भावार्थ:
जिस प्रकार सारथी अपने दसों घोड़ों को वश में रखकर चलता है, हे मनुष्यों ! उसी प्रकार तुम भी अपने मन के द्वारा दसों इन्द्रियों को अपने वश में रखो | इसके लिए तुम्हे संकल्पवान बनना पड़ेगा |
सन्देश:
हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारी वासनाएं सबसे बड़ी बाधक हैं | यदि हम निरंतर बेकार के कामों और विषय वासनाओं में ही लगे रहेंगे, सांसारिक आनंद के पीछे भागते रहेंगे तो हम उनके दास हो जाएंगे | यदि हम सदैव विषय वासनाओं का चिंतन करेंगे तो वे हमारे मन में इन्द्रियों को संतुष्ट करने वाले पदार्थों को प्राप्त करने की इच्छा पैदा करेंगी और हम इन्द्रियों की विभिन्न प्रकार की तृप्तियों में लग जाएंगे | सबसे पहले मन में विचार उत्पन्न होते हैं | फिर यही विचार हमारा चिंतन बन जाते हैं और फिर धीरे-धीरे कर्म के रूप में परिवर्तित हो जाते है | इसलिए लालसा मन अंदर उत्पन्न होती है और कर्म के रूप में बाहर प्रकट हो जाती है |
व्यक्तिगत रूप में हम इन्द्रिय विषय का चिंतन करते रहते हैं | मानसिक तौर पर हम उन्हें प्राप्त करना चाहते है, यदपि बाहरी रूप से हम उनसे बचना भी चाहते हैं | ऐसे लोगों को पाखंडी कहा जाता है | इन्द्रिय सुखों का चिंतन मन में एक के बाद दूसरी लालसा को जन्म देता है और मनुष्य पापकर्मो की और बढ़ने लगता है | अनियंत्रित इन्द्रिय चिंतन मनुष्य के संयम और मर्यादा का नाश कर देता है | उसका आचरण विवेकहीन, अनैतिक एवं अहितकर हो जाता है वह विषय वासना के दलदल में फंसता चला जाता है |
विवेकी पुरुष को इस प्रकार पतन के मार्ग में जाने से अपने को बचाए रखना चाहिए | उसका एक ही उपचार है कि हमें अपने मन की प्रवृति को नकारना होगा जो इन्द्रिय सुख की और भागती है, जो कि इस अनिष्ट का मूल कारण है | शारीरिक रोगों के उपचार के लिए हमें बहुत सी चीजों से परहेज करना पड़ता है उसी प्रकार मासिक स्वास्थ्य के लिए, सांसारिकता नमक रोग से बचने के लिए हमें इन्द्रिय विषयों का कठोरता से नियंत्रण करना होगा |
'संसार दीर्घ रोगस्य, सुविचारों महौषधम्' यह संसार दीर्घ रोग से परिपूर्ण है | इसमें चारों और दोष-दुर्गुण भरे पड़े हैं | उनसे मुक्ति पाने के लिये सुविचार ही महान औषधि का कार्य करता है | अपने मन में सदैव शुभ विचार आएं और इन्द्रियां हमारे ऊपर हावी न हों सकें यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए | जिस प्रकार रथ को चलने वाला एक लगाम के सहारे दासों घोड़ों को वश में करता है और जिधर चाहता है उसी और उन्हें हाँक ले जाता है | उसी प्रकार हमें भी अपने मन की लगाम को कठोरता पूर्वक कैसे रखना चाहिए जिससे इन्द्रियां संयम में रहें और सदैव सत्कर्मों की और ही प्रेरित हों | विवेक और वैराग्य की सहायता से हमें अपने मन को भौतिक पदार्थों स हटाना चाहिए और अपनी वास्तविकता के अनुरूप जीवन व्यतीत करने का सच्चा प्रयास करना चाहिए |
यदि हम ऐसा करने का आत्मबल और द्रढ़ इच्छाशक्ति विकसित कर लेंगे तभी हम अपने मानव जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे |
0 टिप्पणियाँ