हमारा मन शुभ और कल्याणकारी विचारों से युक्त हो | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal - 023 | Yajurveda 34/4 |


 भावार्थ:

जो नाश रहित भूत, भविष्य और वर्तमान का योग साधन द्वारा ज्ञान प्राप्त करता है, जिससे जीवनयज्ञ के सम्पूर्ण कार्य विधिवत पूरे होते हैं, वह हमारा मन शुभ और कल्याणकारी विचारों से युक्त हो |

 

सन्देश:

देवता, मानव और दानव ऐसी तीन श्रेणियां की कल्पना हम करते हैं | इनमें दानव हीन और देवता श्रेष्ठ  समझा जाता है,  मानव को इनके बीच में माना जाता है जो अपने कर्मों से दानव या देवता बन सकता है | दानव दुर्गुणों से युक्त रहते हैं, मानवों का जीवन अच्छी बुरी दोनों बातों से युक्त रहते हैं, और देवता सर्वगुण संपन्न होते है | देवता परोपकारी और तेजस्वी होते हैं | देवताओं में असामान्य सामर्थ्य  सुर तेज रहता है | परमात्मा तो घट -घट  और कण-कण में हैं किन्तु तेजस्विता के कारण  ही हमें उसका साक्षात्कार होता है |

 

वैदिक धर्म कर्म के सिद्धांतों पर है | पहला है कि मनुष्य कर्म के बिना एक भी क्षण रह नहीं सकता है | दूसरा कर्म का फल अवश्य मिलेगा | तीसरा उत्तम व श्रेष्ठ कर्मों का फल उत्तम होता है तथा अशुभ व बुरे कर्मों का फल बुरा होता है | कर्मों की गति बड़ी विचित्र है | कभी-कभी कर्मफल पर संदेह होने लगता है | पापियों को धन-संपत्ति सहित फलते-फूलते देखकर भी मन में शंका होती है | पर यह शंका निराधार है | जिस अपराधी को फांसी देनी होती है, उससे भी फांसी से पहले इच्छानुसार भोग सामग्री दी जाती है | कुछ ऐसा ही ईश्वर  का भी विधान होता है |

 

हमारा मन इतना शक्तिशाली है कि यदि वह विवेकपूर्ण चिंतन करे और अपने भूत, भविष्य और वर्तमान का सतत गहन अध्ययन करता रहे तो वह अपनी वास्तविक स्थिति को बड़ी आसानी से बदल सकता है | वह मानव बन रहा है या भी दानवता के दलदल में फंस रहा है या फिर देवताओं के सामान यशस्वी और तेजस्वी बन रहा है, इसका आभास  हम स्वयं ही कर सकते हैं | तेजस्विता देवत्व का सर्वश्रेठ गुण है | तेजस्विता एक आंतरिक वृत्ति है जो हमारे स्वभाव में समायी हुई रहती है | किसी संकट की परवाह न करते हुए अपने निश्चित किये गए लक्ष्य में  उत्साहपूर्वक लगे रहना ही तेजस्विता है | वास्तव में इस चुनौतिओं से भरे इस संसार में जो तेजस्वी होगा वही जीवित रहेगा, उसी की उन्नति होगी और जीवनयज्ञ में सम्पूर्ण कार्य पूरे होकर रहेंगे |

 

पर यह तभी संभव है जब हमारे मन में अच्छे विचार ही रहें | काम, क्रोध, लोभ, मोह मद  आदि राक्षस हमारे पास आने न पायें | मन में कभी भी पाप की भावना न आये और हम गलत मार्ग पर जाने से बचे रहें | हम हमेशा मन से बुरे विचारों को दूर करे और अच्छे विचारों व कल्याणकारी कर्मों का संकल्प ही लेते रहें | परन्तु शेखचिल्ली की भांति संकल्प करने से भी कुछ नहीं बनेगा | अपने संकल्पों के अनुसार कार्य भी करना होगा | तभी सफलता हमारे चरणों में आकर रहेगी | अधिकतर लोग हर समय ख़याली पुलाव बनाते रहते है | बातें तो बड़ी-बड़ी करते है पर उनको आकार देने का पुरुषार्थ उनसे बन ही नहीं पड़ता है | इस प्रकार वे शुभ विचार धीरे-धीरे लुप्त होने लगते है |

 

शुभ विचार का पालन करने में प्रमाद न करें |

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