श्रद्धा हमारे जीवन की सबसे कोमल, मधुर एवं सर्वश्रेष्ठ अनुभूति है | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal -009 |


भावार्थ:

श्रद्धा ह्रदय की उच्च भावना का प्रतीक है | इससे मनुष्य का आध्यात्मिक जीवन सफल होता है और वह धन प्राप्त कर सुखी होता है |

सन्देश:

श्रद्धा हमारे जीवन की सबसे कोमल, मधुर एवं सर्वश्रेष्ठ अनुभूति है | जीवन में उन्नति के तीन सोपान है - श्रद्धा, विशवास और प्रेम | श्रद्धा के सामने सब कुछ सम्भव है, विश्वास कठिन कार्य को भी सरल कर देता है और प्रेम तो उसे सरलतम बना देता है | जीवन में तीन सद्गुणों को धारण करने तथा आचरण में अभ्यास करने से मार्ग सभी विपत्तियों व कष्टों से मुक्त हो जाता है |

श्रद्धावान वयक्ति प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त करता है |

 

तुलसीदास जी ने अपने इष्ट की वंदना 'श्रद्धा विश्वास रूपिणौ' कह कर ही की थी और रामचरितमानस जैसे महान लोकोपयोगी ग्रन्थ को लिखने में सफल हुए थे | मीरा ने श्रद्धा के बल पर ही पत्थर में भगवान् पैदा कर लिए थे जो उसके हिस्से का विषपान भी कर गए | रामकृष्ण परमहंस ने श्रद्धा से ही काली को अपने साथ भोजन करने को विवश कर दिया था | श्रद्धा से ही ओत-प्रोत मनुष्य अपने जीवन में जो भी कार्य करता है उसमें सफलता अवश्य प्राप्त होती है | श्रद्धा का सहारा मनुष्य जीवन का सबसे सबल सहारा है | माता, पिता और गुरु के प्रति श्रद्धा, धर्म और सदाचार के प्रति श्रद्धा तथा अपने कर्म के प्रति श्रद्धा जीवन में प्रगति के मुख्य आधार हैं | इसी से मनुष्य का आत्मविश्वास विकसित होता है और संकल्प की दृढ़ता उत्पन्न होती है, आलस्य एवं प्रमाद भाग जाते है और संपूर्ण मनोयोग से संकल्प पूर्ति का मार्ग प्रशस्त होता है | उसके सामने सबलता और संपदा का दम्भ भी चूर-चूर हो जाता है | कैसी भी मुसीबत हो, कितनी ही विषम परिस्थितियां हों कुछ भी मार्ग में बाधक नहीं हो पातीं |

 

श्रद्धा और विश्वास के संयोग से मन में प्रसन्नता का जन्म होता है | प्रसन्न ह्रदय मनुष्य उस सूर्य के सामान होता है जिसकी किरणें अनेक ह्रदयों के शोकरूपी अन्धकार को भगा देती है और उन्हें भी प्रसन्नता से भर देती हैं | प्रसन्नता तो चन्दन है, दूसरो के माथे पर लगाइए तो आपकी उंगलियाँ अपने आप महक उठेंगी |

 

हमें सदैव अपने हृदय में श्रद्धा की ज्योति जलाकर रखनी चाहिए | श्रद्धा की ज्योति जगाये बिना हम कोई भी कार्य पूरा नहीं कर सकते | हमारे जीवन में श्रद्धा औत-प्रोत हो | हम श्रद्धा रहित होकर कोई कार्य न करें | अपितु प्रत्येक कार्य श्रद्धा पूर्वक करें | संध्या-पूजन करे तो श्रद्धापूर्वक | हमारे जीवन में हर समय, हर घडी, प्रतिपल, प्रतिछन, चौबीस घंटे श्रद्धा देवी का ही राज्य रहे |

 

श्रद्धालु बनने से धन, बल, विद्या, यश सभी कुछ मिलता है, प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है, ऐश्वर्य मिलता है | हम कभी भी श्रद्धा का दामन न छोड़े परन्तु अंधश्रद्धा व अंधविश्वास से सदैव बचे रहें | अपनी विवेक बुद्धि से उचित-अनुचित का निर्णय करें और जो उचित लगे उसे ही श्रद्धापूर्वक मानें | बिना विचारे दूसरों की देखादेखी कुछ भी करना अंधविश्वास कहा जाता है और हानिकारक भी होता है |

श्रद्धा से ही आत्मबल पुष्ट होता है |

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