जा सकती है। फिर भी उत्तम यह है कि विद्यार्थी जीवन में या उसकी समाप्ति होने तक प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य अवश्य ही निश्चित हो जाना चाहिये।
चौदह से लेकर बीस वर्ष की आयु तक में लक्ष्य का स्थिर हो जाना उपयोगी सिद्ध होता है। यदि जीवन की औसत सीमा पचहत्तर वर्ष मान ली जाय, तो मनुष्य को जुटकर काम करने के लिये लगभग 40-45 व
र्ष मिलते हैं।
प्रारम्भिक आयु में लक्ष्य स्थिर हो जाने से, मनुष्य को अपने अंतिम काल में अपनी सफलता का सुख उठाने का अवसर मिल जाता है।
लक्ष्य प्राप्ति के लिये काफी समय तक संघर्ष करना पड़ता है।
यदि देर में लक्ष्य निश्चित हुआ, तो संघर्ष करते करते जीवन का अन्त आ जाता है और मनुष्य उस आनन्द से वंचित रह जाता है।
जो सफलता के अन्त में प्राप्त होता है।