महाराणी येसूबाई (Maharani Yesubai) | Bharat ki Mahan Virangna | Maharastra ka Gaurav |

 महाराणी येसूबाई

छत्रपति शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके स्थापित हिन्दू मंदिर महाराष्ट्र पर संकट के बादल छाने लगे थे | अब तक जिन चरित्रवान और देशभक्त नेताओं के हाथ में महाराष्ट्र का संचालन हो रहा था, वे तीनों अपने आप में निष्कलंक थे | समर्थ गुरु रामदास, छत्रपति शिवजी महाराज और माता जीजाबाई - तीनों की छत्रछाया वीर मराठों के सर से उठ चुकी थी


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शिवाजी का उत्तराधिकारी संभाजी अपनी विलासिता के कारण शिवाजी के लिए भी सिरदर्द बना रहा था शिवाजी ने उनके आचरणों से तंग आकर उसे पन्हाला के दुर्ग में कैद रखा था | यों तो वीरता और राज्य संचालन में वह पूरी तरह  निपुण था, पर अपनी इस कमजोरी के कारण वह यशस्वी नहीं बन सका | शिवजी की मृत्यु के उपरान्त उनके उत्तराधिकारियों में देश भक्ति के स्थान पर वक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ जागने लगी थी | महाराष्ट्र की इस बिगड़ती स्थिति को अपने त्याग और तप से जिन थोड़े से व्यक्तिओं ने संभाला उनमें संभाजी की पत्नी येशीबाई का नाम सबसे ऊपर है |

इतिहास में अनेक ऐसे प्रसंग आते हैं जहाँ पथ भ्रमित पति को सती, साध्वी और विवेकशील पत्नी ने सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी| संभाजी को भी एक लंपट व्यक्ति से ऊपर उठाकर यशस्वी बनाने में येशुबाई का बहुत बड़ा हाथ था | उनके ही प्रयत्नों के कारण संभाजी ने आगे चलकर बलिदान का जो आदर्श प्रस्तुत किया वह हमारे इतिहास में गौरव की वास्तु तो है ही साथ-साथ ही इस तथ्य का परिचायक भी है कि बुरे से बुरे व्यक्ति भी यदि उसकी आत्मा जाग उठे, तो आदर्श पूर्ण कार्य संपादित कर सकता है |

शिवाजी की मृत्यु के बाद संभाजी छत्रपति बने | उनके और उनके भाई राजाराम के बीच पद को लेकर संघर्ष भी चला | उस अवसर पर संभाजी ने राजाराम के समर्थकों की हत्या करवाने तक का प्रयास किया | अपने पति के निंदनीय कामों का येशुबाई ने विरोध किया | उन्हें अच्छी प्रकार समझाया और उनके पिता के आदर्श स्मरण कराये | अंत में वे संभाजी को इन कुकर्मों से विराट करने में कभी हद तक सफल हो गयीं |

संभाजी ने छत्रपति बनते ही जी वीरता और योग्यता  का परिचय दिया उसकी सरदारों  को आशा नहीं थी | उन्हें आश्चर्य होता था कि संभाजी इस प्रकार परिवर्तित कैसे हो गए | किन्तु यह सब सती साध्वी और विवेकशील येशुबाई के सतपरामर्शों और साथ का ही फल था कि उनके अंदर का पशुतत्व मरता जा रहा था |

औरंगजेब के लाख सिर मारने पर भी उसे हिन्दू महाराष्ट्र को समाप्त करने में सफलता नहीं मिल रही  थी | उसे आशा थी कि विलासी संभाजी के छत्रपति बनते ही वह उस पर विजय प्राप्त कर लेगा पर वैसा संभव नहीं हो पा रहा था हर ओर से उसे हार ही मिल रही थी |

येसूबाई संभाजी के पीछे छाया की तरह लगी रही थीं | उनके मन को खाली नहीं बैठने देती थी | उन्हें यशस्वी बनने की प्रेरणा देती रहती थी | उनके इस प्रकार की प्रेरणा से संभाजी अंतर्मन भी परिवर्तित होता जा रहा था |

दस वर्ष तक संभाजी विजय यात्राओं में उलझे रहे | इस बीच वे येशुबाई के संपर्क और राष्ट्र देवता की सेवा में निरत रहकर बिलकुल बदल चुके थे | उन्हें अपने पिछले जीवन पर बहुत पछतावा होता था |

