मेरे भाई संघर्ष से बचे रह सकना किसी भी मनष्य के लिए भी संभव नहीं।
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शांति की खोज में वन में, पर्वतों में गुफा बनाकर रहने वाले योगीयों को भी अपने आहार के लिए अन्न, पकाने के लिए ईंधन, रहने के लिए निवास, पीने की लिए जल, छाया के लिए और शरीर ढकने के लिए कुछ-न-कुछ साधन जुटाने पड़ते हैं और इस कार्य में उन्हें बहुत सा समय, श्रम, खोज तथा दौड़−धूप करनी होती है।
फिर और कौन होगा, जिसे सदा शांति रहे। राजा-रईस, अमीर-उमराव, सेठ-साहूकारों के बारे में यह सोचा जाता है कि वे मौज में पड़े−पड़े जिंदगी काटते होंगे, पर सही बात यह है कि उनका ठाट−बाट तभी तक कायम है जब तक कि वे संघर्ष में लगे हुए है। भाइयों जिस दिन चैन से रोटी खाने और मौज के दिन गुजारने की बात उनके दिमाग में घुस जाएगी, उसी दिन से उनका वैभव समाप्त होने लगेगा। लक्ष्मी तो हमेशा परिश्रमी शेरों को वरण करती है। आलसी और निकम्मे लोगों के लिए तो दारिद्र्य और कुंठा का ही तिरस्कार निश्चित रहता है।
मेरे भाई यह सोचना उचित नहीं कि किसी प्रकार हमें समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा। उलझनों से रहित जीवन की व्यवस्था इस सृष्टि में नहीं हुई है। भोग विलास के कारण यहाँ तो इंद्र को भी अपना सिंहासन गवाना पड़ा है | इसलिए उससे बचे रहने की कल्पना किसी को भी नहीं करनी चाहिए, वरन यह सोचना चाहिए कि आए दिन उपस्थित होने वाली समस्याओं के सुलझने का सही तरीका क्या है, उसे जानें। क्या आप जानते है, पैरों में जूते पहन लेने पर रास्ते में बिखरे हुए काँटों से सहज ही बचाव हो जाता है। अपने पास उलझनों को सुलझाने का यदि सही दृष्टिकोण मौजूद हो तो कठिन और भयंकर दिखने वाली समस्याएँ भी बात-ही बात में सुलझती चली जाती हैं।
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