शुद्ध एवं पवित्र अंतःकरण तथा सत्य के व्यावहारिक स्वरूप से आत्मबल में वृद्धि होती है | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal - 024 | Yajurveda 34/5 |


 

भावार्थ:

हे मनुष्यों ! तुम्हारा मन स्वच्छ हो, अंतःकरण धर्म और सदाचरण से पवित्र हो ताकि ब्रह्मविद्या और वेवहारिक ज्ञान उपलब्ध कर सको |

 

सन्देश:

संसार के सभी प्राणियों में मनुष्य परमेश्वर के निकटतम है | अन्य कोई भी प्राणी परमेश्वर से इतनी निकटता प्राप्त किये हुए नहीं है जितनी की मनुष्य | परमात्मा ने मनुष्य को इतना साधन-संपन्न बनाया है कि यदि वह ऊँचा उठना चाहे तो उसकी कोई सीमा नहीं है और यदि गिरना चाहे तो उसकी भी कोई सीमा नहीं है | यह सब उसके मानसिक नियंत्रण पर आधारित है | man का नियंत्रण ही सबसे बड़ी साधना है | मानसिक वृतियों के द्वारा ही उसकी मनुष्यता को परखा जा सकता है | नैतिकता की परिधि बहुत विस्तृत है, अतः मनुष्यता को धारण करने के लिए मनुष्य को अपनी मानसिक प्रवृतियों का परिष्कार करना पड़ता है | अपने विचारों को शुद्ध करके अन्तः करण को पवित्र करना होता है | मन में जो बुरे विचार एक बार प्रवेश कर गए तो वह आसानी से नहीं निकलते है | स्वार्थ, कामना, राग-द्वेष, मोह आदि की मलिनता इस मन से सूक्ष्मता से चिपटी हुए है जो अनजाने ही अशुभ संकल्पों को जनम देती है | मन की शक्ति को पहचान कर सदैव इसे मजबूती प्रदान करते रहने से ही मन स्वच्छ होकर सुबह संकल्पों को विकसित कर सकता है |

यह मन अथाह ज्ञान का भण्डार है | मनुष्यों में यह सार का सारा ज्ञान तभी प्रकाशित हो सकता है जब मन बुरे विचारों से मुक्त हो जाए | वेद ज्ञान के प्रकाश से मन में सुबह संकल्प आते है, शिव संकल्प और सटे संकल्प आते है | उसी से हमें व्यवहारिक ज्ञान और ब्रह्मविद्या की उपलब्धि होती है |

 

अंतःकरण में धर्म और सदाचार की स्थापना तभी संभव है जब हम पाप कर्मों से दूर रहें | पाप और पुण्य विवादास्पद विषय है | जब भी आत्मा मन को और इन्द्रियों को किसी कार्य में प्रेरित करता है तो उसी क्षण से आत्मा पर उसका प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगता है |  बुरे काम करने में भय, शंका और लज्जा का अनुभव होता है परन्तु अच्छे काम करने में अभय, निःशंकता और आनंद का उत्साह उठता है | इसी मानदंड पर  पाप कर्मों को कसा जा सकता है | ऐसे पापकर्मो का विचार भी मन में न आने पाए, इसके लिए सतत अभ्यास करते रहना चाहिए | जब भी इस संबंध में मन में  कोई विचार आये तो उसे कठोरतापूर्वक फटकारते हुए मन से दूर भगा देना चाहिए | यह भावना यदि प्रबल होगी तो मन में पाप की भावना प्रवेश नहीं कर सकेगी |

 

शुद्ध एवं पवित्र अंतःकरण तथा सत्य के व्यावहारिक स्वरूप से आत्मबल में व्रद्धि होती है |

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