जीवन
के प्रत्येक क्षेत्र में स्वावलम्बी बनने का प्रयत्न करें।
कर्म क्षेत्र में व्यावहारिक जीवन में आप
अपना जितना बोझ अपने ऊपर उठायेंगे उतने ही आपके ‘अकेले’ की शक्ति बढ़ती जायगी,
उतनी ही आपकी क्षमतायें उर्वर होंगी। अपने प्रत्येक कार्य को स्वयं पूर्ण करें।
किसी भी काम को दूसरे पर न छोड़ें। दूसरे के सहारे की आशा तनिक भी न रखें। अपने
लिये ऐसे कार्यों का चुनाव करें जिन्हें आप स्वयं अपने बल बूते पर पूरा कर सकें।
दूसरों के भरोसे कल्पना के बड़े - बड़े महल न बनावें। बालकों की तरह दूसरों के
कंधे पर चढ़कर चलने की वृत्ति का त्याग करें। दूसरों के बलबूते आपको स्वर्ग का भी
राज्य, अपार धन सम्पत्तियों का अधिकार, उच्च पद प्रतिष्ठा भी मिले तो उसे ठुकरा
दें। अपने आत्म- सम्मान के लिए, अन्तर्ज्योति को प्रज्ज्वलित रखने के लिए,
स्वावलम्बी बनने के लिए। अपने प्रयत्न से आप छोटी - सी झोंपड़ी में रहकर, धरती पर
विचरण करके, मिट्टी खोदकर कड़ा जीवन भी बिता लेंगे तो वह बहुत बड़ी सफलता होगी,
आपके अपने लिए। इससे आपके अकेले के स्वत्व में वह शक्ति क्षमता पैदा होगी जो किसी
भी वरदान प्राप्त शासक, पदाधिकारी, सम्पत्तियों के स्वामी को दुर्लभ होती है।