वे जब पन्हाला और विशालगढ़ के बीच संगमेश्वर नमक स्थान पर होने थोड़े से साथियों के साथ रुके हुए थे, तभी उनके वहां होने की सूचना गुप्तचरों द्वारा औरंगजेब को लग गई | उसने मुकर्रब  खान के नेतृत्व में एक हजार सैनिक उन्हें पकड़ने के लिए भेजे | संभाजी के गुप्तचरों ने इस बात की सूचना उन तक पहुंचा दी थीं किन्तु  उन्होंने भागने की बजाये उनसे युद्ध करना सही समझा और इस युद्ध में उन्हें बंदी बना लिया गया |

उन्हें औरंगजेब के सामने लाया गया | औरंगजेब ने उन्हें मुसलमान बन जाने की शर्त पर छोड़ने की बात कही | संभाजी ने उसके इस अपमानजनक प्रस्ताव को मानने से मना कर दिया और कहा मैं हिन्दू धर्म में मरना पसंद करूँगा क्योंकि हिन्दू धर्म सभी धर्मों से महान है | क्रूर औरंगजेब ने उन्हें हजारों तरह की शारीरिक यातनाये दी पर उन्होंने सब सह लिया  परन्तु उन्हें हिन्दू धर्म से विचलित नहीं कर पाए | उनकी आंखें निकाल ली गईं, जीभ काट ली गयी पर उन्होंने औरंगजेब के सामने झुकना और धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं किया | आश्चर्य होता है कि एक व्यक्ति जो कभी क्षणिक काम तृप्ति के लिए विवेक को ताक पर रख दिया करता था वह इतने शारीरिक कष्ट कैसे सहन कर गया |

इसका कारण वह गीता का ज्ञान था जो उन्हें अपनी पत्नी येशुबाई से मिलता था | येशुबाई ने पितृग्रह में अपने कुलगुरु से गीता के कर्मयोग और आत्मा के भेद को समझा था | ससुर गृह में शिवजी, जीजाबाई और समर्थ गुरु रामदास के जीवन में उसे साकार होते देखा था | उसी की घुट्टी उन्होंने उपदेश रूप में अपने पति को दी थी | हमारी उसी आध्यात्मिक विरासत के ज्ञान भण्डार के एक कण को पाकर संभाजी का जीवन ही परिवर्तित हो गया था |

अपने छत्रपति के इस गौरवपूर्ण आचरण की सूचना जब मराठा वीरों को मिली तो वे उनके पिछले आचरणों को भूल गए | संभाजी की इस वीरता पूर्वक आचरण ने उन्हें शहीद बना दिया | इस बलिदान ने मराठा सामंतों के दिल में छाया वक्तिगत महत्वाकांक्षा को समाप्त कर दिया और वहां देशभक्ति और जातीय स्वाभिमान हिलोरे लेने लगा |

संभाजी के पकडे जाने, उनके अंग विच्छेद और उनके वध के समाचार येशुबाई को रायगढ़ में मिले | इस विषम स्थिति में एक भावुक और अबला नारी की तरह वे सिर पीटने नहीं बैठी वरन येशुबाई उस समय अपने देवर राजाराम को महाराष्ट्रीय वीरों का नेता बनाकर उन्होंने महाराष्ट्र की स्वतंत्रता को अमर रखने के लिए रायगढ़ से बिदा कर दिया |

उनको अब क्या करना है, यह उन्होंने निश्चय कर लिया | उनके पुत्र शिवाजी और साहू जी अभी बालक ही थे | उनकी रक्षा और महाराष्ट्र की रक्षा का भार उन्होंने अपने कन्धों पर अनुभव किया | राजाराम को मराठों का नेता बनाकर उन्होंने जिस त्याग का परिचय दिया था उसने समय राष्ट्रप्रेम की भावना जगाने में महत्वपूर्ण कार्य किया था |

रायगढ़ पर दस महीने तक औरंगजेब का अधिकार नहीं हो पाया पर अंत में सूर्याजी पिसनद नमक एक सरदार के विश्वासघात के कारण रायगढ़ का पतन हुआ | येशुबाई के सामने ही छत्रपति का सिंहासन तोडा गया, नगर लूटा गया, उन्हें पुत्रों सहित बंदी बना लिया गया, पर  येशुबाई यह सब देखकर भी विचलित नहीं हुई | उन्हें सत्य, धर्म, और ईश्वर पर अटूट विश्वास था | 

