मनुष्य जीवन की सफलता किस बात में है ? | Vedon ka Divya Gyan |


भावार्थ:

मनुष्य जीवन की सफलता इस बात में है कि वह आत्मिक और मानसिक दोषो को त्यागकर निर्मल और पवित्र बने | आत्मा मल विक्षेप और आवरण रहित बने इससे अनेक उपाय वेदों में वर्णित हैं | अतः वे पड़ने योग्य हैं |

 

सन्देश:

यह मानव जीवन हमें न जाने कितने पुण्य कर्मों से मिला है | इसका सत्कार्यों में उपयोग करने से ही मनुष्य सच्चा आनंद प्राप्त कर सकता है | वेद में अनेक नीति वचन बहरे पड़े है और उन सबकी यही शिक्षा है कि जीवन में मनुष्य का सदा विकास हो | वह कभी पतन के मार्ग पर न जाय | प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वे सभी दुर्गुणों का त्याग करे | स्वतः, लोभ, मोह, अहंकार आदि के दानव हमेशा आत्मा को  घेरे रहते है | इनसे छुटकारा पाने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है | तभी मन व आत्मा निर्मल और पवित्र होती है |


वेद मंत्रों में इच्छाशक्ति की दृढ़ता पर बहुत बल दिया गया है | तप, साधना, कठिन परिश्रम और मनोयोग से ही मनुष्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है | महत्वाकांक्षा मनुष्य की जीवनी शक्ति की परिचायक है, परन्तु उसके साथ आत्मत्याग और बलिदान की भावना भी आवश्यक है | तप और साधना के द्वारा जब मनुष्य की ऐसी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं तभी वह परोपकार के कार्य करके अपना जीवन सफल कर सकता है | किसी वयक्ति की सफलता का परिणाम उसकी इच्छाशक्ति के विकास के अनुपात में ही होता है | प्रकृति की महान शक्तियाँ भी मानवीय इच्छाशक्ति के सामने नतमस्तक को जाती है | संसार में सभ्यता का विकास, मनुष्य की समस्त गतिविधियाँ और भौतिक उपलब्धियां मानवीय इच्छा की ही देन है |


मनुष्य की यह इच्छा-शक्ति चरित्र से उत्पन्न होती है और वह चरित्र कर्मों से बनता है | इसलिए जैसा कर्म होता है, इच्छा-शक्ति की अभिव्यक्ति वैसी ही हो जाती है | यह बात हम सभी जानते है कि नैतिक जीवन बिताना लाभदायक है, फिर भी पापकर्म करते रहते है और बाद में उनका दुखद फल भोगते है | कर्म के फलों से मुक्त होने का कोई मार्ग नहीं है | जो वयक्ति अपने गलत विचारो पर विजयी हो गया वह अवश्य ही अमोघ इच्छाशक्ति का स्वामी है |

 

जब कभी भटकता हुआ प्राणी यह समझ लेता है कि में आत्मा हूँ, शरीर नहीं, नाभि वह बलवान बनता है | जो यह समझ लेते है कि उनकी आत्मा में ईश्वर का निवास है तो आत्मा में अद्भुत प्रचंड शक्ति उत्पन्न होती है | यही शक्ति मानसिक दोषो को त्यागने की सामर्थ्य उत्पन्न करती है | अपने दुर्गुणों से मुक्ति पाकर मनुष्य में सात्विक एवं दिव्य विचारधारा प्रवाहित होती है | जो हमें बुराइयों से संघर्ष करने के लिए उत्साहित करती है |

 

बुराइयों को उखाड़ डालों और अच्छाइयों का पोषण करो - वेदों के इस निर्देश को हमें सदैव ध्यान में रखना चाहिए |

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