सैकड़ों हाथों से खूब धन कमाओ और हजार हाथों से उसे उत्तम कार्यों में खर्च करो | Vedon ka Divya Gyan | Atmabal – 033 | AtharvVeda 3/24/5 |


 

भावार्थ:

सैकड़ों हाथों से खूब धन कमाओ और हजार हाथों से उसे उत्तम कार्यों में खर्च करो | इससे सदैव तुम्हारी उन्नति बानी रहेगी | 

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सन्देश:

धन कमाने के महत्त्व को वेदों ने भी स्वीकार किया है मनुष्य केवल अपने दो हाथों से एकाकी ही कार्य न करे वरन समाज के अन्य वर्ग का भी सहयोग लेकर सैकड़ों हाथों से कमाए | उसे अपनी साड़ी प्रतिभा, क्षमता और पुरुषार्थ अधिक से अधिक धन कमाने में लगाना चाहिए |

 

किसलिए यह सब करें ? क्या स्वयं अपने उपभोग के लिए ? नहीं ! संसार में जो भी धन संपत्ति है वह सब प्रजापति की है, परमपिता परमेश्वर की है | हमारे अध्यवसाय और पुरुषार्थ से जो हमें प्राप्ति होती है वह उस भगवान की ही है | उसी ने कृपापूर्वक हमें उसका ट्रस्टी नियुक्त किया है | अपनी उचित आवश्यकतयों की पूर्ती के अतिरिक्त हमें अधिक लेने का कोई अधिकार नहीं है | वह सब धन होने पुनः समाज में वापस पहुंचा देना चाहिए | हजार हाथों से उसे लोकहित में उत्तम कार्यों में व्यय कर देना चाहिए | कमाया हुआ धन हमें थोड़े समय तक ही लाभ देता है पर दान देने से जो यश प्राप्त होता है वह जन्म जन्मांतरों तक सुख प्रदान करने में समर्थ होता है | जिस प्रकार खेत में बोने से एक दाना हजार दानों के रूप में हमें प्राप्त होता है उसी प्रकार शुभ कार्यों हेतु दिया गया दान असंख्य गुना बढ़कर हमें यश व सौभाग्य प्रदान करता है |

शास्त्रों में धन के प्रयोग के बारे में स्पष्ट रूप से कहा है 'धर्माय यशसार्थाय आत्मने स्वजनाय च' | जो धन ईमानदारी से कमाया है उसे पांच भाग कर दो - धर्म के लिए, यश के लिए, अर्थ के लिए, स्वयं के लिये और स्वजनों के लिए | सबसे पहले धर्म का भाग निकलना होता है | धर्म के लिये दान करने का अर्थ है - गुप्तदान | किसी को पता भी न चले और शुभ कार्यों हेतु उचित पात्र को दे दें | यश के लिए दान का अर्थ है अस्पताल बनवाना, धर्मशाला बनवाना, छात्रव्रती देना, पेड़ लगवाना आदि | दुर्घटना या देवी विपदा में लोगों की जी जान से सहायता करना | तीसरा भाग अर्थ के लिए है अर्थात अर्थोपार्जन में, धन बढ़ाने में उसे काम-धंधे में लगाना, व्यापार में, खेती-बाड़ी में लगाना | चौथा भाग स्वयं अपने लिए रोटी कपडा मकान की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में करें और सुख सुविधा के इंतजाम जुटाएं |

 

इस प्रकार शास्त्रों ने दान को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया है | इसी परमेश्वर के अनुदान वरदान की हम पर सतत वर्षा होती रहती है | दान से सभी प्राणी वश में हो जाते है और शत्रुता का भी नाश हो जाता है | धन, ज्ञान, शक्ति, प्रसन्नता जो भी संभव हो दूसरों में बाटते रहो | मनुष्य के पास देने को कितना कुछ है - प्रेम सागर है, हंसी के फूल हैं | इन्हें भी बांटों, स्वयं खिलो और दूसरों को भी खिलते चलो |

 

मनुष्य को ईमानदारी और पुरुषार्थ से यथासंभव कामना चाहिए और सत्कार्यों में उसका उपयोग करना चाहिए |

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