सोलह साल तक येशुबाई अपने पुत्रों के साथ दिल्ली में मुग़ल सम्राट के द्वारा नजरबन्द राखी गयीं | इसमें भी उन्हें महाराष्ट्र का ही हित नजर आ रहा था | उन्हें विश्वास था कि ऐसी स्थिति में उन्हें छुड़ाने का और महाराष्ट्र को सबल बनाने का प्रयास अवश्य करेंगे |

दिल्ली रहते हुए भी उन्होंने अपने दो विश्वस्त सरदारों भक्ताजी हुलरे व बंकी गायकवाड़ द्वारा सन्देश और मार्गदर्शन प्रदान करते हुए महाराष्ट्र को शक्तिशाली बनाया | औरंगजेब टक्कर मरता रहा पर उसे कहीं सफलता नहीं मिली |

उन्होंने राजाराम को विशालगढ़ से हटकर, जिंजी पहुंचकर, राज चिन्ह धारण कर छत्रपति बनकर राज्य की रक्षा की प्रेरणा दी | राजाराम छत्रपति बने | औरंगजेब यह देखकर जल कर ख़ाक हो गया कि जिस छत्रपति और महाराष्ट्र को मिटाने की सोचा था वह किसी एक व्यक्ति या वंश नहीं हैं | वह तो सारे महाराष्ट्र में फैला है | येशुबाई ने पुनः इस सत्य को उजागर कर दिया था कि जब तक किसी भी देश या जाती के लोग व्यक्तिगत महत्वकांक्षायों से ऊपर उठकर राष्ट्र व समाज को महत्व देते रहेंगे तब तक उनको तब तक पददलित नहीं कर सकेगा |

छत्रपति राजाराम येशुबाई की उदारता व त्याग से अत्यधिक प्रभावित हुआ, वह उन्हें माता के सामान मानने लगे | संभाजी के दुर्व्यवहार को भूल गए | दो बार उन्होंने येशुबाई और राजकुमारों को छुड़ाने का पर्यटन किया पर सफल नहीं  हो पाए | १७०० ई में दस साल तक छत्रपति रहकर राजाराम दिवंगत हो गए | रामचंद्र  पंत नमक एक सुयोग्य सरदार येशुबाई के पुत्र साहूजी के नाम पर महाराष्ट्र की स्वतंत्रता को कायम रखते हुए मुगलों से लोहा लेते रहे |

औरंगजेब शिवाजी के उत्कर्ष के समय से ही महाराष्ट्र को मटियामेट करने के लिए प्रयास कर रहा था | उसका यह प्रयास सफल नहीं हो रहा था | हर असफलता पर चोट खाये सांप की तरह वह और भी क्रुद्ध होकर आक्रमण करता था | ओर हर बार उसे असफलता ही हाथ लगती थी | हिन्दुओं का कट्टर दुश्मन होने के साथ ही वह विशाल साम्राज्य का स्वामी था | उसके बल पर उसने दक्षिण में उठ खड़े हुए एक समर्थ भारतीय राज्य को कुचलने के लिए अपना सारा जीवन खपा दिया पर वह अपने इस कुप्रयास में असफल ही रहा |

सत्रह वर्ष की नजरबंदी भोगने बाद साहू जी की मुक्ति हुई पर येशुबाई को बंधक रखा गया | छत्रपति साहू के अथक प्रयत्नों के फलस्वरूप १७१९ में उनकी मुक्ति हुई | औरंगजेब जैसे कुटिल सम्राट से वर्षों तक स्वदेश की स्वतंत्रता को बचाये रखने के लिए जिन भारतीयों ने बलिदान दिए, अपने जीवन समर्पित किए उनमें येशुबाई का नाम सबसे पहले रहेगा | वे एक वीर माता, देश भक्त महिला और विवेकशील कर्म योगिनी के रूप में इतिहास में अमर हो चुकी हैं |

उन्नीस वर्ष तक अपनी मातृभूमि से दूर नजरबंदी का जीवन बिताते हुए भी जिस महिला ने कभी यह न जाना कि उदासी क्या है, हर ओर से बंधी रहने पर भी परिवार और राष्ट्र के लिए सतत सेवारत रहकर उन्होंने जिस निष्काम भाव से दूरदर्शिता पूर्ण कर्म किया, महाराष्ट्र को बनाये रखने के लिए रखने के लिए संजीवनी बूटी सिद्ध हुआ | ७० वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुआ | उनका यह कर्तव्यवान जीवन भारतीय महिलाओं के लिए युगों तक आदर्श का काम करेगा |

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