क्या संगठन में शक्ति होती है? ~ Does the Organization have Power? ~ Motivation Hindi


दोस्तों कहते हैं कि निर्जीव चीजें एक और एक दो होती हैं किन्तु जीवित मनुष्य यदि सच्चेपन से एक दूसरे को प्रेम करें और एकता की सुदृढ़ भावना में संबद्ध हों तो वे एक और एक मिलकर ग्यारह बन जाते हैं। उनकी शक्ति का परिमाण अनेक गुना अधिक बन जाता है। हमें इस प्रक्रिया को अपनाना ही होगा इसके बिना और कोई मार्ग नहीं। सज्जनों का संगठन हुए बिना दुर्जनता का पलायन और किसी उपाय से नहीं हो सकता।

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मित्रों इतिहास साक्षी है कि अनैतिकता के प्रतिरोध के लिए नैतिक तत्वों को संगठित होना पड़ा है और उस संगठन के बल बूते पर ही दुष्टता को परास्त कर सकना संभव हुआ है। अवतारी और युग−पुरुषों ने भी धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश केवल अपने एकाकी बल बूते पर नहीं कर लिया है वरन् उन्हें भी संगठन की रचना करनी पड़ी है और उसी का सहारा लेकर यह लोक−शिक्षण करना पड़ा है कि सज्जनता की रक्षा केवल संगठित शक्ति द्वारा ही संभव होगी। भगवान राम को रीछ, बन्दरों की सेना इकट्ठी पड़ी थी, भगवान कृष्ण के साथ गोप और पशु पालकों का एक बड़ा संगठन था। राणा प्रताप को सेना इकट्ठी करने के लिए भामाशाह ने आर्थिक साधन जुटाये थे। सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज बनाई थी। महात्मा गान्धी ने स्वराज्य आन्दोलन के लिए कितना विशाल संगठन खड़ा किया था।

असुरों से संत्रस्त देवता जब अपनी करुण पुकार लेकर ब्रह्माजी के पास गये तब उन्होंने सब देवताओं की थोड़ी−थोड़ी शक्ति इकट्ठी करके दुर्गा देवी की रचना कर दी तब उसके द्वारा असुरों का हनन हुआ।

रावण के त्रास से संत्रस्त ऋषियों ने अपना थोड़ा−थोड़ा खून एक घड़े में जमा करके जमीन में गाड़ा था तब उसमें से सीता जन्मी और उन्हीं के निमित्त से असुर कुल का सर्वनाश हो सका।

बुद्ध भगवान को एक बड़ा शिष्य मण्डल तात्कालिक पाप−वृत्तियों से लोहा लेने के लिए संगठित करना पड़ा था। विभिन्न मत−मतान्तरों और सम्प्रदायों, और पंथों की रचनाऐं भी तत्कालिक किसी सुधार की आवश्यकता के कारण ही हुई थीं।

सिक्ख पंथ मुसलमानों के अन्यायों से बचाव की दृष्टि से बना और बढ़ा था, सामाजिक कुरीतियों के समाधान के लिए आर्य समाज का अस्तित्व सामने आया। धर्म और सत्य के आदर्श सब सम्प्रदायों में एक ही हैं कोई मौलिक मतभेद किसी में नहीं है फिर भी समय−समय पर अनेक संगठन बनते रहते हैं इनका उद्देश्य तात्कालिक परिस्थितियाँ ही होती हैं।

शक्ति का प्रदर्शन होने से भी विरोधियों के हौसले परास्त हो जाते हैं। अनैतिक तत्व उच्छृंखल तो अवश्य होते हैं पर उनके पीछे नैतिक बल न रहने से दुर्बलता ही भरी रहती है, जिसका शमन थोड़े से ही शक्ति प्रदर्शन से सरलतापूर्वक हो जाता है।

चोर तभी सेंध लगाते हैं जब घर के लोग सोये पड़े हों, उल्लू चमगादड़ तभी तक सक्रिय रहते हैं जब तक प्रकाश नहीं होता। अनैतिक तत्व भी वहीं पनपते हैं जहाँ उन्हें आलोचना या विरोध की आशंका नहीं होती।

मेरे भाई पुलिस चौकी के आस−पास आमतौर से चोरियाँ नहीं होतीं क्योंकि चोर जानते हैं कि यहाँ प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है इसलिए जोखिम के इस स्थान को छोड़ कर वहाँ मोर्चा लगाना चाहिए जहाँ कमजोरी ज्यादा हो। जिसके पीछे कोई नहीं होता आमतौर से उसे ही सताया जाता है।

सज्जन लोग आमतौर से इसीलिए परेशान किये जाते हैं क्योंकि वे गुण्डों की तरह संगठित नहीं होते। यदि उनमें भी आवश्यक संगठन की व्यवस्था बन जाय तो उसकी क्षमता अनैतिक तत्वों की अपेक्षा सैकड़ों गुनी अधिक रहेगी और इस संगठन मात्र से बुराइयों के सुधार में भारी योगदान मिलने लगेगा।

इन सब को समझने पर पता चलता है कि दरसल संगठन में बहुत बड़ी शक्ति होती है| इसलिए मेरे भाई संगठित होकर रहना सीखो | मेरे तेरे के चक्कर में रहना छोर दो | 

 

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