सद्गुणों के विकास का उचित मार्ग क्या है? ~ What is the Proper Path for Development of Virtues? ~ Motivation Hindi

 

दोस्तों सद्गुणों के विकास का उचित मार्ग यह है कि उन्हीं के संबंध में विशेष रूप से विचार किया करें, वैसा ही पढ़े, वैसा ही सुनें, वैसा ही कहें, वैसा ही सोचें जो सद्गुणों के बढ़ाने में, सत्प्रवृत्तियों को ऊँचा उठाने में सहायक हो। सद्गुणों को अपनाने से अपने उत्थान और आनन्द का मार्ग कितना प्रशस्त हो सकता है, इसका चिन्तन और मनन निरन्तर करना चाहिए। किसी वस्तु के लाभ सोचने से उसे प्राप्त करने की इच्छा होती है और यदि उसी से जो हानि हो सकती है उसका विचार आरंभ कर दिया जाय तो वही बहुत बुरी और त्याज्य प्रतीत होने लगेगी। 

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किसी व्यक्ति की अच्छाइयों पर यदि विचार करें तो वही देवता दिखाई देगा, पर यदि उसकी बुराइयाँ ढूँढ़ने लगें तो वह भी इतनी अधिक मिल जावेंगी कि साक्षात् शैतान की तरह वह दीखने लगेगा।

विवेकशीलता के आधार पर जिसे भी हम उपयोगी पावें, जिसे प्राप्त करना आवश्यक समझें, उसकी उपयोगिता का अधिकाधिक चिन्तन करें। महात्म्य का वर्णन इसीलिए किया जाता है कि किसी कार्य के अच्छे पहलू अपनी समझ में आवें और अभिरुचि उत्पन्न हो। कथा वार्ता का सारा आधार यही तो होता है कि आध्यात्मिक विषयों की उपयोगिता और उनसे प्राप्त होने वाले लाभों को समझने से प्रवृत्तियाँ उस ओर झुकें। जहाँ भी मनुष्य लाभ देखता है, जिधर भी उसे आकर्षण दीखता है, उधर ही मन झुकने लगता है। सद्गुणों के महात्म्य को हम जितनी गंभीरता से सोचेंगे, उनके सत्परिणामों पर जितना अधिक विचार करेंगे, उतना ही उन्हें प्राप्त करने की आकांक्षा प्रबल होगी। इस प्रबलता को प्रकान्तर से आत्मकल्याण की, जीवन विकास की, प्रेरणा भी कह सकते हैं। इसी पर हमारे भविष्य की उज्ज्वलता बहुत कुछ निर्भर रहती है।

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